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Friday, March 29, 2024

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स्मृति शेष : नहीं रहे ब्लैक होल का रहस्य समझानेवाले स्टीफन हॉकिंग…..जानें इनके बारे में

अनंत यात्रा पर अनंत का आग्रही स्टीफन हॉकिंग प्रोफेसर स्टीफन विलियम हॉकिंग का जन्म आठ जनवरी, 1942 को ऑक्सफोर्ड, इंग्लैंड में हुआ था. जब वे आठ वर्ष के थे तो उनका परिवार सेंट अल्बान्स आ गया, जहां 11 वर्ष की उम्र में सेंट अल्बान्स स्कूल में उनका दाखिला हुआ. स्कूली पढ़ाई खत्म करने के बाद […]

अनंत यात्रा पर अनंत का आग्रही स्टीफन हॉकिंग

प्रोफेसर स्टीफन विलियम हॉकिंग का जन्म आठ जनवरी, 1942 को ऑक्सफोर्ड, इंग्लैंड में हुआ था. जब वे आठ वर्ष के थे तो उनका परिवार सेंट अल्बान्स आ गया, जहां 11 वर्ष की उम्र में सेंट अल्बान्स स्कूल में उनका दाखिला हुआ.

स्कूली पढ़ाई खत्म करने के बाद 1959 में वे पढ़ने के लिए यूनिवर्सिटी कॉलेज, आॅक्सफोर्ड गये. स्टीफन गणित पढ़ना चाहते थे, जबकि उनके पिता की इच्छा उन्हें मेडिसिन पढ़ाने की थी. लेकिन उस कॉलेज में गणित नहीं था, सो उन्होंने नेचुरल साइंस में प्रवेश ले लिया. यहां से प्रथम श्रेणी में ऑनर्स करने के बाद वे कॉस्मोलाॅजी में शोध करने के लिए वर्ष 1962 में कैंब्रिज यूनिवर्सिटी चले गये. वर्ष 1965 में स्टीफन ने ‘प्राॅपर्टीज ऑफ एक्सपैंडिंग यूनिवर्सेज’ विषय में अपनी थीसिस पूरी की और पीएचडी से नवाजे गये. 1973 में कैंब्रिज यूनिवर्सिटी में वे बतौर रिसर्च असिस्टेंट नियुक्त किये गये. इसी वर्ष जॉर्ज एलिस के साथ उनकी पहली अकादमिक पुस्तक ‘द लार्ज स्केल स्ट्रक्चर ऑफ स्पेस-टाइम’ प्रकाशित हुई. इसके एक वर्ष बाद यानी 1974 में स्टीफन प्रतिष्ठित रॉयल सोसायटी के फेलो चुने गये.

1979 में कैंब्रिज यूूनिवर्सिटी में वे गणित के ल्यूकेसियन प्रोफेसर नियुक्त किये गये. इस पद पर नियुक्त होना बड़ी बात थी, क्योंकि आइजक न्यूटन सहित कई प्रख्यात वैज्ञानिक पहले भी इस पद को सुशोभित कर चुके थे. स्टीफन का काम बिग बैंग, ब्लैकहोल, व सापेक्षता के क्षेत्र में महत्वपूर्ण शोध करने तक ही सीमित नहीं था, बल्कि वे आम लोगों पर विज्ञान के प्रभाव को लेकर भी अपने विचारों को व्यक्त किया करते थे और उन पर चर्चा किया करते थे.

II अमिताभ पांडे II

खगोलविद्

स्टीफन हॉकिंग दुनिया के उन चंद वैज्ञानिकों में से थे, जिनकी बात सरलता से आम आदमी तक पहुंच पायी है. उन्होंने कई असाधारण शोधकार्यों को अंजाम दिया है. उनका व्यक्तित्व बहुआयामी रहा है.

