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अपने बच्चों को कोमल फूल नहीं मजबूत इरादोंवाला इनसान बनाएं

ईश्वर ने जो सृष्टि रची है, उसमें हम गोल घूम रहे हैं. यानी हम लौट-फेर कर वहीं वापस आते हैं जहां से शुरुआत करते हैं. यही जीवन चक्र है. आज हम बच्चे हैं. कल बड़े होंगे. हमारा अपना परिवार होगा. हमारे बच्चे होंगे. फिर वे बड़ो होंगे तो उनका परिवार होगा. यह जीवन चक्र यूं […]

ईश्वर ने जो सृष्टि रची है, उसमें हम गोल घूम रहे हैं. यानी हम लौट-फेर कर वहीं वापस आते हैं जहां से शुरुआत करते हैं. यही जीवन चक्र है. आज हम बच्चे हैं. कल बड़े होंगे. हमारा अपना परिवार होगा. हमारे बच्चे होंगे. फिर वे बड़ो होंगे तो उनका परिवार होगा. यह जीवन चक्र यूं ही चलता आया है और यूं ही चलेगा. प्रत्येक पीढ़ी अपनी पहली पीढ़ी से कई गुना तेज होती है.

बचपन सबका मासूम होता है. किशोरावस्था में सभी चंचल और भटकाव में बहते हैं. युवावस्था में जीवन के प्रति गंभीरता आती है और फिर जब अपना परिवार होता है, तो हमारा रहन-सहन, सोच सब बदल जाती है. वृद्धावस्था में हमारे सामने हमारा पूरा जीवन हमारे अच्छे-बुरे कामों के साथ दिखाई देता है.रिश्तों में भी ठीक ऐसे ही होता है. जब हम छोटे होते हैं, तो रिश्ते-संबंधों को देखने का हमारा नजरिया भी बचकाना होता है.

अगर हमें उनके बारे में समझाया नहीं गया, तो हम समय के साथ ही संबंधों के सही स्वरूप को पहचान पाते हैं. मगर जब हम अपना परिवार बसाते हैं, तो हमें अपने बचपन की सभी बातें और एहसास याद आते हैं. यह भी समझ आता है कि कब हमारे माता-पिता द्वारा हमें टोका जाना चाहिए था, मगर उन्होंने नहीं टोका. उन्हें हम पर कब भरोसा करना चाहिए था जो उन्होंने नहीं किया. हमारे पाता-पिता को हमने किस तरह बेवकूफ बनाया, उनसे बातें छुपाई, झूठ बोला, कब हमने उनके भोलेपन का फायदा उठाया, कितनी बदमाशियां कीं, ये सारी बातें हमें तब याद आती हैं जब हम अपने बच्चों को वही करता देखते हैं, जो बचपन में हम करते थे.

हो सकता है आपकी पहली वाली बदमाशियां नये युग में हाइटेक हो गयी हों मगर आपको अलर्ट रहना होगा, क्योंकि उम्र का असर तो दिखाई देगा ही. कुछ लोग इन बातों पर ध्यान नहीं देते. उनको लगता है कि बचपन में बच्चे ऐसा करते ही हैं और कुछ जरूरत से ज्यादा कठोर हो जाते हैं. अति किसी भी बात की अच्छी नहीं होती. बचपन में जो आदत पड़ती है, वह आसानी से नहीं जाती. इसलिए अपने बच्चों को लेकर सावधान रहिए. आपके घर के झगड़ों का, घर के माहौल का, आपके व्यवहार, आपके तौर-तरीकों का बच्चों पर पूरा प्रभाव पड़ता है.

