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थायरॉयड के लिए लाभकारी है जालंधर बंध
धर्मेंद्र सिंह एमए योग मनोविज्ञान बिहार योग विद्यालय, मुंगेर यह एक ऐसा अभ्यास है, जिसमें गरदन से जानेवाली नाड़ियों के जाल को नियंत्रित किया जाता है. इन सभी सूक्ष्म प्रवाहों को जालंधर बंध की मदद से प्रभावित किया जा सकता है. इससे थायरॉयड ग्रंथि को लाभ मिलता है. संस्कृत शब्द ‘बंध’ का अर्थ है बांधना, […]
धर्मेंद्र सिंह
एमए योग मनोविज्ञान
बिहार योग विद्यालय, मुंगेर
यह एक ऐसा अभ्यास है, जिसमें गरदन से जानेवाली नाड़ियों के जाल को नियंत्रित किया जाता है. इन सभी सूक्ष्म प्रवाहों को जालंधर बंध की मदद से प्रभावित किया जा सकता है. इससे थायरॉयड ग्रंथि को लाभ मिलता है.
संस्कृत शब्द ‘बंध’ का अर्थ है बांधना, कसना या जकड़ना. बंध के अभ्यासों में शारीरिक क्रिया कीप्रधानता होती है, जिसका प्रभाव प्राण शरीर पर प्रकट होता है.
अभ्यास की विधि : ध्यान के किसी भी आरामदायक आसन में बैठ जाएं. दोनों घुटने जमीन से सटे होने चाहिए. दोनों हथेलियां घुटनों के ऊपर रखें.
आंखों को सहजता पूर्वक बंद कर लें. अब पूरे शरीर को शांत और शिथिल बनाने का प्रयास करें. लंबी और गहरी सांस लें और अंदर रोक लें. सिर को सामने झुका कर ठुड्डी को छाती से सटा कर रखें. अब अपनी दोनों भुजाओं को सीधा करते हुए हाथों से घुटनों को दबाते हुए उन्हें इस स्थिति में दृढ़ता से जमाये रखें. कंधों को ऊपर उठा कर सामने की ओर झुकाएं.
इस क्रिया से गरदन के भाग पर प्रबलता से दबाव पड़ेगा, इस अवस्था में अपनी सुविधा के अनुसार श्वास को रोक कर रुकने का प्रयास करें. अधिक जोर नहीं लगाना है. अब कंधों को शिथिल करते हुए भुजाओं को मोड़ें तथा धीरे-धीरे बंध को ढीला करें. सिर को ऊपर उठाएं और तब श्वास छोड़ें. जब श्वास सामान्य हो जाये, तो इस अभ्यास को दुहराएं.
टिप्पणी : श्वास छोड़ कर भी ‘जालंधर बंध’ लगाया जा सकता है.
श्वसन : इस अभ्यास में श्वास को अंदर रोक कर और बाहर रोक कर दोनों तरीके से किया जा सकता है. किंतु आरंभ में किसी योग्य एवं कुशल योग प्रशिक्षक के मार्गदर्शन में ही इसका अभ्यास किया जा सकता है.
अवधि : इस अभ्यास में जितनी देर आरामपूर्वक सांस को रोक सकें, उतनी देर जालंधर बंध करना चाहिए. कुंभक के समय गिनती करते हुए धीरे-धीरे एक-एक गिनती बढ़ा कर कुंभक की अवधि को बढ़ाना चाहिए. इस अभ्यास की 50 आवृतियां की जा सकती हैं.
सजगता : अभ्यास के दौरान सजगता गले के क्षेत्र में बनाये रखें. साथ ही मानसिक रूप से कुंभक की लंबाई गिनते जाएं. अाध्यात्मिक स्तर पर विशुद्धि चक्र पर सजग रहें.
क्रम : इस अभ्यास को प्राणायाम और मुद्राओं के साथ किया जा सकता है. यदि केवल बंध ही करना हो, तो ध्यान के पूर्व और आसन-प्राणायाम के बाद इसे करना चाहिए.
आवृति : अपनी सुविधा के अनुसार जितनी हो सके, आवृतियाें की संख्या को बढ़ाएं. शुरुआत पांच आवृतियाें से ही करें. धीरे-धीरे उसकी संख्या को बढ़ाते जाएं.
