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झारखंड आंदोलन के दस्तावेज : अनमोल रत्न
II अनुज कुमार सिन्हा II झारखंड, झारखंड आंदाेलन, झारखंड की संस्कृति आदि पर सैकड़ाें पुस्तकें प्रकाशित हाे चुकी हैं. इसके बावजूद एक बड़ी कमी काे आज तक किसी पुस्तक ने पूरा नहीं किया था. वह कमी थी झारखंड आंदाेलन के दुर्लभ दस्तावेजाें के बारे में जानकारी. इस कमी काे दूर किया है वीर भारत तलवार […]
II अनुज कुमार सिन्हा II
झारखंड, झारखंड आंदाेलन, झारखंड की संस्कृति आदि पर सैकड़ाें पुस्तकें प्रकाशित हाे चुकी हैं. इसके बावजूद एक बड़ी कमी काे आज तक किसी पुस्तक ने पूरा नहीं किया था. वह कमी थी झारखंड आंदाेलन के दुर्लभ दस्तावेजाें के बारे में जानकारी. इस कमी काे दूर किया है वीर भारत तलवार की पुस्तक झारखंड आंदाेलन के दस्तावेज ने.
गाजियाबाद की प्रकाशन संस्था नवारुण ने इस पुस्तक काे प्रकाशित किया है.लेखक वीर भारत तलवार ने इस पुस्तक में 1954 से लेकर 1987 तक के झारखंड आंदाेलन के उन कई दुर्लभ दस्तावेजाें काे पुस्तक के माध्यम से सामने लाया है, जिसे लाेग पढ़ना चाहते हैं, जिसके बारे में जानना चाहते हैं, लेकिन ये दस्तावेज कहीं आसानी से उपलब्ध नहीं थे. इन दस्तावेजाें काे जमा करना आसान नहीं था. वीर भारत तलवार सिर्फ लेखक नहीं हैं. वह झारखंड आंदाेलन के हिस्सा रहे हैं.
लंबा समय झारखंड के जंगलाें में गुजारा है. झारखंड के आंदाेलनकारियाें से उनके निजी संबंध रहे हैं आैर उन्हें करीब से देखा है. लगभग हर बड़े आंदाेलन, कार्यक्रम, सम्मेलन के वे गवाह रहे हैं. जब शिबू साेरेन का टुंडी आंदाेलन चरम पर था, उन दिनाें पारसनाथ की पहाड़ियाें में जाकर वीर भारत तलवार ने लड़ाई काे देखा-समझा है. झारखंड के आंदाेलनकारियाें, उनके विचाराें, उनके दलाें की विचारधारा काे करीब से देखा है, समझा है. यही कारण है कि इस पुस्तक में दस्तावेजाें के चयन में गहराई है.
पुस्तक काे पढ़ने से साफ लगता है कि लेखक ने अभी के झारखंड की पीड़ा काे गहराई से महसूस किया है. लंबे संघर्ष के बाद झारखंड राज्य मिला. लेकिन जिस झारखंड की कल्पना आंदाेलन के दाैरान आंदाेलनकारियाें की थी, जाे सपना देखा था, वैसा झारखंड बन नहीं पाया.
वह सपना पूरा नहीं हाे पाया. वीर भारत तलवार ने इस पुस्तक के माध्यम से दाे महत्वपूर्ण बाताें काे सामने लाने का प्रयास किया है. पहला कि जिन लाेगाें ने झारखंड की लड़ाई लड़ी, आंदाेलन के दाैरान ही उनके पास भविष्य के झारखंड का एक मॉडल तैयार था. चाहे वे जयपाल सिंह हाें, एनई हाेराे हाें, विनाेद बिहारी महताे, एके राय या शिबू साेरेन हाें, उन्हें अपने राज्य की हर छाेटी-बड़ी चीजाें की जानकारी थी . समय-समय पर आंदाेलनकारियाें की आेर से जब भी कहीं आयाेग-सरकार काे काेई ज्ञापन साैंपा गया, बारीकियाें से संसाधन आैर उन जानकारियाें काे इसमें शामिल किया गया.
लेखक ने जिन दस्तावेजाें काे पुस्तक में शामिल किया है, वे इस बात के प्रमाण हैं कि झारखंड आंदाेलन काेई दिशा-हीन आंदाेलन नहीं था. आंदाेलन का अपना एक साेच था. साफ शब्दाें में कहें ताे आंदाेलन के नेताआें के दिमाग में यह स्पष्टता थी कि जब झारखंड राज्य बनेगा ताे वह राज्य कैसा हाेगा, यहां के लाेगाें का, यहां के आदिवासियाें का, यहां के संसाधन के बल पर कैसे विकास हाेगा. इन नेताआें काे अपने राज्य की सबसे बड़ी ताकत यानी यहां के एक-एक खनिज, उसकी मात्रा के साथ-साथ एक-एक वन उत्पाद की भी जानकारी थी. इतना ही नहीं, इन उत्पादाें का सही इस्तेमाल कैसे हाे ताकि इसका लाभ झारखंड के लाेगाें काे मिले, इसकी भी याेजना उनके पास रही थी. वीर भारत तलवार आरंभ से ही स्पष्टवादी रहे हैं.
जब झारखंड के हित की बात रही है, अपनी बात कहने से वे कहीं नहीं चूके हैं. चाहे बुद्धिजीवी सम्मेलन की बात हाे या सेमिनार हाे. उन्होंने अपनी पुस्तक में साफ-साफ लिखा है कि झारखंड के राजनीतिक दल (खासकर झारखंड मुक्ति माेर्चा आैर आजसू) की विचारधारा बदल गयी. ऐसे ताे लेखक ने भाजपा काे भी आड़े हाथ लिया है, लेकिन झामुमाे आैर आजसू की इसलिए आलाेचना की है, क्याेंकि इन दलाें से उम्मीद थी.
