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सऊदी अरब की सियासत में घमासान, वर्चस्व के लिए शाही परिवार में बढ़ा मतभेद

राजनीतिक अस्थिरता बादशाह सलमान के पुत्र और राजगद्दी के वारिस मोहम्मद बिन सलमान ने अपने परिवार के प्रभावशाली शहजादों के विरुद्ध कार्रवाई कर सऊदी शाही परिवार की आंतरिक राजनीतिक स्थिरता में खलबली मचा दी है. सौ अरब डॉलर से अधिक के भ्रष्टाचार के कथित आरोपों में दो सौ से अधिक राजकुमार, मंत्री और अधिकारी बंदी […]

राजनीतिक अस्थिरता

बादशाह सलमान के पुत्र और राजगद्दी के वारिस मोहम्मद बिन सलमान ने अपने परिवार के प्रभावशाली शहजादों के विरुद्ध कार्रवाई कर सऊदी शाही परिवार की आंतरिक राजनीतिक स्थिरता में खलबली मचा दी है.

सौ अरब डॉलर से अधिक के भ्रष्टाचार के कथित आरोपों में दो सौ से अधिक राजकुमार, मंत्री और अधिकारी बंदी हैं. एक ओर इसे सऊदी राज्य के आधुनिकीकरण की दिशा में उठाया गया कदम माना जा रहा है, तो दूसरी ओर इसे शासन पर मोहम्मद के एकछत्र कब्जे की कवायद के रूप में देखा जा रहा है. देश के भीतर और अरब दुनिया में इस प्रकरण के गंभीर प्रभाव पड़ने की आशाएं और शंकाएं जतायी जा रही हैं. मौजूदा घटनाक्रम के विभिन्न आयामों के विश्लेषण के साथ प्रस्तुत है आज का इन-डेप्थ…

ब्रह्मानंद िमश्र

क रीब तीन करोड़ की आबादी वाले इस इस्लामिक मुल्क में भ्रष्टाचार एक बड़ा मुद्दा रहा है. लेकिन भ्रष्टाचार के मसले पर जिस तेजी से शाही परिवार के सदस्यों को हिरासत से में लिया गया, उस पर विशेषज्ञ अलग-अलग तरह की अटकलें लगा रहे हैं. माना जा रहा है कि सत्ता पर पूरा अधिकार हासिल करने के मकसद से क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान एक सोची समझी रणनीति के तहत इस तरह के साहसिक फैसले कर रहे हैं.

संभावित चुनौतियों से निपटने की सनक!

किंग सलमान और क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान के निर्देश पर भ्रष्टाचार के आरोप में सऊदी पुलिस ने 11 शहजादों, दर्जनों अधिकारियों और बड़े व्यवसायियों समेत कई लोगों को हिरासत में लिया है. अपने पिता के शासन में बीते जून में क्राउन प्रिंस बनने के बाद बिन सलमान ने जिस तरह से एक के बाद एक बड़े व परिवर्तनकारी फैसले लिये हैं, उससे इस तरह की कार्रवाई के कई निष्कर्ष

निकाले जा रहे हैं. अब तक शाही परिवार और धार्मिक प्रतिष्ठानों के फैसलों पर केंद्रित

रहनेवाले सऊदी राजनीति तंत्र में पूरे घटनाक्रम को बड़े बदलाव की आहट के रूप में देखा जा रहा है.

कैसे बढ़ा बिन सलमान का राजनीतिक कद

मौजूदा घटनाक्रम की कहानी सऊदी शाही राजनीति के हालिया इतिहास में छिपी है. दरअसल, किंग अब्दुल्लाह के निधन के बाद जनवरी, 2015 में उनके सौतेले भाई सलमान बिन अब्दुल अजीज अल सऊद ने सत्ता संभाली. किंग सलमान के सत्ता पर काबिज होने के बाद उनके 29 वर्षीय छोटे बेटे मोहम्मद बिन सलमान का राजनीतिक कद तेजी से उभरने लगा. प्रिंस सलमान को शुरुआत में रक्षा मंत्री का कार्यभार सौंपा गया. इसके बाद प्रिंस सलमान का प्रभाव घरेलू राजनीति के साथ विदेश संबंधों पर स्पष्ट तौर पर दिखने लगा.

