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परिवार की फसल अच्छी हो, इसके लिए बच्चों में अच्छे संस्कारों को डालिए
वीना श्रीवास्तव साहित्यकार व स्तंभकार, इ-मेल : veena.rajshiv@gmail.com, फॉलो करें – फेसबुक : facebook.com/veenaparenting ट्विटर : @14veena जब भी देश को गढ़ने की बात आयेगी, सबसे बड़ा योगदान बच्चों और युवाओं का होगा और यह महती जिम्मेवारी बच्चों और युवाओं को उठाना ही होगी. जैसे किसान की हर फसल का महत्व होता है. जब तक […]
वीना श्रीवास्तव
साहित्यकार व स्तंभकार, इ-मेल : veena.rajshiv@gmail.com, फॉलो करें –
फेसबुक : facebook.com/veenaparenting
ट्विटर : @14veena
जब भी देश को गढ़ने की बात आयेगी, सबसे बड़ा योगदान बच्चों और युवाओं का होगा और यह महती जिम्मेवारी बच्चों और युवाओं को उठाना ही होगी. जैसे किसान की हर फसल का महत्व होता है. जब तक उसकी हर वर्ष की फ़सल अच्छी नहीं होगी, वह खुशहाल नहीं होगा. बीच में एक-दो वर्ष भी अगर
फसल नष्ट हो गयी, तो उसके परिवार पर इसका स्पष्ट प्रभाव दिखाई देने लगता है. इसलिए अच्छी पैदावार के लिए उसे प्रयास करने पड़ते हैं. शुरू से ही खेत में अच्छी खाद डालनी पड़ती है. समय-समय पर उसकी गुड़ाई- सिंचाई करनी पड़ती है. फसल खूब फूले, खिलकर लहलहाये, इसके लिए उसे बीच में उगनेवाली खरपतवार निकालनी पड़ती है. मौसम की मार से बचाना पड़ता
है. विभन्न ऋतुओं की फसलों की जरूरत भी अलग- अलग होती है. धूप में उसे पानी की ज़रूरत ज्यादा होती है और सर्दियों में कम. सबसे ज्यादा जरूरत है उसे जंगली पशु-पंछियों से बचाने की होती है. कहीं ऐसा न हो कि आपकी पकी-पकाई फसल पक्षी खा जायें या जंगली जानवरों का झुंड चर जाये ! किसी भी वजह से अगर एक बार फसल अच्छी न मिली, तो किसान अगली फसल के लिए मेहनत करता है और परिणाम में उसे लहलहाती फसल मिलती है.
वह हिम्मत नहीं हारता और अगली फसल की देखभाल में कोई कसर नहीं छोड़ता. हां, कभी मौसम की मार उसकी फसल नष्ट कर देती है. हर किसान उपलब्ध संसाधनों के बल पर ही खेती करता है. जैसे उसके पास जमीन कितनी है और कैसी है. उस पर कौन-सी पैदावार होगी, ये जमीन की उवर्रता से ही तय होती है. मिट्टी लाल है, पीली है, रेतीला है कि चिकनी है, ये सारी बातें खेती के लिए जरूरी हैं. बालुई मिट्टी में आप गेहूं तो नहीं उगा सकेंगे. इसमें मिट्टी के अनुरूप ही आपको चलना होगा.
अब जो मैं कहना चाह रही हूं, कृपया उसको आप समझिए. फसल हमारे बच्चे हैं और किसान हम हैं. जिस तरह फसल की तैयारी के लिए, बीज डालने के लिए हम खेत को हल चलाकर तैयार करते हैं. उसमें उवर्रक डालते हैं. अगर आप अपना परिवार बढ़ाने के लिए सोच रहे हैं, तो सबसे पहले अपनी पत्नी की सेहत देखिए. क्या वह स्वस्थ है, मां बनने लायक है?