आइन्सटाइन ने समय के बारे में पिछली सदी में एक नयी अवधारणा दी थी. आइन्सटाइन के सिद्धांत के सहारे हॉकिंग ने स्पेस और टाइम के बारे में यह बताया था कि दुनिया की रचना एक बड़े ‘महाविस्फोट’ के नतीजे से हुई थी, जिसे ‘बिग बैंग’ कहा जाता है. ब्रह्मांड के सभी पदार्थ एक बिंदु में समाहित रहे हैं. लेकिन पूछा जाता है कि आखिर यह बिग बैंग की घटना हुई कहां? वैज्ञानिक समुदाय इस सवाल का जवाब आसान तरीके से नहीं दे पा रहे थे. हॉकिंग ने इसे एक चुनौती की तरह लिया और बताया कि बिग बैंग केवल एक पदार्थ या ऊर्जा का विस्फोट नहीं था, बल्कि उस दौरान ही समय और उसके आयाम की शुरुआत हुई थी, जिसका नाम दिया- सिंगुलेरिटी. उन्होंने बताया कि उस विस्फोट में स्पेस और मैटेरियल, दोनों ही समाये हुए थे.

हॉकिंग ने अपनी गणितीय कलनों से यह बताने का प्रयास किया कि इस महान घटना से ही समय, पदार्थ, ऊर्जा आदि चीजों की शुरुआत हुई थी. उस वक्त से ही ब्रह्मांड की शुरुआत मानी जाती है. इस तथ्य को उन्होंने पुरजोर तरीके से प्रमाणित किया.

तारों का महाविस्फोट

दूसरी बात यह कि जब सूर्य से कई गुना बड़े तारों का महाविस्फोट होता है, तो वे ब्लैक होल में तब्दील हो जाते हैं. ब्लैकहोल भी कुछ इसी तरह की चीज है, जिसके भीतर भी ‘सिंगुलेरिटी’ है. उसके ही भीतर तारे का सारा पदार्थ एक खास बिंदु में समाहित होता है. वह अपने चारों ओर से स्पेस और टाइम को समेट लेता है. बिग बैंग की अपनी एक सीमा होती है, जिसके भीतर समय का कोई अस्तित्व नहीं होता, यानी उसके भीतर समय थम जाता है.

उन्होंने यह साबित किया कि ब्लैकहोल और बिग बैंग की घटना में एक प्रकार की समानता है. यदि कोई चीज उसके भीतर चली गयी, तो फिर उसे बाहर निकलने के लिए प्रकाश की गति से यात्रा करने की जरूरत होती है. आम तौर पर यह कुछ ही चीजों के लिए संभव हो पाता है. यानी सिंगुलेरिटी के भीतर ही सभी चीजें समाहित होती है.

क्वांटम फिजिक्स

वैज्ञानिकों में इस बात पर चर्चा होती रही है कि ब्लैकहोल के भीतर जब सारी चीजें समा गयीं, तो उसके बाद क्या? हॉकिंग ने यह साबित किया कि ब्लैकहोल भी पदार्थ का अंतिम पड़ाव नहीं है. उसके बाद भी ब्लैकहोल से रेडिएशन निकलेंगे, जिन्हें हॉकिंग रेडिएशन कहा गया. स्टीफन हॉकिंग की यह दूसरी महत्वपूर्ण खोज रही है. क्वांटम फिजिक्स और सापेक्षता के सिद्धांतों के आधार पर इसकी व्यापक संदर्भों में व्याख्या की, जो कि किसी भौतिकीविद द्वारा इस दिशा में किया गया सबसे सफल प्रयास माना जाता है.

इसमें दो धाराएं हैं- एक क्वांटम मैकेनिक है, जो पदार्थ की बहुत छोटी अवस्था की व्याख्या करता है, जिनका एक अलग नियम है, और दूसरा ब्रह्मांड का है, और इन दोनों में पहले कोई मेल नहीं दिखता था. हॉकिंग ने इन्हें आपस में जोड़ने की कोशिश की थी. इसमें वे बहुत हद तक कामयाब भी हुए.

सामाजिक मसलों से सरोकार

स्टीफन हॉकिंग दुनिया के ऐसे वैज्ञानिक थे, जिनकी दुनिया केवल प्रयोगशाला तक ही सीमित नहीं रही थी. दुनियाभर में वे मानवता और समाज से जुड़े अनेक सरोकारों से वे जुड़े रहे थे. वियतनाम युद्ध के दौरान लंदन में हुए अनेक प्रदर्शनों में उन्होंने बढ़-चढ़ कर हिस्सेदारी निभायी थी.