जून 2017 में क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन नाएफ को वह हटवाने में सफल रहे और उसके बाद पिता के उत्तराधिकारी बनने का उनका रास्ता साफ हो गया.

वर्चस्व के लिए कई लोगों पर गाज

मौजूदा हालातों के मद्देनजर यह स्पष्ट हो चुका है कि किंग सलमान और क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान सऊदी अरब के इतिहास में सबसे शक्तिशाली शासक बनने की राह पर आगे बढ़ चुके हैं.

जून, 2017 में क्राउन प्रिंस बनने से पहले बिन सलमान ने अप्रैल, 2016 में धार्मिक पुलिस के व्यक्तिगत गिरफ्तारी के अधिकार को खत्म कर दिया था, जिसे सऊदी के शक्तिशाली इस्लामिक धार्मिक प्रतिष्ठानों पर सीधी कार्रवाई के रूप में देखा गया.

इसके बाद संभावित चुनौतियों को खत्म करने के मकसद से एक के बाद एक प्रभावी लोगों को किनारे लगाने का सिलसिला शुरू हुआ. पिछले हफ्ते नेशनल गार्ड्स के मंत्री प्रिंस मितब बिन अब्दुल्ला और नेवी के कमांडर एडमिरल अब्दुल्ला बिन को सुल्तान को हटाने का फरमान जारी हुआ. मितब पूर्व किंग अब्दुल्लाह के बेटे हैं. प्रमुख पदों से शाही परिवार के सदस्यों को हटाने के बाद क्राउन प्रिंस का शासन की रक्षा, सुरक्षा और अर्थनीति पर एकछत्र वर्चस्व हो गया.

प्रिंस सलमान सुधारवादी या तानाशाह?

विश्लेषकों की नजर में क्राउन प्रिंस सलमान में भले तजुर्बे की कमी हो, लेकिन समर्थकों और विरोधियों द्वारा उन्हें देखने का नजरिया बिल्कुल अलग है. क्राउन प्रिंस के समर्थक सऊदी को आधुनिक बनाने के उनके प्रयासों की सराहना करते हैं और उन्हें सुधारवादी के तौर पर देखते हैं.

हालांकि, प्रभावी भूमिका में आने के बाद बिन सलमान धार्मिक रूढ़िता को तोड़ने में कामयाब हुए हैं. उन्होंने महिलाओं को ड्राइविंग के लिए अनुमति देने जैसे कई साहसिक कदम उठाये हैं. तेल के निर्यात पर टिकी अर्थव्यवस्था में बड़ा सुधार और आधुनिकीकरण पर जोर दिया है. लेकिन, विदेश नीति के मोर्चे पर अब तक के उनके फैसले विनाशकारी साबित हुए हैं. यमन में सऊदी अरब की बढ़ती दखलअंदाजी से भड़के गृहयुद्ध में 13,500 मौतें हो चुकी हैं. दूसरी ओर कतर के साथ राजनयिक विवाद की जड़ों में क्राउन प्रिंस की बड़ी भूमिका रही है.

अरब के सबसे ताकतवर शख्स शहजादा सलमान

मो हम्मद उन कुछ सऊदी शहजादों में से हैं जिन्होंने अपनी पढ़ाई देश के भीतर ही की और बहुत कम उम्र से ही विभिन्न सरकारी जिम्मेदारियां निभाना शुरू कर दिया. इसी वजह से वर्ष 2015 में सलमान बिन अब्दुल अजीज अल सऊद ने बादशाह बनने के बाद जब अपने पुत्र मोहम्मद बिन सलमान को सऊदी अरब का रक्षा मंत्री नियुक्त किया था, तो बाहरी दुनिया को इस नौजवान के बारे में कुछ मालूम न था. लेकिन आज यह शहजादा न सिर्फ सऊदी अरब में, बल्कि पूरे अरब का सबसे ताकतवर व्यक्ति बन गया है. जाहिर है कि उनके पीछे बादशाह सलमान का हाथ है.