सीमाएं : सर्वाइकल स्पॉन्डिलाइटिस, उच्च अंत: मस्तिष्क दाब, चक्कर आना, उच्च रक्तचाप या हृदय रोग से पीड़ित व्यक्तियों को यह अभ्यास नहीं करना चाहिए. यद्यपि जालंधर बंध प्रारंभ में रक्तचाप को घटाता है, पर लंबे समय तक कुंभक करने से हृदय पर जोर पड़ता है.
नोट : इस अभ्यास को शुरुआती दौर में किसी कुशल योग प्रशिक्षक के मार्गदर्शन में करना उचित होगा.
मन होता है संतुलित
इस अभ्यास से शारीरिक, मानसिक तथा अाध्यात्मिक रूप से व्यक्ति को लाभ मिलता है. यह अभ्यास शरीर में प्राण प्रवाह को नियंत्रित करता है. मानसिक शिथिलीकरण प्रदान करता है तथा अनायास ही ध्यान की स्थिति उत्पन्न हो जाती है. गरदन पर दबाव पड़ने से हृदय की गति कम होती है और इससे मन संतुलित हो सकता है तथा व्यक्ति अंतर्मुखी बनता है. एकाग्रता में वृद्धि होती है. इस अभ्यास द्वारा श्वास को खींचने की क्षमता का विकास होती है. यह अभ्यास ध्यान के अभ्यास के लिए पूरी तरह से तैयार करता है. विशेष रूप से ग्रीवा की गुहिमा में स्थित थायरॉयड ग्रंथि की मालिश हो जाती है. इस ग्रंथि पर संपूर्ण शरीर आश्रित है. शरीर के ठीक-ठीक विकास और देखभाल के लिए इस ग्रंथि का स्वास्थ्य उत्तम बना रहना आवश्यक है. इसके अभ्यास से इस ग्रंथि की मालिश होती है तथा कार्यक्षमता भी बढ़ती है.
हर किसी के लिए सरल चिकित्सा
सुजोक चिकित्सा पद्धति को कई चिकित्सा पद्धतियों से मिला कर बनाया गया है. इसे इतना आसान बनाया गया है कि इसका लाभ सामान्य व्यक्ति भी ले सकता है. इससे अनेक रोगों का उपचार संभव है.
सुजोक : एक परिचय
सुजोक एक प्राकृतिक चिकित्सा पद्धति है, जिसमें बिना दवाई के हर रोग का इलाज किया जाता है. सुजोक एक कोरियन नाम है. इसके निर्माता प्रोफेसर पार्क जे वु एक कोरियन प्रोफेसर थे. ‘सु’ का अर्थ है हाथ, ‘जोक’ का अर्थ पैर अर्थात ‘सुजोक’ में सिर्फ हाथ और पैर में चिकित्सा होती है.
सुजोक कई प्राकृतिक चिकित्साओं का सम्मिलित रूप है. इसके अंतर्गत एक्यूप्रेशर, हर्बल एक्यूपंक्चर, कलर थेरेपी, सीड थेरेपी, मैग्नेट थेरेपी, मुद्रा मंत्र आदि सभी पद्धतियों का प्रयोग होता है. इसमें व्यवहार किये जानेवाले एक्यूप्रेशर टूल्स अत्यंत सरल, इस्तेमाल में आसान व सस्ते हैं. बीज आपकी रसोई में दाल और मसाले हैं. आपके बगान के पौधों के पत्ते मैग्नेट के रूप में एवं कांटे से एक्यूपंक्चर किया जाता है. कलर थेरेपी में स्केच पेन का प्रयोग होता है. इसमें वायुमंडलीय ऊर्जा एवं सृष्टि की चार शक्तियों को चिकित्सा में हार्मोनाइज्ड किया जाता है. सुजोक से शारीरिक व मानसिक दोनों प्रकार के रोगों का इलाज होता है.
इन समस्याओं में है कारगर
मानसिक चिकित्सा : हमारी मनोदशा की भी अपनी एनर्जी होती है और इन्हीं एनर्जी को ट्रीट कर सुजोक में विभिन्न मनोरोगों की चिकित्सा की जाती है जैसे-चिंता, भय, आत्महत्या की कोशिश, डिप्रेशन, नशा, स्ट्रेस इत्यादि.
