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जेल से निकलने के बाद मैं राजनीति में आऊंगा : कुंदन पाहन
रांची : 15 लाख का इनामी पूर्व माओवादी कुंदन पाहन ने रविवार को रांची के डीआइजी एवी होमकर के सामने विधिवत सरेंडर कर दिया. डोरंडा स्थित डीआइजी के आवासीय परिसर में आयोजित कार्यक्रम में कुंदन पाहन को इनाम की राशि के रूप में 15 लाख रुपये का चेक सौंपा गया. एडीजी अभियान आरके मल्लिक ने […]
रांची : 15 लाख का इनामी पूर्व माओवादी कुंदन पाहन ने रविवार को रांची के डीआइजी एवी होमकर के सामने विधिवत सरेंडर कर दिया. डोरंडा स्थित डीआइजी के आवासीय परिसर में आयोजित कार्यक्रम में कुंदन पाहन को इनाम की राशि के रूप में 15 लाख रुपये का चेक सौंपा गया. एडीजी अभियान आरके मल्लिक ने मौके पर कहा, कुंदन पाहन का सरेंडर करना झारखंड पुलिस के लिए बड़ी उपलब्धि है. बड़े नक्सली नेता झारखंड के आदिवासी युवकों को बहला कर संगठन में शामिल कर रहे हैं.
वैसे नक्सली जो मुख्य धारा में आना चाहते हैं, सरकार की सरेंडर पॉलिसी का लाभ उठायें. एेसा मौका दोबारा नहीं मिलेगा. डीआइजी और एसएसपी ने भी नक्सलियों को सरेंडर करने की अपील की है. कुंदन पाहन ने अपने साथी नक्सलियों से भी सरेंडर करने की अपील की है. पूछताछ में उसने बताया है कि नेपाल के प्रधानमंत्री पुष्प कमल दहल उर्फ प्रचंड भी झारखंड के नक्सलियों के समर्थक रहे थे. उसने बताया : प्रचंड ने 2000 में मेरे साथ झुमरा पहाड़ पर ट्रेनिंग ली थी. ट्रेनिंग देने के लिए बंगाल के बड़े नक्सली नेता मनीष दा झुमरा पहुंचे थे. इसके अलावा आंध्र प्रदेश से भी कुछ नक्सली आये थे.
हो सकते हैं बड़े खुलासे : पुलिस सूत्रों के अनुसार कुंदन पाहन का पेन ड्राइव बरामद होने के बाद कई बड़े खुलासे हो सकते हैं. उससे संपर्क में रहनेवाले कई बड़े लोगों के नाम सामने आ सकते हैं. कुंदन पाहन से पूछताछ के बाद उसे तमाड़ थाने में वर्ष 2014 में दर्ज एक नक्सली केस में होटवार जेल भेज दिया गया.
पेन ड्राइव बरामद करने के प्रयास में पुलिस : कुंदन पाहन ने बताया कि उसने जिन घटनाओं को अंजाम दिया और जिन लोगों से संपर्क किया, उसका पूरा ब्योरा वह पेन ड्राइव में रखता था. पुलिस पेन ड्राइव को बरामद करने का प्रयास कर रही है. कुंदन पाहन ने यह भी बताया कि वह 2012 में ही अपने दस्ते और अजय महतो के साथ सरेंडर करना चाहता था. पर तब उसे लगा कि धोखा हो सकता है. इसलिए उसने सरेंडर नहीं किया. वर्तमान सरकार की नीति और रांची डीआइजी व एसएसपी पर विश्वास कर सरेंडर किया है.
ये भी थे मौजूद
कार्यक्रम में एडीजी अभियान आरके मल्लिक, आइजी सीआरपीएफ संजय आनंद लाटकर, डीआइजी अमोल वेणुकांत होमकर, सीआरपीएफ डीआइजी राजीव राय, रांची एसएसपी कुलदीप द्विवेदी, रांची ग्रामीण एसपी राजकुमार लकड़ा, सीआरपीएफ 133 बटालियन के कमांडेंट नीरज कुमार पांडेय व रांची के एएसपी अभियान आरसी मिश्रा सहित अन्य लोग मौजूद थे.
