21.1 C
Ranchi

लेटेस्ट वीडियो

बिहार के विभिन्न क्षेत्रों में भाई के लिए बहनें कर रही करमा पुजा, ग्रामीण इलाकों में चरम पर उत्साह

सोमवार को कर्मा-धर्मा एकादशी का व्रत सर्वार्थ अमृत सिद्धि योग के सुयोग में मनाया जायेगा. इस एकादशी को पार्श्व परिवर्तनी एकादशी, पद्मा एकादशी भी कहते हैं. सोमवार को साधु-संत एवं गृहस्थ एक साथ एकादशी का व्रत करेंगे.

संस्कृति और परंपरा का लोक पर्व कर्मा-धर्मा आज 25 सितंबर को बिहार के विभिन्न क्षेत्रों में मनाया जा रहा है. बहनें अपनी भाई की सुख-समृद्धि की कामना व दीर्घायु को लेकर उपवास रखते हुए पूजा-अर्चना करेंगी. यह त्योहार हर वर्ष भाद्र मास शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को मनाया जाता है, जो इस वर्ष 25 सितंबर यानी आज पड़ रहा है. वहीं इससे पहले श्रद्धालु व्रतियों ने रविवार को दशमी तिथि में नहाय-खाय व सात्विक अरवा भोजन ग्रहण किया. सोमवार को बहनें अपने भाई की सलामती के लिए पूरे विधि-विधान से व्रत एवं पूजन करेंगी. मान्यता है कि इस व्रत को करने से व्यक्ति नरक यात्रा से बचता है. उसे बैकुंठधाम की प्राप्ति होती है. इस व्रत में बहनें अपने भाइयों के सुख-समृद्धि और दीर्घायु की कामना करती हैं.

कर्मा-धर्मा के दौरान सीवान में लगता है मेला

पंडित आचार्य उमाशंकर पांडेय ने बताया कि भाई की लंबी उम्र की कामना के लिए बहनें अपने घर के बाहर तालाब बनाती हैं. उसे अच्छी तरह फल-फूल से प्राकृतिक सौंदर्य देने के लिए सजाती हैं. इसके उपरांत संध्या में नये-नये परिधानों में सज-धज कर देवाधिदेव महादेव, माता पार्वती और प्रथम पूजनीय सिद्धिविनायक की पूजा-अर्चना करती हैं. इसके बाद तालाब के चारों ओर घूम-घूम कर कर्मा-धर्मा का गीत गाती हैं. युवतियां व महिलाएं पूरे दिन उपवास रखती हैं. इस कर्मा-धर्मा पर्व को लेकर सिवान जिले में मेला का भी आयोजन किया जाता है.

मगध प्रांत में होती है झूर की पूजा

बिहार के मगध प्रांत में करमा पर्व पर बहनें व्रत कर नए वस्त्र पहनती हैं और कुश के अंदर ग्यारह फलों को लपेट लंबा स झूर तैयार करती हैं. इसके बाद बहनें उस झूर की पूजा करती हैं और जल अर्पित करती हैं. इस दौरान उनके भाई भी साथ रहते हैं. फिर पूरी रात गीत, नृत्य आदि चलता रहता है. बहनें इन गीतों के माध्यम से भाई की लंबी उम्र की कामना करती हैं. करमा पुजा विभिन्न क्षेत्रों में भिन्न-भिन्न विधि से किया जाता है, लेकिन संपूर्ण मगध में ग्रामीण महिलायें शाम को स्नान करने के बाद थाली में धूप, बत्ती, चावल, सिंदूर आदि लेकर एक जगह जमा होती हैं, जहां झूर के पूजन का अनुष्ठान होता है. पूजा से पहले गोबर माटी से जमीन को लीप-पोतकर साफ किया जाता है. वहीं लकड़ी के पीढ़े पर मिट्टी की ओखली बनाई जाती है. झूर के पौधे को स्थापित किया जाता है. करमी की बेल से उसे बांध दिया जाता है, यानी झूर के पौधे में चारों ओर से करमी के पौधे को लपेटा जाता है. इसके बाद पुजा की जाती है और कथा सुनाई जाती है.

मनेर में बहनें मिट्टी की पांच मूर्तियां बना करती हैं पुजा

पटना से सटे मनेर इलाके में कर्मा पूजा के दौरान बहनें मिट्टी की पांच मूर्तियां बना कर पूजा करती हैं. इन मूर्तियों में गणेश, लक्ष्मी, करमा, धरमा और माली की मूर्ति होती है. मिट्टी से ही गंगा-यमुना नाम से नदी भी बनाई जाती है. एक में पानी और दूसरे में दूध, दोनों को मिलाने के लिए मिट्टी को दो भागों में बांटा जाता है. दोनों को मिलाने के लिए उसमें पतला से छेद किया जाता है. झूर को खड़ा करने के लिए मिट्टी की ओखली भी बनाई जाती है.