परिवार बढ़ने से जिम्मेवारियां भी बढ़ती हैं, क्या उन जिम्मेवारियां को उठाने में आप सक्षम हैं? इस दौरान होनेवाले मां के खान-पान का पूरा ध्यान दें. जैसे समय- समय पर खेत में तमाम तरह की खाद डाली जाती है, उसी प्रकार समय-समय पर डॉक्टर से मिल कर उसे सप्लीमेंट्स और पौष्टिक खाना दीजिए. अब जब बच्चे हों, तो उनकी देखभाल उसी तरह से करिए, जैसे किसान अपनी फसल की करता है. उन्हें भी समय-समय पर विभन्न दवाओं और पौष्टिक आहार की जरूरत होती है. जैसी, जितनी खाद आप डालेंगे, वैसी ही आपकी फसल होगी. आपकी किसी भी चूक का असर आपके बच्चों पर दिखाई देगा.
फसल बेहतर ढंग से हो, इसलिए उसके आस-पास की खरपतवार निकालनी पड़ती है. ठीक उसी तरह उसमें अच्छे संस्कारों को डालिए. उसके दिमाग में जो नकारात्मक विचार आ रहे हैं, उन्हें समय पर निकालते रहिए. जैसे फसल पकने पर हम उसे पशु-पक्षी से बचाते हैं, आप अपने बच्चों पर नजर रखिए और उन्हें बुरी संगत से बचाइए. वरना आपकी पकी-पकाई, मेहनत से तैयार फसल कोई चर जायेगा और आप ख़ाली हाथ हो जायेंगे. सबसे बड़ी बात कैरियर को लेकर उन पर अपने फैसले मत थोपिए. जैसी मिट्टी होगी, फ़सल उसी के अनुरूप होगी. इसी तरह जो उसकी क्षमता होगी, जो उसकी रुचि होगी, उसी के अनुसार उसे कैरियर चुनने दीजिए.
इसे समाज के परिप्रेक्ष्य में देखते हैं. समाज की जितनी भी चाहे दुदर्शा हो गयी हो, कितनी भी कुरीतियां पनपी हों, आचार-विचारों में गिरावट आयी हो, संस्कारों का अवमूल्यन हुआ हो, लेकिन अगर भविष्य में हम सुधार चाहते हैं, तो हमें आनेवाली पीढ़ी को संस्कारित करना होगा. उनमें सामाजिक मूल्यों को सोचने-समझने की शक्ति विकिसत करनी होगी. अगर हमारी एक फसल बरबाद होती है, तो हमें अगली फसल की देखभाल बहुत सावधानी से करनी होगी, लेकिन अगर बार-बार फसलें बरबाद होती रहेंगी, तो धीरे-धीरे हमारी ज़मीन भी उवर्रता खो देगी. इसमें दोष हमारा ही है. हम एक बार मन में ठान लें कि चाहे जितनी फसलें खराब हुई हों, हम अब आगे अपनी फसलों को बेहतरीन बनायेंगे, तो हमें अपने प्रयासों में सुधार करना होगा. इसे हम पीढ़ी और बच्चों की असफलता दोनों से जोड़ कर देखना चाहिए. बच्चों के एक-दो बार असफल होने पर न आप निराश होइए, न उनमें निराशा आने दीजिए.
फसल की तरह हमें बच्चों को भी आनेवाले कल के लिए तैयार करना होगा. जो पीढ़ी अपनी दुर्दशा पर रो रही है और हम उसमें बदलाव चाहते हैं, तो हमें आनेवाली पीढ़ी को संस्कारों, वैचारिक और नैतिक मूल्यों से पोषित करना होगा. जो फसलें खराब हो गयीं, उनका शोक मनाने के बजाय हमें आगे की सुधि लेनी चाहिए. इसलिए भविष्य की मुंडेर पर खड़ी आनेवाली पीढ़ी में अच्छे संस्कारों को रोपित करना होगा. हमें उन्हें इस लायक बनाना होगा कि उनमें सही की समझ विकसित हो. सोशल साइट पर आजकल सोहन लाल द्विवेदी जी की एक कविता खूब ट्रेंड कर रही है, जिसे अमिताभ बच्चन ने अपनी आवाज भी दी है- ‘कोशिश करनेवालों की कभी हार नहीं होती’. यह कविता केवल फॉरवर्ड करने के लिए नहीं है. उसे आप खुद याद करें और बच्चों को याद कराएं, जिससे असफलता के समय यह आपमें और उनमें जोश भरे. हमारी हार तब होती है जब हम मन से हारते हैं. एक कहावत है- ‘मन के हारे हार है, मन के जीते जीत’.
क्रमश:
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