जीवन चिकित्सा : हम सभी के चार जीवन होते हैं-पारिवारिक, व्यक्तिगत, सामाजिक और आत्मिक जीवन. सुजोक के माध्यम से जीवन में आयी इन समस्याओं का समाधान किया जा सकता है. संपत्ति, विवाद, रोजगार समस्या पारिवारिक संबंधों में तनाव की समस्या आदि. इसके द्वारा डिस्टेंट हीलिंग भी की जाती है.
टाइम एक्यूपंक्चर : इसमें भूत, वर्तमान और भविष्य में होनेवाली समस्याओं व रोगों का इलाज कर सकते हैं. जैसे-तीन साल पहले हुए एक्सीडेंट के कारण आज का कोई दर्द, सीजनल प्रॉब्लम, अक्तूबर और मार्च में होनेवाले अस्थमा अटैक आदि का समय पूर्व इलाज.
स्माइल मेडिटेशन : स्माइल मेडिटेशन को भी विकसित किया गया. लोगों को स्ट्रेन फ्री रह कर अपने अंदर की खुशी को पहचानना, परोपकार आदि को महत्व देने के बारे में बताया जाता है. स्माइल मेडिटेशन में मौन साधना के साथ गान और नृत्य द्वारा भी मेडिटेशन किया जाता है. मन अत्यंत आनंदित हो जाता है और आधी बिमारी तो वहीं दूर हो जाती है.
सुजोक और व्यायाम
कुछ व्यायाम भी विकसित किये गये हैं. इसकी मुद्राएं इतनी नाजुक और सरल हैं कि 80 वर्षीय व्यक्ति भी इसे कर सकते हैं. इसकी विशेषता है कि यह बॉडी मेडिटेशन है अर्थात् शांत भाव से किये गये ये व्यायाम बॉडी माइंड और सोल को कॉस्मिक एनर्जी के साथ जोड़ते हैं.
ट्रीटमेंट टिप्स :
माइग्रेन पेन : सबसे पहले सुजोक रिंग से हथेली के आगे-पीछे व उंगलियों को अच्छी तरह एक्यूप्रेशर करें. इतना करें कि त्वचा हल्की गरम और लाल हो जाये. उंगली के छोर को दबाएं. अब निर्देशानुसार कलर करें. अब निर्देशानुसार बीज लगाएं.
ध्यान रखें : बीज स्वस्थ हो. कलर करने के बाद दो घंटे तक पानी न लगे. अगर गलती से लग जाये, तो दुबारा कलर न करें. बीज आठ घंटा लगा रहने दें. हर बार नया बीज लें. हर वक्त बीज न लगाये रखें. त्वचा को सांस लेने दें.
ट्राइआॅरिजिन
प्रोफेसर पार्क ने बिग बैंग थ्योरी को आधार बना कर ट्राइआॅरिजिन थ्योरी दी है. इसमें सूर्य की आवाज ‘ओम’ में विद्यमान चार शक्तियां हेटरो, होमो, न्यूट्रो, न्यूटो इन चार शक्तियों को भी ट्रीटमेंट में प्रयोग किया गया है. यह हमारे हिंदु धर्म की ट्रिनिटी फोर्स हैं ब्रह्मा, विष्णु और शिव. चौथी शक्ति रीजेनरेटर शिव हैं. ब्रह्मा-सृजनकर्ता, विष्णु-पालनकर्ता, शिवा-संहारकर्ता, रीजेनरेटर शिव वापस सारे तत्वों को यथास्थान भेजनेवाले हैं. इन शक्तियों का इस्तेमाल भी हम कलर थेरेपी द्वारा करते हैं, जिससे कई रोगों के उपचार में मदद मिलती है.