सर्वार्थ अमृत सिद्धि योग में आज कर्मा-धर्मा

आचार्य राकेश झा ने बताया कि सोमवार को कर्मा-धर्मा एकादशी का व्रत सर्वार्थ अमृत सिद्धि योग के सुयोग में मनाया जायेगा. इस एकादशी को पार्श्व परिवर्तनी एकादशी, पद्मा एकादशी भी कहते हैं. सोमवार को साधु-संत एवं गृहस्थ एक साथ एकादशी का व्रत करेंगे. हरिशयन एकादशी में जब विष्णु भगवान योगनिद्रा में चले जाते हैं, तो कर्मा-धर्मा एकादशी के दिन करवट बदलते हैं. फिर कार्तिक शुक्ल देवोत्थान एकादशी के दिन उन्हें जगाया जायेगा. सोमवार को सूर्योदय से लेकर मध्यरात्रि 01:38 बजे तक कर्मा एकादशी की तिथि विद्यमान रहेगी. इस दिन निर्जला या फलाहार कर महिलाएं व्रत करेंगी और 26 सितंबर मंगलवार को द्वादशी में सूर्योदय के बाद व्रती पारण करेंगी.

क्या होता है करमा पुजा में…

इस पर्व में घर के आंगन में जहां साफ-सफाई की जाती है, वहां विधिपूर्वक कर्मा डाली को गाड़ा जाता है. उसके बाद उस स्थान को गोबर में लीपकर शुद्ध किया जाता है. बहनें सजी हुई टोकरी या थाली लेकर पूजा करने हेतु आंगन में चारों तरफ कर्मा राजा की पूजा करने बैठ जाती हैं. पावन मौके पर व्रतियों को कर्मा-धर्मा की कथा भी सुनायी जाती है. इस लोकपर्व में कुंवारी कन्याएं, महिलाएं और बच्चे भी उत्साहपूर्वक भाग लेते हैं. इस त्योहार को प्रकृति पर्व भी कहा जाता है. लोग इस पर्व के माध्यम से फसल की अच्छी पैदावार की भी कामना करते हैं. इस त्योहार में भाई भी बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते हैं और बहनों की सुरक्षा के प्रति अपना समर्पण भी प्रदर्शित करते हैं. कई जगहों पर पूजा स्थल पर बने तालाब को भाई द्वारा बहन का हाथ पकड़ कर उसे पार कराने की भी परंपरा है.

पंडित राकेश झा ने कहा कि कर्मा-धर्मा एकादशी के दिन कुश और राढ़ी घास से भगवान नारायण की प्रतिमा बनाकर रोली, चंदन, पंचामृत, फूल, दूर्वा, धुप-दीप व फल-नैवेद्य आदि से पूजा की जायेगी. इसके अलाव गौरी-गणेश व भगवान भोलेनाथ की भी विधिवत पूजा होगी. भाई अपनी बहन की रक्षा का संकल्प लेगा. मंगलवार को द्वादशी तिथि में पूजित सामग्री को विसर्जित कर व्रत का पारण करेंगी.

Also Read: PHOTOS: भारी बारिश के बाद घुटनों तक पानी में डूबा बिहार का सबसे बड़ा अस्पताल, पटना की सड़कें भी बन गईं झील

ग्रामीण इलाकों में उत्साह चरम पर

पारंपरिक लोक पर्व कर्मा-धर्मा को लेकर ग्रामीण क्षेत्रों में उत्साह चरम पर है. इस त्योहार को पूरे उत्साह के साथ और पारंपरिक तरीके से मनाने को लेकर तैयारियां जोर-शोर से चल रही है. संध्या में व्रती यह त्योहार विधि विधान के साथ काफी उत्साह से मनाती हैं. देर रात तक नृत्य संगीत का भी आयोजन होता है.

Also Read: बिहार में इस साल शुरू होगा पांच नेशनल हाईवे का निर्माण, इन जिलों के लोगों को होगी सहूलियत

Anand Shekhar
Anand Shekhar
Dedicated digital media journalist with more than 2 years of experience in Bihar. Started journey of journalism from Prabhat Khabar and currently working as Content Writer.

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

संबंधित ख़बरें

Trending News

जरूर पढ़ें

वायरल खबरें

ऐप पर पढें
होम आप का शहर
News Snap News Reel