दुनियाभर में गरीबी, भुखमरी, बीमारी जैसी समस्याओं के संबंध में वे देश-समाज को आगाह करते रहे थे. आधुनिक व्यवस्था यानी सभ्यता में मौजूद अनेक खामियों के बारे में न केवल उन्होंने इंगित किया, बल्कि इस ओर लोगों को चेतावनी भी दी थी. पूंजीवादी व्यवस्था से पैदा होने वाली समाज में आर्थिक असमानता का उन्होंने समय-समय पर विरोध किया था. हॉकिंग ने चेतावनी दी कि बड़ी आबादी को यदि समुचित संसाधन नहीं मुहैया कराये गये, तो दुनिया में इनसानी सभ्यता नष्ट हो सकती है.

धरती बचाने पर जोर

पर्यावरण के मसले पर वे लगातार आगाह करते रहे थे. धरती को बचाने पर वे नियमित रूप से जोर देते रहे हैं. धरती पर रहने लायक परिस्थितियां प्रतिकूल होते जाने से वे धरती से इतर ग्रहों पर इनसानों को बसाने का विकल्प तलाशने पर जोर देते रहे. उन्होंने यह भी कहा था कि भविष्य में एलियन धरती पर आ सकते हैं, और शायद यहां वे कब्जा भी जमा सकते हैं.

ऑटोमेशन के प्रति िचंता

मौजूदा दौर में दुनियाभर में एआई यानी आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का प्रसार तेजी से बढ़ रहा है. लेकिन, इसमें मानव समाज को नकारा बनाने की व्यापक क्षमता को देखते हुए हॉकिंग ने इसे हमारे लिए खतरनाक बताया है.

हालांकि, वे तकनीक, ऑटोमेशन आदि के विरोधी नहीं थे, लेकिन उनकी चिंता इस बात से जुड़ी थी कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस कहीं इनसान को निकम्मा न बना दे. इस बारे में वे लगातार चेतावनी देते रहे थे कि तकनीक का इस्तेमाल इस तरीके से किया जाना चाहिए, ताकि उसका फायदा पूरी दुनिया को हो और उसे खुशहाली के लिए इस्तेमाल में लाया जा सके.

(कन्हैया झा से बातचीत पर आधारित)

भारत में हॉकिंग

महान वैज्ञानिक हॉकिंग जनवरी, 2001 में भारत यात्रा पर आये थे. यह उनकी दूसरी यात्रा थी. करीब 42 साल पहले वे 1959 में भारत आ चुके थे. तत्कालीन राष्ट्रपति केआर नारायणन के साथ राष्ट्रपति भवन में मुलाकात के दौरान उन्होंने कहा था कि इन चार दशकों में देश शानदार तरीके से बदल गया है.

उन्होंने गणित और भौतिकी में भारतीयों की प्रतिभा की प्रशंसा भी की थी. वे मुंबई स्थित टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च द्वारा स्थापित प्रथम सरोजिनी दामोदरन फेलोशिप सम्मान ग्रहण करने के लिए भारत आये थे. इस दौरान उन्होंने स्ट्रिंग थ्योरी पर आधारित सम्मेलन में भी हिस्सा लिया था और अनेक व्याख्यान दिये थे. इस यात्रा के दौरान आठ जनवरी को मुंबई में ही उन्होंने अपना 59वां जन्मदिन भी मनाया था. दिल्ली में उन्होंने 15 जनवरी को अल्बर्ट आइंस्टीन मेमोरियल लेक्चर भी दिया था और राजधानी के ऐतिहासिक स्थलों का भ्रमण किया था.

साल 1964 में कैंब्रिज यूनिवर्सिटी के ग्रेजुएट छात्र के रूप में पंजीकरण के कुछ ही दिनों बाद मैं एक ऐसे सहपाठी से मिला, जो पढ़ाई में मुझसे दो वर्ष आगे था. वह अपने पैरों पर खड़ा नहीं हो सकता था. वह बामुश्किल ही बोला पाता था. वे स्टीफन हॉकिंग थे.

