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Friday, March 29, 2024

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ठंड में अस्थमा रोगी बरतें खास एहतियात

डॉ निशीथ कुमारएमडी (पल्मोनरी मेडिसिन)?कंसलटेंट रेस्पिरेटरी मेडिसिन एंड इंटरवेंशनल पल्मोनोलॉजी,आर्किड मेडिकल सेंटर, रांची अस्थमा श्वास नलिकाओं को प्रभावित करने वाली बीमारी है. सदिर्यों में अस्थमा अटैक के मामले बढ़ जाते हैं. आमतौर पर ठंड में सूखी हवा व वातावरण में वायरस की बढ़ोतरी से यह समस्या ज्यादा गंभीर हो जाती है. ठंड के मौसम में […]

डॉ निशीथ कुमार
एमडी (पल्मोनरी मेडिसिन)?
कंसलटेंट रेस्पिरेटरी मेडिसिन एंड इंटरवेंशनल पल्मोनोलॉजी,
आर्किड मेडिकल सेंटर, रांची

अस्थमा श्वास नलिकाओं को प्रभावित करने वाली बीमारी है. सदिर्यों में अस्थमा अटैक के मामले बढ़ जाते हैं. आमतौर पर ठंड में सूखी हवा व वातावरण में वायरस की बढ़ोतरी से यह समस्या ज्यादा गंभीर हो जाती है. ठंड के मौसम में वातावरण में धूल एवं धुएं का स्तर बढ़ जाता है. ऐसे में श्वास नलिकाओं की भीतरी दीवार में सूजन आ जाती है. इस कारण सांस की नलियां बहुत ज्यादा सिकुड़ जाती हैं.
इससे श्वास नली में बलगम जल्दी जमा होने लगता है, जो श्वास नली को अवरुद्ध कर देता है और मरीज को सांस लेने में कठिनाई होने लगती है. फलस्वरूप सांस फूलने लगती है. अगर माता-पिता में से किसी को भी अस्थमा है, तो बच्चों को यह बीमारी होने की आशंका प्रबल होती है. कुछ लोगों में यह बीमारी ठंड से एलर्जी होने की वजह से भी बढ़ जाती है.
रात्रि में अस्थमा अटैक के ज्यादातर मामले : अस्थमा रोगियों की परेशानी खास कर रात में सोने के दौरान बढ़ जाती है, जिसे हम नॉक्टरनल अस्थमा (नाइट अस्थमा) कहते हैं. रात में खांसी शुरू हो जाती है, क्योंकि शरीर के अंदर ऑक्सीजन की कमी होने लगती है. इसका सीधा दबाव हृदय पर पड़ता है और हार्ट अटैक आने का खतरा भी बढ़ जाता है.
सोने के पोजिशन के आधार पर भी इसके अटैक देखे जाते हैं, क्योंकि इस समय श्वास की नली अधिक संकीर्ण हो जाती है, जिस वजह से भी अस्थमा अटैक का खतरा बढ़ जाता है. लगभग 75 प्रतिशत लोगों में इसके मामले रात्रि में देखने को मिलते हैं.
साफ-सफाई का रखें विशेष ख्याल : एक स्टडी के मुताबिक फेफड़ों का फंक्शन शाम के चार बजे बेस्ट होता है और सुबह के चार बजे इसकी कार्यक्षमता थोड़ी कम हो जाती है. जिन लोगों की नाइट शिफ्ट होती है, उन्हें इसका खतरा सुबह में सोते वक्त होता है क्योंकि शरीर का बॉयोलॉजिकल क्लॉक इसी अनुसार कार्य करने लगता है.
अस्थमा के मूल कारणों में एलर्जी भी शामिल है, इसलिए घर में साफ-सफाई का ख्याल रखना बेहद जरूरी हो जाता है, क्योंकि धूल के कण और पालतू जानवरों के बाल अस्थमा को ट्रिगर करने का कारण बनते हैं.
अस्थमा रोगियों को एयर कंडीशन में रहने से बचना चाहिए, क्योंकि एसी की ठंडी हवा शरीर की गर्मी को कम कर देती है, जिससे श्वास की नली में सूजन आ जाती है. इससे भी अस्थमा अटैक का खतरा बढ़ जाता है.
जिन लोगों को पेट संबंधित परेशानी होती है, जैसे- एसिडिटी या GERD (Gastroesophageal Reflux Disease), उन्हें भी अस्थमा अटैक का डर होता है, क्योंकि इससे छाती और श्वास नली पर दबाव पड़ने लगता है. जिन्हें स्लीप एपनिया अर्थात बार-बार सांस के रुकने और चलने की दिक्कत होती है, उन्हें ठंड में बेहद सतर्कता के साथ रहने की सलाह दी जाती है, क्योंकि इसके कारण फेफड़ों पर दबाव बढ़ जाता है.
इसके अलावा मोटापे से ग्रसित लोगों को भी सोते वक्त अस्थमा का खतरा ज्यादा होता है, क्योंकि अतिरिक्त फैट से भी फेफड़ों पर दबाव बढ़ जाता है. सही इलाज, दवाओं, संयमित खान-पान से अस्थमा के लक्षणों को काफी हद तक नियंत्रित किया जा सकता है.