इस वर्ष जून में मोहम्मद बिन नाएफ को हटाकर उन्हें क्राउन प्रिंस बनाया गया था. क्राउन प्रिंस बादशाह के बाद सबसे बड़ा पद तो है ही, साथ ही वह राजगद्दी का आधिकारिक वारिस होता है. अगर वे बादशाह बनते हैं, तो सऊदी अरब के सबसे युवा बादशाह होंगे. बादशाहत की अपनी दावेदारी को पुख्ता करने के लिए इन दिनों मोहम्मद शाही परिवार के प्रभावशाली शहजादों को हाशिये पर धकेलने की जुगत में लगे हैं.

अपने देश में ‘एमबीएस’ के नाम से ख्यात सलमान का जन्म 31 अगस्त, 1985 को हुआ था. वे बादशाह की तीसरी पत्नी फहदाह बिन फलह बिन सुल्तान के सबसे बड़े बेटे हैं. रियाद के शाह सऊद विश्वविद्यालय से उन्होंने कानून की पढ़ाई की है और उन्हें प्रशासन के विभिन्न क्षेत्रों में काम करने का अनुभव है.

उनकी पहली बड़ी जिम्मेदारी 2009 में मिली थी, जब उन्हें अपने पिता का विशेष सलाहकार नियुक्त किया गया था. सलमान उन दिनों राजधानी रियाद के गवर्नर थे. सलमान के क्राउन प्रिंस बनने के बाद 2013 में उन्हें क्राउन प्रिंस के दरबार का प्रमुख बनाया गया.

वर्ष 2012 में सलमान मोहम्मद बिन नाएफ के पिता नाएफ बिन अब्दुल अजीज की मौत के बाद क्राउन प्रिंस का पद मिला था. जनवरी, 2015 में बादशाह अब्दुल्लाह की मौत के बाद सलमान राजगद्दी पर बैठे. उस समय उनकी उम्र 79 वर्ष थी. तुरंत ही उन्होंने अपने बेटे को रक्षा मंत्री और मोहम्मद बिन नाएफ को डिप्टी क्राउन प्रिंस बना दिया.

रक्षा मंत्री के रूप में मोहम्मद बिन सलमान ने पहला काम यमन में सैन्य हस्तक्षेप के रूप में किया. ईरान-समर्थित हूथी विद्रोह के कारण यमनी राष्ट्रपति मंसूर हादी को देश छोड़ कर सऊदी अरब में शरण लेना पड़ा था. वे तब से वहीं हैं.

सलमान ने मार्च, 2015 में अन्य अरब देशों के साथ मिल कर यमन में सैन्य हस्तक्षेप शुरू कर दिया. यह संघर्ष अब भी जारी है और इसकी वजह से वहां भीषण मानवीय संकट पैदा हो गया है.

उसी वर्ष अप्रैल में सलमान ने विरासत को लेकर महत्वपूर्ण फैसले लेते हुए मोहम्मद बिन नाएफ को क्राउन प्रिंस और अपने बेटे को डिप्टी क्राउन प्रिंस, सेकंड डिप्टी प्राइम मिनिस्टर और काउंसिल ऑफ इकोनॉमिक एंड डेवलपमेंट अफेयर्स का प्रमुख बना दिया. मोहम्मद बिन सलमान ने सऊदी अरब की अर्थव्यवस्था और सामाजिक ढांचे में बड़े बदलाव के इरादे से विजन 2030 के तहत एक महत्वाकांक्षी योजना बनायी है.

स्वच्छ ऊर्जा के इस्तेमाल, तेल उत्पादन का आधुनिकीकरण, निजीकरण को बढ़ावा, महिलाओं को कार चलाने की अनुमति, उदारवादी इस्लाम को लागू करने जैसे फैसले इसी योजना के तहत लिये जा रहे हैं. सऊदी राजकुमारों, मंत्रियों और अधिकारियों के खिलाफ चल रही मौजूदा कार्रवाई को भ्रष्टाचार के विरुद्ध कदम की संज्ञा देकर प्रचारित किया जा रहा है.