वे अपक्षयीय रोग की चपेट में थे. माना जा रहा था कि वे ज्यादा दिन जिंदा नहीं रह पायेंगे, यहां तक कि वे पीएचडी भी पूरा नहीं कर पायेंगे, लेकिन आश्चर्य जनक रूप से उन्होंने 76 साल की जिंदगी पूरी की. वे केवल जिंदा ही नहीं रहे, बल्कि दुनिया के सबसे मशहूर वैज्ञानिकों में शुमार हुए. मैथमेटिकल फिजिक्स के क्षेत्र में वे दुनिया के अग्रणी रिसर्चर रहे. अंतरिक्ष, समय और ब्रह्मांड पर उनकी पुस्तक बेस्ट सेलिंग रही. प्रतिकूल परिस्थितियों में ये उपलब्धियां उनकी आश्चर्यजनक जीत रहीं. समस्त विषमताओं में उनकी उपलब्धियां मजबूत इच्छाशक्ति और संकल्प का सबसे उम्दा उदाहरण हैं.

प्रोफेसर लॉर्ड मार्टिन रीस, एस्ट्रोनॉमर रॉयल, फेलो ट्रिनिटी कॉलेज, पूर्व प्रोफेसर कॉस्मोलॉजी व एस्ट्रोफिजिक्स, यूनिवर्सिटी ऑफ कैंब्रिज

अमेरिका के बारे में

पिछले साल नवंबर में अमेरिकी वेबसाइट ‘वायर्ड’ को दिये लंबे साक्षात्कार में उन्होंने कुछ सौ सालों के बाद अमेरिका के वजूद को लेकर आशंका जाहिर की थी.

वर्तमान समय के बारे में बात करते हुए उन्होंने अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा छह मुस्लिम देशों के नागरिकों के अमेरिका आने पर पाबंदी पर सवाल उठाते हुए उन्होंने कहा था कि इससे इस्लामिक स्टेट को लेकर भ्रामक संकेत जायेगा.

उनका कहना था, ‘यह फैसला छह मुस्लिम देशों के नागरिकों को इस्लामिक स्टेट का आतंकवादी मानता है, पर इस सूची में अमेरिका के तीन मित्र देश- इराक, सऊदी अरब और कतर- शामिल नहीं हैं जो कथित तौर पर इस्लामिक स्टेट को धन जुटाने में मदद करते हैं. इस तरह का पूर्ण प्रतिबंध कारगर नहीं है और यह इन देशों के कुशल लोगों को चयनित करने में अमेरिका के लिए बाधक होगा.’ जलवायु परिवर्तन से ट्रंप के इनकार और पेरिस जलवायु समझौते से उनके अलग होने के निर्णय पर भी हॉकिंग ने अफसोस जताया था और कहा था कि ट्रंप अपने मतदाताओं को रिझाने में लगे हुए हैं.

इजरायल नहीं जाने का फैसला

वर्ष 2013 में इजरायल के तत्कालीन राष्ट्रपति शिमोन पेरेज ने जेरूसलम में एक सम्मेलन का आयोजन किया था जिसमें दुनियाभर के नामचीन बौद्धिक हिस्सा लेनेवाले थे. उस समय फिलीस्तीनियों के शोषण और उनके साथ हो रहे दुर्व्यवहार को लेकर इस सम्मेलन के बहिष्कार का आह्वान भी हुआ था.

हॉकिंग ने इस आह्वान पर सकारात्मक रुख दिखाते हुए सम्मेलन से अपना नाम वापस ले लिया था. पेरेज को भेजे एक संक्षिप्त पत्र में हॉकिंग ने लिखा था कि सम्मेलन में आने का उन्होंने अपना फैसला बदल दिया है. उन्होंने अपने मित्रों को बताया था कि ऐसा उन्होंने अपने फिलीस्तीनी सहकर्मियों की सलाह पर किया है. उससे पहले हॉकिंग चार बार इजरायल जा चुके थे. वर्ष 2006 में तेल अवीव स्थित ब्रिटिश दूतावास के अतिथि के तौर पर उन्होंने इजरायली और फिलीस्तीनी विश्वविद्यालय में व्याख्यान दिया था.

