Advertisement
आइटी नौकरियों पर ग्रहण, गंभीर होती रोजगार की चुनौती
आर्थिक विकास की संतोषजनक गति के बावजूद रोजगार के अवसरों के सृजन का स्तर बेहद निराशाजनक है. हर साल बड़ी संख्या में युवा रोजगार की आशा में श्रम-बल में शामिल हो रहे हैं. कुछ महीने पहले ऑर्गेनाइजेशन ऑफ इकोनॉमिक कोऑपरेशन एंड डेवलपमेंट की रिपोर्ट में बताया गया था कि देश के 30 फीसदी से अधिक […]
आर्थिक विकास की संतोषजनक गति के बावजूद रोजगार के अवसरों के सृजन का स्तर बेहद निराशाजनक है. हर साल बड़ी संख्या में युवा रोजगार की आशा में श्रम-बल में शामिल हो रहे हैं.
कुछ महीने पहले ऑर्गेनाइजेशन ऑफ इकोनॉमिक कोऑपरेशन एंड डेवलपमेंट की रिपोर्ट में बताया गया था कि देश के 30 फीसदी से अधिक युवा न तो रोजगार में हैं और न ही शिक्षा या प्रशिक्षण में. अर्थव्यवस्था की वृद्धि और रोजगार के मौके मुहैया कराने के बीच में संतुलन स्थापित करने की जरूरत है. बीते सालों में आइटी सेक्टर रोजगार का बड़ा जरिया बन कर उभरा है, पर वहां भी नयी भर्तियां कम हो रही हैं और छंटनी के भी आसार हैं. अन्य प्रमुख सेक्टरों में भी हालात बेहतर नहीं हैं. इस मुद्दे के विभिन्न पहलुओं के विश्लेषण के साथ प्रस्तुत है आज का
संडे-इश्यू…
जुटाने होंगे वैकल्पिक रोजगार के अवसर
डाॅ अश्विनी महाजन
एसोसिएट प्रोफेसर,
दिल्ली विश्वविद्यालय
हाल ही में प्रकाश में आये आंकड़ों के अनुसार आइटी क्षेत्र में रोजगार के अवसर अब बढ़ने की बजाय, घटने शुरू हो गये हैं. महत्वूपर्ण बात यह है कि रोजगार इसलिए नहीं घट रहे कि आइटी का व्यवसाय घटा है, बल्कि वास्तविकता तो यह है कि आइटी क्षेत्र का विस्तार पहले से कहीं अधिक बढ़ रहा है, उसके बावजूद रोजगार बढ़ने के बजाय घटा है. उसी प्रकार से देश में बेरोजगारी बढ़ रही है, जबकि जीडीपी ग्रोथ बढ़ रही है. आखिर ऐसा क्यों है, इस विरोधाभास को समझने की जरूरत है.
प्रौद्योगिकी विकास के कारण घट रहा रोजगार
आइटी क्षेत्र के विकास के पहले पड़ाव में साॅफ्टवेयर विकास, संचार के साधनों आदि प्रौद्योगिकी विकास की महत्वपूर्ण भूमिका रही थी. इस दौरान हार्डवेयर एवं साॅफ्टवेयर, बीपीओ, एलपीओ एवं अन्यान्य प्रकार की कंपनियों का भारी विकास हुआ. टाटा कंसल्टेंसी, इंफोसिस सहित कई बड़ी कंपनियों का प्रादुर्भाव भारत में हुआ. इनके वैश्विक व्यवसाय के विस्तार का अंदाज इस बात से लगाया जा सकता है कि आज लगभग 60 अरब डाॅलर का साॅफ्टवेयर एवं अन्य आइटी सेवाओं का निर्यात देश से प्रतिवर्ष होता है.
यह क्षेत्र भारतीय इंजीनियरों एवं अन्य युवाओं को बड़ी मात्रा में रोजागर प्रदान कर रहा है. इसका यह भी असर हुआ कि इंजीनियरिंग काॅलेजों में आइटी, कंप्यूटर आदि विषय लोकप्रिय होने लगे. इस कारण बड़ी संख्या में निजी क्षेत्र में भी इंजीनियरिंग काॅलेज खुलने लगे. लेकिन, दुर्भाग्य से युवाओं की अपेक्षा के अनुरूप आइटी क्षेत्र में रोजगार का सृजन नहीं हो पाया. इसके दो कारण थे- पहला कारण यह था कि आइटी हार्डवेयर का अपेक्षित विकास देश में नहीं हो पाया.
