21.1 C
Ranchi

लेटेस्ट वीडियो

जननेता महेंद्र सिंह आम जनता की आवाज थे

अनिल अंशुमनसंस्कृतिकर्मी व सामाजिक कार्यकर्ता[email protected] आज 16 जनवरी को एक बार फिर बगोदर समेत आसपास के क्षेत्रों के गरीब-गुरबे और लोकतंत्र पसंद समुदायों के लोग एक गहरे दर्द के साथ अपने प्रिय जननेता महेंद्र सिंह को याद कर रहे हैं. आज महेंद्र सिंह की शहादत का दिन है. उनकी हत्या के मुजरिम और साजिशकर्त्ता जारी […]

अनिल अंशुमन
संस्कृतिकर्मी व सामाजिक कार्यकर्ता
[email protected]

आज 16 जनवरी को एक बार फिर बगोदर समेत आसपास के क्षेत्रों के गरीब-गुरबे और लोकतंत्र पसंद समुदायों के लोग एक गहरे दर्द के साथ अपने प्रिय जननेता महेंद्र सिंह को याद कर रहे हैं. आज महेंद्र सिंह की शहादत का दिन है. उनकी हत्या के मुजरिम और साजिशकर्त्ता जारी अंतहीन जांच प्रक्रिया में शायद ही सरकार और सीबीआई द्वारा कानून व समाज के सामने कभी लाये जायें. हालांकि, व्यापक जनमानस जानता है कि उनकी हत्या से किन्हें राहत मिली है.
झारखंड विधानसभा द्वारा उन्हें आज तक ‘आदर्श विधायक’ का सम्मान नहीं दिया जाना भी एक अहम मामला है. राज्य गठन के करीब दो दशक बीत जाने के बावजूद प्रदेश में बननेवाली किसी भी सरकार ने महेंद्र सिंह को यह सम्मान नहीं दिया.
जब महेंद्र सिंह जैसे आम जनता के प्रिय, आंदोलनकारी और लोकतंत्र पसंद शक्तियों के चहेते जनप्रतिनिधि ‘आदर्श विधायक’ नहीं माने जा सकते हैं, तो जो सरकार और विधानसभा हर वर्ष ‘आदर्श विधायक ’ का चयन करती है, उसकी नजर में इसके क्या मापदंड हैं?
महेंद्र सिंह जैसे राजनेता चालू सियासत में कहीं भी फिट नहीं बैठते. इन सबसे परे वह ऐसे निर्विवाद राजनीतिक व्यक्तित्व रहे कि उनके धुर-विरोधी भी उनकी विचार-दृष्टि, साफगोई, बेबाकपन और पारदर्शी राजनीति के कायल थे.
उन्होंने हाशिये के कमजोर-वंचित-उपेक्षित और इंसाफ पसंद लोगों की इच्छा-आकांक्षा व जरूरतों को सदैव अपनी राजनीति के केंद्र में रखा. वह ऐसे अपवाद नेता रहे, जिन्होंने अपने मतदाताओं से विपक्ष बनने के लिए वोट मांगा. इसे बगोदर क्षेत्र के मतदाताओं ने भी सहर्ष समर्थन देते हुए चार बार लगातार उन्हें अपना विधायक चुना.
राजनीति के निरंतर गिरते हुए स्तर और जनप्रतिनिधियों की अपने मतदाताओं के प्रति घटते जवाबदेही आचरण को लेकर सभी चिंता जताते हैं, लेकिन बात जब जमीनी स्तर पर खुद अमल करने की आती है, तो सभी नदारद हो जाते हैं.
महेंद्र सिंह और उनकी जनप्रतिबद्ध राजनीतिक सक्रियता अपने आप में एक जीवंत परंपरा बन चुकी है. युवा विधायक विनोद सिंह आज उसी परंपरा की मुखर अभिव्यक्ति बनकर झारखंड में जमीनी राजनीति का परचम लहरा रहे हैं.
झारखंड के विशेष संदर्भों में भी महेंद्र सिंह को जानना-समझना वर्तमान जटिल स्थितियों में बेहद जरूरी है. वे ‘अबुआ दिसुम अबुआ राज’ और आदिवासी समाज के संविधानप्रदत्त विशेषाधिकारों के प्रबल हिमायती थे.
कोयलकारो विस्थापन विरोधी आंदोलन के समय प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री बाबूलाल के शासन में शांतिपूर्ण ढंग से आंदोलन कर रहे आदिवासियों पर गोलियां चली थीं और आठ बेगुनाह मारे गये थे. तब इकलौते महेंद्र सिंह हर सुबह पीड़ितों के सहायतार्थ उनके गांवों में जाते रहे और समय पर विधानसभा सत्र में भी भागीदारी करते रहे.
झारखंड में पांचवीं अनुसूची के उल्लंघन पर 9 अक्तूबर, 2003 को सदन में सवाल उठाते हुए उन्होंने कहा था- अलग राज्य बनने के बाद भी आदिवासी इलाकों में पलायन इसलिए हो रहा है कि पांचवीं अनुसूची का सख्ती से पालन नहीं हो रहा है. इसीलिए मुझे बहुत साफ दिख रहा है कि जिस रास्ते पर इस राज्य की विधानसभा बढ़ रही है, उसमें आनेवाले समय में सदन में बहस होगी कि पांचवीं अनुसूची अप्रासंगिक हो गयी है.
एक जननेता को याद करते हुए उसके स्मारक पर पुष्प अर्पित करने की रस्म-अदायगी से ज्यादा जरूरी है जमीनी लोकतंत्र को सक्रिय व सबल बनाना. प्रख्यात कवि धूमिल ने कहा था- न प्रजा है ना तंत्र है, प्रजातंत्र के नाम पर खुला षड्यंत्र है…! इस बात से महेंद्र सिंह जीवनपर्यंत चौकस-सक्रिय बने रहे. इस संदर्भ में उनका स्पष्ट कहना था- जिस राज्य में प्रतिनिधि सभा लाचार लोगों के हितों की रक्षा नहीं कर सके, उसे जनता की प्रतिनिधि सभा कैसे कहेंगे?
Prabhat Khabar Digital Desk
Prabhat Khabar Digital Desk
यह प्रभात खबर का डिजिटल न्यूज डेस्क है। इसमें प्रभात खबर के डिजिटल टीम के साथियों की रूटीन खबरें प्रकाशित होती हैं।

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

संबंधित ख़बरें

Trending News

जरूर पढ़ें

वायरल खबरें

ऐप पर पढें
होम आप का शहर
News Snap News Reel