UAE vs Saudi Arabia Fight in Yemen: यमन का तेल-समृद्ध हजरामौत प्रांत खाड़ी की दो सबसे ताकतवर शक्तियों सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात के बीच वर्चस्व की खुली जंग का केंद्र बन चुका है. यूएई समर्थित बलों ने हाल के दिनों में रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण शहरों और सैन्य ठिकानों पर तेजी से कब्जा जमाना शुरू किया है, जबकि सऊदी समर्थित यमन की भगोड़ी सरकार इन इलाकों को बचाने के लिए संघर्ष कर रही है. 3 दिसंबर को यूएई समर्थित गुट ने हजरामौत की दूसरी सबसे बड़ी शहर सैयून पर कब्जे का दावा किया, जिसके बाद बुधवार और गुरुवार को पूरे वादी हजरामौत में जबरदस्त लड़ाई भड़क उठी. न्यूयॉर्क टाइम्सस की एक रिपोर्ट के मुताबिक अहम अल-गुराफ क्षेत्र की ओर बढ़ते यूएई समर्थित लड़ाकों की कार्रवाई ने तनाव को और बढ़ा दिया और भारी तोपखाने की आवाजों ने पूरे इलाके को युद्ध क्षेत्र में बदल दिया. यूएई समर्थित लड़ाकों को राष्ट्रपति महल पर धावा बोला, जिससे सऊदी समर्थित प्रशासन की कमजोरी उजागर हो गई.
सैयून यमन का एक संसाधन-समृद्ध क्षेत्र है, इस पर कब्जा करते ही उसने तेजी से बढ़त बनाते हुए कुछ ही घंटों में बड़े हिस्सों पर कब्जा कर लिया. सदर्न ट्रांजिशनल काउंसिल (एसटीसी) नामक इस अलगाववादी समूह ने पूर्वी यमन के हजरामौत प्रांत के बड़े हिस्से पर नियंत्रण कर लिया. हालांकि अभी वह इस जगह के तेल क्षेत्रों पर कब्जा जमाने के लिए संघर्ष कर रहा है. यह तेज हमला यमन में लंबे समय से चले आ रहे संघर्ष विराम-समान शांति को चकनाचूर कर गया. यह एक संभावित मोड़ भी साबित हो सकता है, जो देश को दो हिस्सों में बाँटने की राह खोल सकता है. न्यूयॉर्क टाइम्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक, यमन मामलों पर केंद्रित अमेरिकी विश्लेषक मोहम्मद अल-बाशा ने इस घटना पर कहा कि यमन के भविष्य के नक्शे की होड़ शुरू हो चुकी है.
एसटीसी कई गठबंधन मिलिशियाओं से मिलकर बना है. यह कई प्रतिद्वंद्वी गुटों का सामना कर रहा है, जिनमें यमन सरकार-समर्थित एक सैन्य इकाई और एक जनजातीय नेता के नेतृत्व वाली ताकतें शामिल हैं. ये सभी हूथियों (ईरान समर्थित मिलिशिया, जो उत्तरी यमन पर नियंत्रण रखती है) के विरोधी हैं. नई लड़ाई संयुक्त अरब अमीरात और सऊदी अरब के बीच चल रही तनावपूर्ण प्रतिद्वंद्विता को भी उजागर करती है. यूएई छोटा लेकिन प्रभावशाली खाड़ी देश है, जबकि हजरामौत की सीमा सऊदी अरब से लगती है और रियाद का वहाँ गहरा प्रभाव है.
यूएई और सऊदी अरब कभी यमन में हूथियों के खिलाफ लड़ने वाले सैन्य गठबंधन की अगुवाई करते थे, लेकिन हाल के वर्षों में उनकी विदेश नीतियाँ अलग दिशा में चली गई हैं और उन्होंने यमन और सूडान में प्रतिद्वंद्वी गुटों का समर्थन किया है. बुधवार को सऊदी अधिकारियों का एक दल हजरामौत पहुँचा और गवर्नर से मुलाकात की. यमनी मीडिया के अनुसार एक सऊदी सैन्य अधिकारी ने बाहर से आए बलों को प्रांत से वापस लौटने का आदेश दिया.