मोटर न्यूरॉन से थे पीड़ित

स्टीफन जब महज 21 वर्ष के थे, तभी उन्हें एमायोट्रॉपिट लैटरल स्कलेरोसिस (एएलएस) नामक मोटर न्यूरॉन बीमारी हो गयी, जिससे उनके शरीर के कई हिस्सों को लकवा मार गया. तब यह माना गया कि स्टीफन दो वर्ष से ज्यादा नहीं जी पायेंगे.

लेकिन सारी आशंकाओं को झूठलाते हुए स्टीफन ने न सिर्फ अपनी पीएचडी पूरी की बल्कि दशकों तक ब्रह्मांड को समझने के लिए उन्होंने कई महत्वपूर्ण शोध कार्य भी किये. बीमारी बढ़ने के कारण धीरे-धीरे उनका चलना-फिरना कम होता गया और वे व्हीलचेयर पर आ गये.

लेकिन उनके लिए चुनौतियां अभी खत्म नहीं हुई थीं और 1985 में न्यूमोनिया के कारण उनकी आवाज पूरी तरह से जाती रही. इसके बाद कैंब्रिज में उनके लिए बोलने वाली मशीन तैयार की गयी, जिसे एक सॉफ्टवेयर प्रोग्राम से जोड़ा गया. इसी इलेक्ट्रॉनिक आवाज के सहारे वे लोगों से बातें किया करते थे. स्टीफन ने अपनी शारीरिक कमियों को कभी भी खुद पर हावी होने नहीं दिया था.

अपनी शारीरिक अक्षमताओं के बावजूद वे लगातार यात्रा करते रहते थे और सार्वजनिक तौर पर व्याख्यान दिया करते थे. उन्होंने अपने पारिवारिक जीवन का भी भरपूर आनंद उठाया. उन्होंने वर्ष 1965 में जेन विल्डे से शादी की, जिनसे उनके तीन बच्चे हुए. बाद में इस दंपती का तलाक हो गया. 1995 में स्टीफन ने अपनी नर्स एलेन मैंसन से दूसरी शादी की लेकिन 2006 में एलेन व स्टीफन का तलाक हो गया.

शोध कार्य

प्रोफेसर स्टीफन हॉकिंग ने ब्रह्मांड को नियंत्रित करने वाले आधारभूत नियमों पर काफी समय तक काम किया था. उन्होंने कई साल अध्ययन के बाद यह सिद्धांत दिया कि चूंकि ब्रह्मांड की उत्पत्ति हुई है, तो इसका अंत भी होगा.

उन्होंने रोजर पेनरोज के साथ मिलकर आइंस्टाइन के सापेक्षता के सामान्य सिद्धांत पर काम किया और दर्शाया कि ब्रह्मांड की उत्पत्ति के साथ ही स्पेस और टाइम की शुरुआत हुई और इनका अंत ब्लैक होल्स में होगा. इस प्रकार दो सिद्धांतों को एक साथ मिलाकर स्टीफन हॉकिंग ने इस बात का निर्धारण किया कि ब्लैकहोल्स बिल्कुल शांत नहीं रहते हैं बल्कि इनसे विकिरण होता रहता है.

उन्होंने यह भी बताया कि बिग बैंग के बाद, प्रोटोन जैसे छोटे-छोटे ब्लैकहोल्स का भी निर्माण हुआ था. हालांकि वर्ष 2014 में उन्होंने अपने इस सिद्धांत को संशोधित करते हुए बताया कि पारंपरिक तौर पर कॉस्मोलॉजिस्ट ब्लैकहोल्स को जैसा समझते हैं वह वैसा नहीं हैं. उन्होंने यह भी बताया कि ब्रह्मांड की कोई सीमा नहीं है.