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कुंदन के सरेंडर की सीबीआइ जांच हो न्याय मिले नक्सल पीड़ित परिवार कोमीडिया से बातचीत में बोला कुंदन जेल से निकलने के बाद राजनीति में आऊंगासरेंडर करने के बाद कुंदन पाहन को मीडिया के सामने लाया गया. पत्रकारों से उससे कई सवाल किये. वह आराम से सवालों का जवाब देता रहा. राजनेताओं और पुलिस अफसरों से संपर्क के होने के सवाल पर पहले कुंदन पाहन से थोड़ी देर लिए चुप्पी साथ ली. थोड़ी देर सोचने के बाद उसने जवाब दिया कि मेरा किसी से कोई संबंध नहीं रहा है. जमानत पर निकलने के बाद उसने राजनीति में जाने आने की बात कही है.
अब सरेंडर कर दिया है. जेल से जमानत पर निकलने के बाद क्या करना है.
मुझे राजनीति में दिलचस्पी है. जेल से निकलने के बाद राजनीति में जाऊंगा. क्षेत्र के विकास के काम करूंगा. जरूरत पड़ी, तो चुनाव भी लड़ सकता हूं.
संगठन में रहते किसी बड़े राजनेता से मुलाकात हुई. कभी किसी को चुनाव जिताने में मदद पहुंचायी. किसी खास राजनेता या पार्टी से लगाव है क्या.
चर्चाएं खूब होती हैं, लेकिन संगठन में रहते कभी किसी राजनेता से नहीं मिला. किसी ने चुनाव जिताने के लिए मुझसे संपर्क नहीं किया. मेरा किसी खास राजनीति पार्टी या नेता से कभी कोई लगाव नहीं रहा है.
नक्सली बनने की वजह क्या रही थी. नक्सली बनने के बाद मंशा कहां तक पूरी हुई.
नक्सली जमीन विवाद में बना था. अड़की में मेरे परिवार की करीब 2600 एकड़ सम्मिलित जमीन थी. 1350 एकड़ जमीन मेरे परिवार के हिस्से में थी.इस पर गोतिया के लोगों ने कब्जा कर लिया था. मैं जमीन वापस पाने के लिए नक्सली बना और हथियार के बल पर 1350 एकड़ के बजाय पूरी 2600 एकड़ जमीन पर कब्जा कर लिया. लेकिन जमीन खूंट कट्टी है. इसलिए मेरे पास पेपर नहीं है.
नक्सली संगठन से कब और क्यों अलग हुए, दोबारा कभी जाने का प्रयास किया क्या. कोई अलग गिरोह बना कर काम किया क्या
मैं संगठन में अपनी बदौलत काफी जल्दी बड़े पद पर पहुंच चुका था. यह बात कुछ बड़े नक्सली भुवन मांझी और अनल दा को पसंद नहीं थी. वे मुझ पर गलत आरोप लगाते थे. मुझे आगे बढ़ने नहीं दे रहे थे. इस वजह से मैं 2013 में संगठन से कुछ लोगों के साथ अलग हो गया. मैंने कभी संगठन में वापस जाने का प्रयास नहीं किया. मुझे शीष नक्सलियों की ओर से दोबारा ऑफर आया, लेकिन मैंने इनकार कर दिया. मैंने कभी कोई अलग गिरोह बना कर भी काम नहीं किया.
संगठन छोड़ने के बाद कभी विदेश गये. सरेंडर करने के पहले बीमार पड़े थे क्या.
मैं संगठन छोड़ने के बाद झारखंड से बाहर तक नहीं गया. बुंडू, तमाड़ और अड़की के इलाके में अक्सर रहा. मुझे आम लोगों का समर्थन था. इसलिए मैं आराम से रहता था. मैं सरेंडर करने से पूर्व कभी बीमार नहीं पड़ा था.
नक्सलियों का कोई विदेशी लिंक भी है क्या. संगठन में रहते किन बड़े नक्सली नेताओं से मुलाकात हुई.
मेरे संगठन में रहते नक्सलियों के विदेशी लिंक की बात सामने नहीं आयी. मैं संगठन में रहते गणपति, अरविंद जी सहित कई बड़े नक्सली नेता से मिल चुका हूं. बड़े नक्सलियों से मुलाकात अधिवेशन के दौरान होती थी. बिहार में 2009 में नक्सलियों की नौवीं कांग्रेस में गणपति से मुलाकात हुई थी.
वर्तमान में नक्सलियों का शीर्ष नेता कौन है. संगठन के पास हथियार कहां से आते हैं.