यमन के लंबे गृहयुद्ध की पृष्ठभूमि
यमन का युद्ध 2014 में शुरू हुआ, जब हूथियों ने राजधानी सना पर कब्जा कर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त सरकार को बेदखल कर दिया. सरकार को बहाल करने के प्रयास में सऊदी अरब और यूएई ने बड़े पैमाने पर बमबारी अभियान चलाया. हिंसा, भूख और बीमारी के कारण लाखों लोग मारे गए. आखिरकार हूथी प्रमुख ताकत के रूप में उभरे. इस साल गाजा में इजरायल-हमास युद्ध के दौरान उन्होंने इजरायल और लाल सागर में जहाजों पर मिसाइलें और ड्रोन दागकर अंतरराष्ट्रीय सुर्खियाँ बटोरीं. उत्तरी यमन, जहाँ देश की अधिकांश आबादी रहती है, अब हूथियों के नियंत्रण में है.
वहीं दक्षिणी यमन का संचालन नाममात्र रूप से अंतरराष्ट्रीय मान्यता प्राप्त सरकार करती है, लेकिन वास्तविक नियंत्रण कई सशस्त्र समूहों के हाथ में है. इनमें सबसे शक्तिशाली एसटीसी है, जिसे 2017 में यूएई ने वित्तीय और सैन्य समर्थन देकर स्थापित किया था. यह समूह स्वतंत्र दक्षिणी यमन की मांग कर रहा है, ऐसा राज्य जो 1990 में एकीकरण से पहले कई दशकों तक अस्तित्व में था.
सऊदी और यूएई क्यों भिड़ रहे हैं?
हजरामौत केवल एक प्रांत नहीं, बल्कि यमन का सबसे बड़ा और सबसे संसाधन-समृद्ध इलाका है. तेल, खनिज, और 450 किमी लंबी समुद्री तटरेखा इसे दोनों खाड़ी देशों के लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण बनाते हैं. यूएई की रणनीति दक्षिणी यमन को अलग राष्ट्र के रूप में पुनर्स्थापित कर उसे अपने प्रभाव क्षेत्र में बदलने की है. अदन सहित दक्षिण के बड़े हिस्सों पर पहले से उसका नियंत्रण है और अब वह हजरामौत को मुक्त करने के नारे के साथ तेजी से आगे बढ़ रही है. दूसरी ओर, सऊदी अरब के लिए हजरामौत भू-राजनीतिक सुरक्षा का सवाल है. यह इलाका उसकी सीमा से जुड़ा है और रियाद नहीं चाहता कि यूएई यहां एक अलग सत्ता संरचना स्थापित कर पूरी दक्षिणी यमन की राजनीति को अबू धाबी के प्रभाव में सौंप दे. विशेषज्ञों का कहना है कि स्थानीय स्वायत्तता का नारा सिर्फ एक राजनीतिक आवरण है, जिसके पीछे संसाधनों और समुद्री मार्गों पर कब्जे की खाड़ी-स्तरीय जंग चल रही है.
दोनों की जमीन पर स्थिति, कौन कहाँ खड़ा है?
वहीं एक ईरानी रिपोर्ट के मुताबिक सऊदी और यूएई के समर्थित गुट अब हजरामौत में आमने-सामने खड़े हैं. यूएई समर्थित बलों ने सैयून, जथमा और वादी हजरामौत के कई हिस्सों पर तेजी से प्रभाव बढ़ाया है. कई क्षेत्रों में यह कब्ज़ा लगभग बिना प्रतिरोध के हुआ, जिससे संकेत मिलता है कि सऊदी समर्थित प्रशासन के भीतर भी कमजोरी और असंतोष गहराता जा रहा है. दूसरी ओर, सऊदी समर्थित बल मारिब, शबवा और उत्तरी हजरामौत की कुछ सैन्य इकाइयों में अभी भी मजबूत उपस्थिति बनाए हुए हैं. हालांकि, लगातार पीछे हटती सरकारी इकाइयाँ रियाद के लिए गंभीर चिंता का विषय हैं. यूएई समर्थित बलों ने समुद्री मार्गों, द्वीपों और तटीय क्षेत्रों पर पहले ही अपनी पकड़ मजबूत की है. सोकोतरा, अब्द-अल-कुरी और मयून द्वीप पर बने नए सैन्य ढाँचे स्पष्ट संकेत देते हैं कि यूएई की रणनीति केवल जमीन पर नियंत्रण तक सीमित नहीं, बल्कि हिंद महासागर और बाब-अल-मंदेब जैसे वैश्विक शिपिंग मार्गों पर प्रभाव बढ़ाने की है.