कई पुस्तकें भी लिखीं

स्टीफन हॉकिंग ने अपने शोध कार्य के अलावा कई पुस्तकें भी लिखी थीं. 1988 में ‘ए ब्रीफ हिस्ट्री ऑफ टाइम’ नाम से उनकी पहली पुस्तक आयी, जिसकी करोड़ों प्रतियां बिकी और यह अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बेस्ट सेलर रही. इसके अलावा उन्होंने ‘द यूनिवर्स इन ए नटशेल’, ‘ए ब्रीफर हिस्ट्री ऑफ टाइम’, ‘द ग्रैंड डिजाइन’ सहित कई अन्य पुस्तकें भी लिखीं.

उपलब्धियां

स्टीफन हॉकिंग को उनके कार्यों के लिए कई पुरस्कार और पदक प्रदान किये गये थे, जिनमें 1988 में वुल्फ फाउंडेशन प्राइज, 2006 में कॉप्ले मेडल और 2013 में मिले फंडामेंटल फिजिक्स प्राइज जैसे प्रतिष्ठित पुरस्कार शामिल हैं. वे रॉयल सोसायटी के फेलो और यूस नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेज और पोंटिफिकल एकेडमी ऑफ साइंसेज के सदस्य भी थे.

आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस पर

विश्वविख्यात वैज्ञानिक स्टीफन हॉकिंग दुनियाभर में तेजी से उभरती आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के नकारात्मक असर के बारे में आगाह करते रहे थे. हॉकिंग का मानना था कि पूरी तरह से विकसित आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (कृत्रिम बुद्धिमत्ता/ एआई) मानव जाति की विनाश कथा लिख सकती है.

उन्होंने यह चेतावनी ‘बीबीसी’ के उस सवाल के जवाब में दी थी, जो उनके बात करने के लिए इस्तेमाल होनेवाली तकनीक को दुरुस्त करने के संबंध में था, जिसमें शुरुआती स्तर की एआई शामिल हों. मालूम हो कि सैद्धांतिक भौतिकीविद् स्टीफन हॉकिंग को मोटर न्यूरॉन बीमारी एमियोट्रोफिक लेटरल स्कलेरोसिस (एएलएस) थी और वह बोलने के लिए इंटेल के विकसित एक नये सिस्टम का इस्तेमाल करते थे.

प्रोफेसर हॉकिंग कहते थे कि अब तक विकसित कृत्रिम बुद्धिमत्ता के शुरुआती प्रकार बेहद उपयोगी साबित हो चुके हैं, लेकिन उन्हें हमेशा इस बात की आशंका रही कि इसका असर ऐसी चीज को बनाने पर पड़ सकता है, जो इंसान जितनी या उससे भी ज्यादा बुद्धिमान हो. इस संदर्भ में उन्होंने एक बार आशंका जतायी थी, ‘आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस एक दिन अपना नियंत्रण अपने हाथ में ले लेगा और खुद को फिर से तैयार करेगा, जो हमेशा बढ़ता ही जायेगा.’ चूंकि जैविक रूप से इंसान का विकास धीमा होता है, लिहाजा वह ऐसे सिस्टम से प्रतियोगिता नहीं कर पायेगा और पिछड़ जायेगा.’

आग का गोला बन सकती है धरती

ब्रिटेन के वैज्ञानिक स्टीफन हॉकिंग ने पिछले वर्ष ही यह चेतावनी दी थी कि यदि अभी से ही मुकम्मल उपाय नहीं शुरू किये गये, तो आगामी पांच-छह सदी से भी कम समय में हमारी धरती आग का गोला बन सकती है.

इससे धरती पर से इनसान का अस्तित्व खत्म हो सकता है. बढ़ती आबादी और व्यापक मात्रा में ऊर्जा की खपत के संबंध में एक कार्यक्रम में उन्होंने चिंता जताते हुए कहा था कि अगले कुछ लाख वर्षों तक सभी जीवों का अस्तित्व बना रहे, इसके लिए हम इनसानों को कुछ ऐसा करना होगा जो पहले कभी नहीं किया गया.