जिस प्रकार का नीतिगत समर्थन हार्डवेयर उत्पादन को मिलना चाहिए था, वह नहीं मिला. सस्ते कंप्यूटर हार्डवेयर का विदेशों से आयात और देश में प्रौद्योगिकी के विकास के अभाव के चलते हमारी आइटी क्षेत्र में विदेशों पर निर्भरता लगातार बढ़ती गयी. इसलिए आइटी में अपेक्षित मात्रा में रोजगार निर्माण नहीं हो पाया.
दूसरे, साॅफ्टवेयर में लगातार विकसित होती प्रौद्योगिकी ने जहां रोजगार सृजन को प्रोत्साहित किया, साथ ही निरंतर विकसित होती प्रौद्योगिकी ने भी रोजगार घटाने का काम किया.
आज स्थिति यह है कि हम हर वर्ष 15 लाख इंजीनियर निर्माण कर रहे हैं, लेकिन उनमें से 10 प्रतिशत को भी उनकी योग्यता के अनुसार रोजगार प्रदान नहीं कर पा रहे. जिसक कारण इंजीनियरिंग में शिक्षा प्राप्त युवा बेरोजगार होते जा रहे हैं.
प्रौद्योगिकी विकास के कारण कैसे घटा रोजगार?
आइटी क्षेत्र में कृत्रिम प्रज्ञा (आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस) के विकास के कारण, मानवीय रोजगार की संभावनाएं घटने लगी हैं. उदाहरण के लिए पहले जहां टेलीफोन से बातचीत के आधार पर सूचनाओं का आदान-प्रदान होता था, अब स्वचलित माध्यमों से सूचनाओं का आदान-प्रदान होता है.
रेलवे, वायु यात्रा और यहां तक कि सड़क यात्रा का आरक्षण भी बिना किसी व्यक्ति के दखल के हो जाता है. जहां भी संभव होता है, रोबोट का उपयोग आइटी क्षेत्र में भी होने लगा है. ये सभी हमारे युवाओं को रोजगार से वंचित कर रहे हैं.
रोजगार सृजन की वृद्धि दर कम
वर्ष 1991 के बाद नयी आर्थिक नीति के बाद हम देखते हैं कि जीडीपी ग्रोथ में भारी वृद्धि हुई है. 1990 के पूर्व, जहां अधिकांश समय हमारी जीडीपी ग्रोथ मात्र 4 प्रतिशत से कम रही, 1991 के बाद जीडीपी ग्रोथ में उछाल दिखायी देता है. दसवीं और ग्यारहवीं पंचवर्षीय येाजनाओं (2002 से 2012) के दौरान हमारी जीडीपी ग्रोथ जहां लगभग 8 प्रतिशत वार्षिक रही, राेजगार सृजन की वृद्धि दर एक प्रतिशत से भी कम रही.
भूमंडलीकरण और नयी आर्थिक नीति के समर्थक लोगों का कहना रहा है कि ग्रोथ बढ़ने से रोजगार स्वयं बढ़ जायेगा. लेकिन ऐसा हो न सका. इसलिए जीडीपी की इस ग्रोथ को ‘जाॅबलेस ग्रोथ’ यानि रोजगारविहीन आर्थिक संवृद्धि कहा जाने लगा. लेकिन हाल ही में ‘आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस’ प्रौद्योगिकी के विकास के कारण, अब एक मात्र क्षेत्र जहां रोजगार सृजन थोड़ा बहुत बढ़ रहा था, अब घटने लगा है. यह अत्यंत चिंता का विषय है.
हाल ही में प्रकाशित ओइसीडी रिपोर्ट के अनुसार, हमारे देश में 15 से 29 वर्ष की आयुवर्ग के लगभग 31 प्रतिशत युवा न तो शिक्षण संस्थओं में हैं और न ही रोजगार मंे हैं. यानि युवा बेरोजगारी की इस परिभाषा के अनुसार, देश में युवा बेरोजगारी 31 प्रतिशत तक पहुंच रही है. श्रम मंत्रालय की रपट भी इसी स्थिति की ओर इंगित कर रही है.
युवा बेरोजगारी के नुकसान
इतनी बड़ी मात्रा में युवा बेरोजगारी कई मायने में चिंताजनक ही नहीं, भयावह भी है. ‘जनसांख्यिकीय लाभ’ जो भारत को मिलने की संभावना सबसे ज्यादा है, युवा बेरोजागरी के कारण नष्ट हो रहा है. इसलिए यह चिंताजनक है.