नक्सलियों का शीर्ष नेता गणपति हैं. संगठन के पास अधिकतर हथियार पुलिस से लूटे हुए हैं.
पुलिस इतने दिनों तक क्यों नहीं पहुंच पायी, इसके पीछे क्या कारण हो सकता है.
पुलिस के पास मेरी फोटो नहीं थी. इसलिए पुलिस मुझे नहीं पहचानती थी. पुलिस के पास मेरी जो फोटो थी और अखबारों में छपती थी, वह मेरी नहीं थी. पुलिस मुझे शायद नहीं पहचानती थी. आम जनता का सहयोग मेरे साथ था. इसलिए मैं बचता रहा. सरेंडर करने के बाद भी कई पुलिसवाले मुझे नहीं पहचान सकें.
2009 में पकड़े जाने की बात सामने आयी थी, यह भी बात सामने आयी थी कि एक नेता की पैरवी छूटे.
मैं पहले ही बता चुका हूं कि मेरा संपर्क किसी नेता से नहीं रहा है. मुझे पुलिस ने पकड़ा भी नहीं था.
इतने बड़े नक्सली कैसे बने, किन लोगों से ट्रेनिंग ली.
मैंने संगठन में आने के बाद काफी सक्रियता से काम किया. संगठन को मजबूत किया. इसलिए जल्द ही बड़ा नक्सली बन गया. मुझे किशन दा, भास्कर दा और नंदलाल ने ट्रेनिंग दी.
विधायक रमेश सिंह मुंडा और पुलिस अफसरों की हत्याएं क्यों की. पांच करोड़ और सोना लूट कांड में कितने मिले. लेवी में मिले कितने पैसे बचे हैं.
विधायक रमेश सिंह मुंडा की हत्या में मैं शामिल नहीं था. हत्या का निर्णय शीर्ष नक्सलियों ने लिया था. मैं हत्या की वजह नहीं जानता. सुनील महतो की हत्या का निर्णय भी शीर्ष नक्सलियों ने लिया था. मैं पुलिसवालों की हत्या में भी शामिल नहीं था. एक बात अवश्य है कि संगठन में रहते इन सब घटनाओं के लिए मैं प्रत्यक्ष रूप से खुद को जिम्मेवार मानता हूं. मेरे पास लेवी के पैसे भी नहीं बचे हैं. पांच करोड़ और सोना लूटकांड में मेरे अलावा 300 नक्सली शामिल थे. लेकिन सारा पैसा अरविंद जी के पास चला गया था. मेरे पास एक भी रुपये नहीं हैं.
– बुंडू, तमाड़ इलाके में कई हत्या और नक्सली घटनाएं हुईं. आप किन बड़ी घटनाओं में शामिल थे.
वर्ष 2001 के पहले बुंडू, तमाड़ इलाके में जो घटनाएं हुईं, मैं उसमें शामिल रहा था. लेकिन 2001 के बाद मेरा ट्रांसफर बड़े नक्सलियों ने पाेड़ाहाट कर दिया था. इसलिए वजह में मैं इस इलाके की किसी बड़ी घटना में प्रत्यक्ष रूप से शामिल नहीं रहा. मुझे कोई बड़ी घटना याद नहीं है.
संगठन में रहते या बाद में किसी पुलिस अधिकारी से संपर्क हुआ क्या. किसी पुलिस अफसर से या किसी दूसरे उग्रवादी संगठन से कभी डर लगा क्या.
संगठन में रहते किसी पुलिस अफसर से संपर्क नहीं किया. कुछ थानेदारों के गलत कार्यों के बारे जानकारी मिलने पर उन्हें फोन कर धमकी जरूर देता था. इलाके में मेरा नाम ही काफी था, न मुझे किसी पुलिस से डर लगा और न ही दूसरे उग्रवादी संगठन से.
विधायक रमेश सिंह मुंडा और इंस्पेक्टर फ्रांसिस इंदवार की हत्या में किस नक्सली का हाथ था.
दोनों की हत्या में मितन मरांडी नामक एक नक्सली का हाथ था. उसके नेतृत्व में घटना को अंजाम दिया गया था. संगठन ने दोनों घटनाओं को सबसे अधिक निर्मम हत्या माना है. घटना के बाद मैंने और अजय महतो ने इसका विरोध भी किया था.
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