धरती से इतर ग्रहों की तलाश जरूरी

धरती पर संसाधनों के दाेहन और यहां रहने में होने वाली मुश्किलों को देखते हुए हॉकिंग ने सौरमंडल के पास स्थ‍ित किसी रहने लायक ग्रह को तलाशने पर जोर दिया था. उन्होंने दावा किया था कि आगामी एक सदी के बाद यह धरती रहने लायक नहीं रहेगी. गौरतलब है कि हमारे सौरमंडल से सबसे करीब स्थ‍ित तारों का समूह ‘अल्फा सेंचुरी’ भी करीब चार अरब प्रकाश वर्ष दूर है.

वैज्ञानिकों को उम्मीद है कि इस समूह में ऐसे ग्रह मिल सकते हैं, जहां हमारी पृथ्वी के जैसे जीवन संभव हो सकता है. इस ग्रह पर यात्रा करने के लिए उन्होंने ब्रेकथ्रू स्टार शॉट नामक एक वेंचर का समर्थन किया था. इस वेंचर की योजना एक छोटे विमान का ऐसा सिस्टम बनाने की है, जो दो तेजी से वहां पहुंच सकता है.

बौद्धिक निर्वात छोड़ गये स्टीफन हॉकिंग

स्टीफन हॉकिंग के सिद्धांतों ने संभावनाओं के एक ब्रह्मांड को खोला, जिसकी खोज में हम और यह दुनिया लगी हुई है. क्या आप अतिसूक्ष्म गुरुत्वीय क्षेत्र में एक सुपरमैन की तरह आपकी उड़ान जारी रखेंगे, जैसा कि आपने 2014 में स्पेस स्टेशन पर अंतरिक्ष यात्रियों से कहा था.

-नासा, अमेरिकी स्पेस एजेंसी

वे एक महान वैज्ञानिक और असाधारण मानव थे, जिनके कार्य और विरासत वर्षों तक बरकरार रहेंगे. बौद्धिकता और मनोवृत्ति के साथ उनके साहस और दृढ़ता ने दुनिया को प्रेरित किया. हम उन्हें हमेशा याद करते रहेंगे.

-स्टीफन हॉकिंग की संतानें, लूसी, रॉबर्ट और टिम

हमने एक चमत्कारिक मस्तिष्क और अद्भुत आत्मा को खो दिया है. स्टीफन हॉकिंग की आत्मा को शांति मिले.

-टिम बर्नर्स ली, वर्ल्ड वाइड वेब के अाविष्कारक

स्टीफन हॉकिंग के जाने से एक बौद्धिक निर्वात उत्पन्न हो गया है. लेकिन, यह खाली नहीं है. इसको एक प्रकार से वैक्कम एनर्जी के तौर पर सोचा जा सकता है, जो स्पेसटाइम के फैब्रिक पर व्याप्त हो रही है.

-नील डिग्रेसी टायसन, अमेरिकी एस्ट्रोफिजिशिस्ट व ट्विटर सेलीब्रेटी

स्टीफन हॉकिंग को एएलएस (एम्योट्रोफिक लेटरल स्क्लेरोसिस) बीमारी थी, शुरुआती उपचार के समय दो वर्ष जिंदा रहने की बात कही गयी थी. उन्होंने 55 वर्ष और जिंदगी के पूरे किये. वे मटीरियल पर मस्तिष्क की उत्कृष्टता की बेहतर परिभाषा थे.

-फिल प्लाइट, एस्ट्रोनॉमर

स्टीफन सही मायनों में जीनियस थे. उनका आम लोगों के साथ बड़ा जुड़ाव था. जब उनकी किताब ‘ए ब्रीफ हिस्ट्री ऑफ टाइम’ प्रकाशित हुई, तो लोगों ने सोचा कि फिजिक्स की यह किताब बिकेगी नहीं, लेकिन वे जानते थे कि लोग इस किताब को जरूर पढ़ेंगे. ब्रह्मांड और ब्लैकहोल के प्रति लोगों की जागरूकता के बारे में उन्होंने जो सोचा था, वह बिल्कुल सही निकला.

-कैथरीन मैथिसन, मुख्य कार्यकारी, ब्रिटिश साइंस एसोसिएशन

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