लेकिन, इससे ज्यादा यह एक भयावहता स्थिति की ओर इंगित कर रहा है. बढ़ी मात्रा में युवाओं में लगातार बेरोजगारी की स्थिति उन्हें अपराध की ओर ही नहीं, बल्कि राष्ट्रविरोधी गतिविधियों की ओर भी अग्रसर करती है. देश में युवाओं की आतंकवाद और नक्सली हिंसा में लिप्तता कहीं न कहीं युवा बेरोजगारी से संबद्ध है.
आर्थिक सुधारों के नाम पर एफडीआइ, बहुराष्ट्रीय कंपनियों, बड़े काॅरपोरेट आदि को बढ़ावा देने के समर्थक रोजगार वृद्धि का कोई भी माॅडल देने में असफल हो चुके हैं. हमें समझना होगा कि जीडीपी ग्रोथ स्वयं में समाधान नहीं देता. जीडीपी ग्रोथ होने पर भी यदि बेरोजगारी बढ़ती है या असमानताएं बढ़ती हैं, तो गरीब और वंचित का कोई भला होनेवाला नहीं.
लघु एवं कुटीर उद्योगों का विकास, गांवों में खाद्य प्रसंस्करण उद्योग, लघु क्षेत्र में सेवा क्षेत्र का विकास, रोजगार बढ़ानेवाली उपयुक्त प्रौद्योगिकी का विकास, उद्यमशीलता का विकास, उपयुक्त कौशल का निर्माण आदि कुछ उपाय हैं, जो रोजगार सृजन को बढ़ा सकते हैं. यह भी जरूरी है कि हम जीडीपी ग्रोथ के मोह को छोड़कर आय के समान वितरण और रोजगार सृजन के लिए रणनीति बनायें.
रोजगार के िलए संरचनात्मक सुधार की जरूरत
– कृषि पर निर्भर कार्यबल को कम करना होगा. इसका असर गैर-कृषि क्षेत्र के रोजगार पर भी पड़ता है. अन्य क्षेत्रों में ऐसे कार्यबल के लिए रोजगार की संभावनाओं को तलाशना होगा.
– गैर-कृषि क्षेत्रों में मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर पर नौकरियों के बोझ को कम करना होगा. यह सही है कि आर्थिक नियोजन में मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर की केंद्रीय भूमिका होती है, लेकिन तकनीकी बदलावों के इस दौर में जॉब घटने के आसार बढ़ रहे हैं.
– असंगठित क्षेत्र के कार्यबल को संगठित क्षेत्र में लाने का प्रयास करना होगा. संगठित क्षेत्र में उच्च गुणवत्ता व क्षमतावान कार्यबल की मांग बढ़ रही है. युवाओं की आकांक्षाओं को पूरा करने के लिए इस दिशा में प्रभावी कदम उठाना होगा. एक आंकड़े के मुताबिक, गैर-कृषि क्षेत्र में कार्यरत 2.43 करोड़ लोगों में 80 प्रतिशत से अधिक असंगठित क्षेत्र में है.
जॉबलेस ग्रोथ की वास्तविकता
विकास के मोर्चे पर भारत का प्रदर्शन हाल के वर्षों में संतोषजनक रहा है. अर्थव्यवस्था औसतन सात प्रतिशत से ऊपर ही रही है. आर्थिक सर्वेक्षण के मुताबिक, ग्रॉस वैल्यू एडेड (जीवीए) में 53 फीसदी से अधिक योगदान वाला सर्विस सेक्टर नौ प्रतिशत पर रहा है, जो कि दुनिया की प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं के सर्विस सेक्टर के अनुरूप उच्चतम रहा है.
लेकिन, दुर्भाग्य से यह पर्याप्त संख्या में नौकरियां पैदा करने में असफल रहा. यहां तक श्रम मंत्री को भी कहना पड़ा कि मौजूदा विकास जॉबलेस ग्रोथ पर आधारित है. यह समस्या कई यूरोपीय और एशियाई देशों के साथ है, जो पर्याप्त रोजगार पैदा कर पाने में असफल रहे हैं. सेंटर फॉर एक्विटी स्टडीज की इंडिया एक्सक्लूजन रिपोर्ट-2016 के अनुसार, तीन साल में मात्र 1.35 लाख रोजगार पैदा हुए, जो कि वर्कफोर्स में दाखिल लोगों की संख्या से भी कम है.
Prabhat Khabar App :
देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए
Advertisement