मोहम्मद ने बहुत कम समय में ही विभिन्न देशों के नेताओं से संपर्क स्थापित किया है. अमेरिका, ब्रिटेन और फ्रांस जैसे परंपरागत मित्र-देशों के साथ उन्होंने रूस से भी संबंध मजबूत किये हैं.

अंतरराष्ट्रीय राजनीति और

सऊदी दांव

प्रकाश के रे

सऊदी शहजादे मोहम्मद बिन सलमान को इस खेल में अमेरिका समेत पश्चिमी देशों, इजरायल और रूस का समर्थन मिल रहा है. अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के दामाद और नजदीकी सलाहकार कुशनेर उनके मित्र हैं. अमेरिकी रक्षा सचिव जिम मैटिस से वे अनेक बार मिल चुके हैं. ट्रंप की पहली विदेश यात्रा सऊदी अरब की ही थी और उनके आतिथ्य की पूरी जिम्मेदारी मोहम्मद ने ही संभाली थी. इससे पहले भी वे राष्ट्रपति से मिल चुके थे. बराक ओबामा सऊदी मीडिया नेटवर्क अल-अरबिया से एक साक्षात्कार में मोहम्मद की भूरि-भूरि प्रशंसा कर चुके हैं.

इन दिनों लेबनान के प्रधानमंत्री साद हरीरी सऊदी अरब में हैं. लेबनान का कहना है कि उन्हें बंधक बनाया गया है. उन्होंने कुछ दिन पहले रियाद से ही अपने इस्तीफे की घोषणा की थी. सऊदी अरब का कहना है कि हरीरी को ईरानी प्रभाव वाले शासन में मात्र ‘रबर स्टांप’ की हैसियत है तथा ईरान को दखल देने से परहेज करना चाहिए. अब हरीरी ने अपनी ही सरकार से जान का खतरा बताया है और अपने इस्तीफे को वापस लेने की बात कही है.

इस स्थिति में ईरान-सऊदी तनाव के गहन होने की आशंका बढ़ गयी है. पहले से ही दोनों देश यमन और सीरिया में अपने समर्थक गुटों के साथ आमने-सामने हैं. यमन के राष्ट्रपति को भी परिवार-समेत सऊदी अरब में रखा गया है और उनकी वापसी पर प्रतिबंध लगा दिया गया है. ईरान को लेकर अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप और इजरायली प्रधानमंत्री की कटुता के कारण सऊदी शासन को इनका पूरा समर्थन है तथा गाहे-ब-गाहे दोनों देशों ने इस बात का इजहार भी किया है.

कतर को हाशिये पर डालने और इसमें खाड़ी देशों का समर्थन जुटाने में भी मोहम्मद की बड़ी भूमिका मानी जाती है. पिछले दिनों फ्रांस के राष्ट्रपति मैक्रां की अचानक सऊदी यात्रा को इस पूरी कड़ी का हिस्सा माना जा रहा है. अरब में अपने हितों की रक्षा के लिए ब्रिटेन और अन्य यूरोपीय देश भी सऊदी शाही खानदान की घटनाओं में दखल देने से बचने की कोशिश करेंगे.

हालांकि सीरियाई राष्ट्रपति को मिल रहा रूसी समर्थन सऊदी अरब के लिए नाराजगी की वजह हो सकता है, पर तेल की कीमतों का गणित राजनीति पर हावी है. तेल की कीमतों में हालिया बढ़ोतरी का बड़ा कारण दोनों देशों की साझेदारी है. बाजार पर नजर रखनेवाले बता रहे हैं कि अगर यह रिश्ता खराब होता है, तो कीमतें गिर जायेंगी, और यह दोनों देशों के लिए घाटे का सौदा होगा.

प्रतिबंधों के कारण रूस तेल की कमाई पर अधिक निर्भर है तथा सऊदी अरब की अर्थव्यवस्था में कमी का सबसे बड़ा कारण कीमतों में गिरावट ही रही है. बीते महीने बादशाह सलमान ने रूस का दौरा भी किया. ऐसा करनेवाले वे पहले सऊदी शाह हैं.

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