कभी ऐसा होता है कि जो कमी हमें बचपन में महसूस होती है उस कमी का हम पर इतना प्रभाव पड़ता है कि हम अपने बच्चों को फूल की तरह पालने लगते हैं. सभी बच्चे कोमल और नन्हे फूल हैं, मगर हमें अपने बच्चों को कोमल फूल नहीं बल्कि मजबूत इरादों, हौसलों वाला और शक्तिशाली इनसान बनाना है. उसकी कोमलता वैचारिक रूप से चट्टान से भी ज्यादा मजबूत होनी चाहिए. उसके इरादे लोहे से ज्यादा फौलादी होने चाहिए. उनको जीवन की हकीकत से दो-चार होने देना चाहिए. उनकी उंगली तब तक पकड़िए जब तक वे सड़क पार करना न सीख जाएं और जब सीख जाएं तो कुछ समय एहतियातन उसके साथ रहिए, ताकि आपको भरोसा हो सके कि वे सही तरीके से सड़क पार कर लेंगे.

कुछ इसी तरह से आपको अपने बच्चों को जीवन के प्रति आत्म विश्वासी, धैर्यवान और शक्तिशाली बनाना है. हमारा हमेशा यह प्रयास रहना चाहिए कि परिवार के सदस्यों के बीच आपस में कैसे भी संबंध हो, लेकिन उसकी आंच बच्चों तक न पहुंचे. कृपया करके अपने घर की कलह का हथियार अपने बच्चों को मत बनाइए. लड़की के मन में अगर तमाम तरह के नकारात्मक विचार, पक्षपात, राजनीति और छल-प्रपंच घर कर गया, तो वह घर के सदस्यों के बीच इन्हीं आदतों के साथ जियेगी, संबंधों में पक्षपात करेगी, छल करेगी.

इससे घर की शांति भंग होगी. दूसरी तरफ अगर लड़कों में ये भावनाएं घर कर गयीं, तो वे कभी प्रेम का वातावरण नहीं बनने देंगे. अक्सर बच्चों की बिगड़ी आदतों को देख कर कहा जाता है कि स्कूल में जाने क्या-क्या सीखकर आते हैं. मगर कई बार वे बहुत कुछ आपसे सीखते हैं, अपने परिवार से सीखते हैं.

जो बातें बचपन में हमारे दिल-दिमाग में घर बना लेती हैं, वे आसानी से नहीं जातीं. सबसे घातक तब होता है जब बच्चों का अपना परिवार होता है और वे आपस में सामंजस्य नहीं बना पाते. एक-दूसरे को बरदाश्त नहीं कर पाते. घर में वे देखते हैं कि कितनी बद्तमीजी से पापा दादी-बाबा से बात कर रहे हैं. कैसे बुआ के आने पर मम्मा की तबियत खराब होती है और जब मामा-मौसी आते हैं, तो घर में खाने से लेकर महंगे गिफ्ट आते हैं. पापा भी पूरा समय देते हैं. ऐसे में बच्चे या तो अपने पापा-मम्मा से चिढ़ने लगते हैं या फिर अपने जीवन में उऩके गुणों को आत्मसात कर लेते हैं. जो आगे चलकर उनके जीवन में तूफान ही लाते हैं.

अगर हम अपने माता-पिता के साथ बुरा व्यवहार कर रहे हैं और हमारे बच्चे देख रहे हैं तो उनके दिमाग पर विपरीत प्रभाव पड़ेगा. हमें हमेशा ही इस बात को याद रखना होगा कि समय स्वयं को दोहरायेगा. हमें ध्यान देना होगा कि जो बातें हमने अपने बचपन में महसूस कीं, समय के साथ उसमें कुछ बदलाव जरूर होंगे, लेकिन बदलाव तो अवश्यंभावी हैं. यह भी हो सकता है बच्चे आपसे चार कदम आगे निकल जाएं.

सबसे महत्वपूर्ण है कि विवाह के बाद बेटियों को अपने ससुराल के मामलों में मायके के हस्तक्षेप को रोकना होगा और मायकेवालों को भी सोचना होगा कि अब बेटी का अपना परिवार है उसको स्वतंत्रता है कि वह अपनी समझ से सही फैसला ले. आखिर आपने अपनी बेटी को पढ़ाया है. इस काबिल बनाया है. क्या आपको उसकी शिक्षा पर इतना भी विश्वास नहीं ?

क्रमश:

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