झामुमाे आैर आजसू काे सत्ता में रहने का माैका मिला, लेकिन इसके बावजूद इन दलाें ने उन वादाें काे नहीं निभाया, जाे वादा उन्हाेंने राज्य बनने के पहले किया था. इन दलाें ने झारखंड बनने के पहले वादा किया था, इसके प्रमाण के लिए झारखंड मुक्ति माेर्चा के पहले केंद्रीय महाधिवेशन के निर्णय, 1978 के बुद्धिजीवी सम्मेलन में शिबू साेरेन द्वारा दिये गये भाषण काे भी प्रकाशित किया है. यानी लेखक ने पुस्तक के जरिये ऐसे दलाें-नेताआें काे आईना दिखाया है.
पुस्तक की खासियत है राज्य पुनर्गठन आयाेग काे 1954 में दिया गया ज्ञापन. जयपाल सिंह के सबसे करीबी सुशील बागे ने यह दुर्लभ दस्तावेज दिया था.
इस ज्ञापन के परिशिष्ट बी में इस बात का उल्लेख है कि कैसे झारखंड में (यहां जंगल है) लकड़ी आैर फर्नीचर उद्याेग, माचिस डिबिया उद्याेग, कागज उद्याेग, बांस आधारित उद्याेग, बीड़ी उद्याेग, महुआ उद्याेग, लाह उद्याेग, जड़ी बूटी उद्याेग, शहद उद्याेग, खैर उद्याेग, मुर्गी-मछली पालन उद्याेग काे बढ़ावा देकर यहां की अर्थ व्यवस्था मजबूत की जा सकती है. 1973 में झारखंड पार्टी की आेर से एनई हाेराे ने तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी काे ज्ञापन साैंपा था. इसमें न सिर्फ झारखंड अलग राज्य की मांग की थी बल्कि राज्य कैसे चलेगा, इसका भी ब्याेरा था. इस पुस्तक में 1978 में शालपत्र द्वारा आयाेजित झारखंड क्षेत्रीय बुद्धिजीवी सम्मेलन की विस्तार से चर्चा है. एनई हाेराे, विनाेद बिहारी महताे, शिबू साेरेन ने उस सम्मेलन में झारखंड के बारे में क्या-क्या कहा था, सभी की विस्तार से चर्चा है.
झारखंड पर इतना बड़ा-व्यापक आैर गंभीर बुद्धिजीवी सम्मेलन (स्वागत भाषण निर्मल मिंज) शायद 1978 के बाद अभी तक नहीं हाे पाया है. चाहे राज्य लेने की बात हाे, यहां की भाषा-संस्कृति का मामला हाे या फिर झारखंड क्षेत्र के विकास का आर्थिक मॉडल हाे, सम्मेलन में सभी पर चर्चा हुई थी. पेपर बना था. ये आज भी सामयिक हैं आैर धराेहर हैं. चिंतक-लेखक सीताराम शास्त्री, एके राय के दुर्लभ आैर दिशा देनेवाले लेखाें काे भी इस पुस्तक में जगह दी गयी है. ये लेख पुस्तक काे आैर महत्वपूर्ण बनाते हैं.
झारखंड का जैसा सपना पुरखा आंदाेलनकारियाें ने देखा था, अगर वैसा झारखंड बनाना है, उसमें वीर भारत तलवार की यह पुस्तक दिशा दिखाने का काम करेगी, इसमें काेई भी शक नहीं है. लेखक वीर भारत तलवार ने झारखंड आंदाेलन के दस्तावेजाें (ऐतिहासिक धराेहराें) काे पुस्तक के रूप में प्रकाशित कर न सिर्फ ऐतिहासक काम किया है, बल्कि झारखंड, झारखंडी समाज पर बड़ा उपकार किया है. इतिहास आैर झारखंड समाज उन्हें सदा याद रखेगा.
वीर भारत तलवार: एक परिचय
जमशेदपुर में 1947 में जन्मे वीर भारत तलवार अारंभ से झारखंड आंदाेलन के समर्थक रहे हैं. जेएनयू में लंबे समय तक अध्यापन कार्य से जुड़े रहे. 1970 के दशक में लंबे समय तक पूर्णकालिक कार्यकर्ता काे ताैर पर वामपंथ आंदाेलन से जुड़े रहे. झारखंड आंदाेलन काे बाैद्धिक दिशा आैर आकार देने में सक्रिय रहे. फिलहाल, शालपत्र आैर झारखंड वार्ता का संपादन किया. आदिवासी इलाकाें में बड़े बांधाें के विकल्प पर शाेध कार्य.
झारखंड के चप्पे-चप्पे से परिचित. आदिवासी इलाकाें आैर आदिवासियाें की समस्याआें की गहरी जानकारी. दर्जनाें पुस्तकें प्रकाशित. नक्सलबाड़ी के दाैर में आैर झारखंड के आदिवासियाें के बीच पुस्तक बहुत ही चर्चित. अन्य पुस्तकाें में किसान, राष्ट्रीय आंदाेलन आैर प्रेमचंद, राष्ट्रीय नवजागरण आैर साहित्य, रस्साकशी आदि. भगवान बिरसा पुरस्कार समेत अनेक पुरस्काराें से सम्मानित.
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