अस्थमा के प्रमुख लक्षण
सांस फूलना, लगातार खांसी आना, छाती घड़घड़ाना या सांस लेते समय सीटी की आवाज आना, छाती में कफ जमा होना, सांस लेने में अचानक दिक्कत होना, रात के समय, खासकर सोते हुए ज्यादा कठिनाई महसूस होना आदि प्रमुख लक्षण हैं.
ट्रिगर करनेवाले प्रमुख कारण
अस्थमा अटैक के अहम कारणों में वायु प्रदूषण जिम्मेवार है. स्मोकिंग, धूल, कारखानों से निकलने वाला धुआं, धूप-अगरबत्ती और कॉस्मेटिक जैसी सुगंधित चीजों से दिक्कत बढ़ जाती है. इसमें खासतौर से फेफड़ों की जांच की जाती है, जिसके अंतर्गत स्पायरोमेट्री, पीक फ्लो और फेफड़ों के कार्य का परीक्षण शामिल हैं.
कुछ अन्य टेस्ट हैं, जैसे- मेथाकोलिन चैलेंज, नाइट्रिक ऑक्साइड टेस्ट, इमेजिंग टेस्ट, एलर्जी टेस्टिंग, स्प्‍यूटम इयोसिनोफिल्स टेस्ट के अलावा व्यायाम और अस्थमा युक्त जुकाम के लिए प्रोवोकेटिव टेस्ट किये जाते हैं.
लहसुन का सेवन है बेहद प्रभावी
सर्दी में अस्थमा से बचने के लिए लहसुन का सेवन बेहद प्रभावी है, क्योंकि इसमें मौजूद एल्लिसिन तत्व फेफड़ों की सूजन को कम करने में सहायक है. एंटीऑक्सिडेंट से भरपूर तत्व फेफड़ों से कार्सिनोजन को कम करने का कार्य करते हैं. इसके लिए गाजर, शकरकंद, टमाटर और पत्तेदार सब्जियों का सेवन करना फायदेमंद है.
अस्थमा से ग्रसित लोगों को विटामिन-सी से भरपूर फल खाना चाहिए, क्योंकि ये शरीर को ऑक्सीजन देने और फेफड़ों से विषाक्त पदार्थों को निकालने का काम करते हैं. पालक, ब्रोकली, चुकंदर, शतावरी और मसूर की दाल में मौजूद फॉलेट शरीर में फॉलिक एसिड में तब्दील होकर फेफड़ों को दुरुस्त करने का कार्य करते हैं.
बचाव के कदम
प्रदूषण एवं धुंध में जाने से बचें.
दवा का सेवन नियमित करें. इन्हेलर को साथ में रखें व जरूरत पड़ने पर प्रयोग करें.
छोटे बच्चे अगर अस्थमा के शिकार हैं, तो जाड़े में उन्हें पोषक तत्वों से भरपूर भोजन दें.
घर को साफ-सुथरा रखें. ध्यान रहे कि वैंटिलेशन की सुविधा बेहतर हो.
एसी व रूम हीटर का प्रयोग न ही करें तो बेहतर है.
महत्वपूर्ण तथ्य
भारत में अस्थमा रोगियों की संख्या लगभग 2.5 करोड़ है. 25 फीसदी लोग एलर्जी से प्रभावित हैं.
अनुमान के मुताबिक 5-11 वर्ष के 10-15 प्रतिशत बच्चों को अस्थमा का खतरा होता है.
डब्ल्यूएचओ के अनुसार, आज भी अस्थमा के सही कारणों का पता नहीं लगाया जा सका है. प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2015 में 3,83,000 मौतें केवल अस्थमा के कारण हुई हैं.
इनपुट्स : सौम्या ज्योत्सना
इन्हेलेशन थेरेपी
अस्थमा के लक्षण प्रकट होने पर फौरन डॉक्टर को दिखाना चाहिए और इस बीमारी को नियंत्रित करने का परामर्श लेना चाहिए. अस्थमा के उपचार में वायुमार्ग में सूजन को कम करने का प्रयत्न किया जाता है और किसी भी तरह की एलर्जी से बचने की सलाह दी जाती है. दमा का उपचार आमतौर पर इन्हेलर होता है, जो दमा की दवा लेने का सर्वश्रेष्ठ और सबसे सुरक्षित तरीका है.
ऐसा इसलिए, क्योंकि इन्हेलर पंप में मौजूद दवा (कोरटिकोस्टेरॉयड) सीधे फेफड़ों में जाती है और तुरंत राहत पहुंचाने का कार्य करती है. यह ध्यान देने योग्य है कि इन्हेलेशन थेरेपी में सीरप और टैब्लेट्स की तुलना में 10 से 20 गुना तक कम खुराक की जरूरत होती है और यही अधिक प्रभावी होती है, इसलिए इन्हेलर पंप ज्यादा कारगर साबित होते हैं. इसके अलावा खान-पान में जरूरी बदलाव करके भी अस्थमा के लक्षणों को कम किया जा सकता है.
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