मां... मां एक शब्द भर नहीं है। मां एक ऐसा शब्द है जो सिमटे तो दिल में समा जाए और फैले तो अनंत ब्रह्मांड भी छोटा पड़ जाता है। बाबूजी को गुज़रे दो साल से ज्यादा हो चुके है. आज भी उनकी बेहद याद आती है. मैंने बाबूजी के रूप में एक पिता और दोस्त खोया है.
मेरी मां ने पति, जीवनसाथी से लेकर ना जाने क्या क्या खो दिया? पचास सालों से ज्यादा के साथी को खोकर भी दुख नहीं मनाना सिर्फ मां ही कर सकती हैं। तीन कमरों को घर बनाने में बाबूजी ने पसीना मिलाया तो मां ने उसमें अनमोल ममता मिलाई।
एक मां का होना क्या से क्या कर देता है, सूने तीन कमरों को घर बना देता है।
पुरुष सर्वश्रेष्ठ जीत और भयानक पराजय के क्षणों में एक औरत को तलाशता है। मैंने जीत में ना जाने कितने ही लोगों को याद किया है, बाबूजी को भी। भयानक पराजय में याद आई तो सिर्फ मां। मां ही तो हैं जो सबसे खराब हालत में सबसे बेहतर करने की सीख देती हैं। मेरे हिसाब से मां के बारे में कुछ भी व्यक्त करने की योग्यता शब्दों में नहीं होती है। बस, इतना ही कि मैं जिस दुनिया में रहता हूं मेरी मां उस दुनिया की सबसे खूबसूरत, सबसे मजबूत और उम्मीदों से भरी हुई औरत हैं। मैं एक बार फिर से बच्चा होकर मां से लिपटकर रो लेना चाहता हूं।
- अभिषेक मिश्रा