हजरामौत में हुए युद्ध के बाद सीमा निर्धारण को सोशल मीडिया पर दर्शाया गया है. आप एक नजर इस पर डाल सकते हैं.
यूएई की क्षेत्रीय महत्वाकांक्षा और सऊदी की सुरक्षा चिंताएँ
यूएई का प्रभाव केवल यमन के दक्षिण में ही नहीं, बल्कि सोमालिलैंड, पंटलैंड और अफ्रीका के हॉर्न तक फैल चुका है, जहाँ उसने बंदरगाहों और एयरबेस का तेज़ विस्तार किया है. सैटेलाइट तस्वीरें दिखाती हैं कि 7 अक्टूबर 2023 के बाद यूएई ने इन ठिकानों को तेजी से विकसित किया, और कई रिपोर्टें दावा करती हैं कि इन्हें इज़रायल के सहयोग से तैयार किया गया है. इससे सऊदी अरब की चिंताएँ और गहरी हो गई हैं, क्योंकि रियाद इसे अपने प्रभाव क्षेत्र में सीधी चुनौती मानता है. यूएई का फोकस दक्षिणी यमन को आर्थिक और सैन्य रूप से अपनी धुरी में लाना है, जबकि सऊदी अरब यमन को एकीकृत रखकर उत्तरी हौथियों के खिलाफ अपना मोर्चा मजबूत रखना चाहता है. दोनों देशों की नीतियाँ अब बिल्कुल विपरीत दिशाओं में हैं, जिससे यह स्पष्ट है कि यमन की जंग अब सिर्फ स्थानीय संघर्ष नहीं, बल्कि खाड़ी की दो शक्तियों के बीच वर्चस्व की बड़ी लड़ाई बन चुकी है.
यमन का नया बंटवारा या बड़ा क्षेत्रीय टकराव?
हजरामौत में बढ़ती लड़ाई ने संकेत दिया है कि आने वाले महीनों में सऊदी और यूएई के बीच तनाव और बढ़ सकता है. अगर यूएई समर्थित बल हजरामौत के बड़े हिस्से पर नियंत्रण स्थापित कर लेते हैं, तो दक्षिणी यमन के अलग राष्ट्र बनने की दिशा में कदम तेज हो सकते हैं, जो अबू धाबी का पुराना एजेंडा है. लेकिन यह परिदृश्य सऊदी अरब के लिए बेहद अस्वीकार्य होगा, क्योंकि ऐसा होने पर वह अपने दक्षिणी बॉर्डर पर एक यूएई-झुकाव वाला राज्य पाएगा, जो उसके सुरक्षा हितों के खिलाफ होगा. इसके उलट, यदि सऊदी किसी बड़े सैन्य हस्तक्षेप का निर्णय लेता है, तो यह यमन में एक नए और और भी विनाशकारी संघर्ष को जन्म दे सकता है. फिलहाल, जमीन पर यूएई समर्थित बलों की बढ़त और सऊदी समर्थित प्रशासन की रक्षात्मक मुद्रा यह संकेत देती है कि हजरामौत खाड़ी की इस शक्ति-संघर्ष में निर्णायक मोर्चा बनने वाला है. कौन विजयी होगा, यह अभी अनिश्चित है, लेकिन इतना तय है कि यमन का भू-राजनीतिक मानचित्र आने वाले महीनों में बड़े बदलावों से गुजरने वाला है.
ये भी पढ़ें:-
फिर छिड़ी ट्रंप की रुकवाई हुई जंग, थाईलैंड ने कंबोडिया पर दागी मिसाइलें, एयर स्ट्राइक से मचा कोहराम
डोनाल्ड ट्रंप के नाम पर भारत में रोड का ऐलान, इस राज्य सरकार का बड़ा फैसला, क्यों की ऐसी घोषणा?