विशेषज्ञ का परिचय
लेखिका इंटरनेशनल सुजोक एसोसिएशन द्वारा सर्टिफाइड सुजोक थेरेपिस्ट हैं और उपचार के दौरान बेहद अच्छे परिणाम पाये हैं. इन्होंने इस पद्धति की ट्रेनिंग गोल्ड मेडलिस्ट भूपिंदर कौर से ली, जिन्होंने इसे सीधे सुजोक के निर्माता व जापानी प्रोफेसर पार्क जे वु से सीखा है. श्रीमति भूपिंदर कौर, दिल्ली कैंट के अर्जन बिहार में सुजोक क्लिनिक चलाती हैं, जो एक वेलफेयर वेंचर है.
विभिन्न पद्धतियों से होता है उपचार
एक्यूप्रेशर, हर्बल एक्यूपंक्चर, कलर थेरेपी, सीड थेरेपी, मैग्नेट थेरेपी, मुद्रा मंत्र आदि पद्धतियों से उपचार होता है.एक्यूप्रेशर : सुजोक के एक्यूप्रेशर टूल्स बहुत ही सरल और इस्तेमाल में आसान हैं. इसे स्वयं ही किया जा सकता है. साथ ही ये सस्ते भी हैं. चिकित्सा की शुरुआत एक्यूप्रेशर से की जाती है. जो एनर्जी पथ की रुकावट दूर करती है.
हर्बल एक्यूपंक्चर : एनर्जी को ज्यादा या कम यानी हार्मोनाइज करने के लिए हर्बल या किसी भी पौधे के कांटे का प्रयोग किया जाता है. वह भी केवल हाथ या पैर में. इससे हार्ट अटैक, मिरगी का दौरा आदि इमरजेंसी से भी निबटा जा सकता है
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सीड थेरेपी : सीड या बीज में बहुत अधिक एनर्जी होती है, जो अनुकूल परिस्थिति में एक पौधे को जन्म देती है और यह पौधा आनेवाले कितने पौधों के वंश को चलाता है. जब हम ऐसी एनर्जी से भरपूर स्वस्थ बीज को ‘बीमार’ अंग के हाथ या पैर से संबंधित बिंदुओं पर लगाते हैं, तो यह बीमारी की नकारात्मक ऊर्जा को लेकर अपनी सकारात्मक ऊर्जा उस अंग को प्रेषित करती हैं. दर्द के लिए यह अत्यंत उपयोगी है. सीड लगाने के लिए कागज के टेप में बीज रख कर, टेप फाड़ लेते हैं और उसे बैंड एड की तरह हांथ या पैर में लगाते हैं.
कलर थेरेपी : सुजोक में कलर थेरेपी काफी महत्वपूर्ण है. इसके द्वारा एनर्जी ट्रीटमेंट करते हैं. कलर थेरेपी में हम किसी भी कोशिका या अंग तक प्रवेश करते हैं. इसकी तुलना हम ‘रेकी’ से कर सकते हैं. ‘सुजोक’ में हम हाथ और पैर में कलर करते हैं और इसके कारण सुजोक द्वारा हर एक बीमारी का इलाज संभव है. इसके लिए हम ‘स्केच पेन’ का प्रयोग करते हैं, जो हर घर में बच्चों के पास होता है.
मैग्नेट थेरेपी : इसकी मदद से कहीं ऊर्जा खिंची चली आती है और ऊर्जा ज्यादा है, तो उसे मैग्नेट खींच कर बाहर निकाल देता है. इसका असर इतना जल्द होता है कि आधे-एक मिनट में ही असर पता चलने लगता है. पत्ता, लोहे का तार, तिनका आदि को भी मैग्नेट की तरह इस्तेमाल किया जाता है. बाजार में बार मैग्नेट, चक्र मैग्नेट, स्टार मैग्नेट जैसे अत्यंत छोटे मैग्नेट उपलब्ध हैं, जो उंगलियों, हाथ, पैर में लगाये जाते हैं.
मुद्रा मंत्र : हमारे हाथों से बनी मुद्राएं काफी महत्वपूर्ण होती हैं. सुजोक के मुद्रा मंत्र कई रोगों को ठीक कर सकते हैं. हर रोग के लिए एक मंत्र भी होता है, जिसके जाप से ट्रीटमेंट का असर बढ़ जाता है. इस प्रकार सुजोक में इन पद्धतियों को मिला कर इलाज किया जाता है, जिसके कारण परिणाम बहुत ही सकारात्मक होते हैं.
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