बुजुर्गों में बढ़ती उम्र में रोग प्रतिरोधक क्षमता के कम होने के कारण सर्दी, जुकाम, खांसी, दमा, आर्थराइटिस, उच्च या निम्न रक्तचाप, हृदय रोग, आदि समस्याएं आती हैं. श्वास-नलिकाएं, रक्तवाहिका नलिकाएं सिकुड़ने लगती हैं. शरीर में ऑक्सीजन की कमी होने लगती है. शारीरिक गतिविधियां प्राय: कम हो जाती हैं. इन लक्षणों को प्राणायाम द्वारा कम किया जा सकता है.
प्राणायाम और योग बदलते मौसम से होनेवाले रोग से बचाव तथा उपचार में बहुत ही कारगर हैं. इसके अतिरिक्त सरसों तेल से मसाज,धूप सेंकना तथा खान-पान में सावधानी बरतना भी आवश्यक है. रोग से बचाव एवं उपचार में योग प्राकृतिक एवं प्रभावकारी पद्घति है. पतंजलि रचित ग्रंथि योग-सूत्र में संक्षिप्त परिभाषा दी गयी है- स्थिरं सुखं आसनम्. अर्थात बिना कष्ट के एक ही स्थिति में अधिक से अधिक समय तक बैठने की क्षमता को बढ़ाने के लिए यह किया जाता है.
शारीरिक, मानसिक, एवं आध्यात्मिक व्यक्तित्व के विकास में आसनों का विशेष महत्व है. आत्मिक शरीर में 72 हजार नाड़ियां हैं जिनसे प्राण शक्तियों का प्रवाह होता है. उनमें 14 महत्वपूर्ण हैं तथा तीन अतिमहत्वपूर्ण हैं- इड़ा, पिंगला एवं सुषुम्ना नाड़ी. ये सभी सुषुम्ना की उपनाड़ियां हैं. रोग से बचाव, रोग-उपचार, एवं रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने के लिए सूक्ष्म आसन उपयोगी हैं, जो बच्चे, युवा, वृद्घ सभी आसानी से कर सकते हैं.
कुंभक क्रिया
तत्पश्चात् दायें नाक को बंद करें तथा बायें नाक से पूरक करें और पूरक के अंत में दोनों को बंद कर श्वास रोकें, इसे कुंभक कहते हैं. फिर बायें नाक को बंद रखते हुए दायें नाक से रेचक करें. अब बायें नाक को बंद रखते हुए दायें नाक से पूरक करें और पूरक के अंत में दोनों नाक को बंद कर कुंभक करें. फिर दायें नाक को बंद रखते हुए बायें नाक से रेचक करें. यह एक आवृति है. यदि संभव हो तो 25 आवृतियां कर सकते हैं, किंतु एक या दो आवृति आवश्यक करें.
अपनाएं ये आसन
आसन ऐसा हो, जिसमें कम से कम पंद्रह मिनट तक आरामपूर्वक बैठ सकें. वज्रासन को छोड़कर अन्य कोई भी आसन जैसे- पद्मासन, सिद्घासन, सुखासन या कुर्सी पर बैठें. संपूर्ण शरीर को शिथिल करें, नेत्रों को बंद करें तथा मानसिक एवं शारीरिक रूप से प्राणायाम के लिए तैयार हो जाएं. कुछ देर के लिए अपनी चेतना को शरीर एवं श्वास पर रखें तथा अभ्यास प्रारंभ करें. बायें हाथ को घुटने पर रखें तथा दायें हाथ की तजर्नी एवं मध्य अंगुलियों को ललाट पर मध्य पर रखें. उन्हें इस स्थिति में रखें कि संपूर्ण अभ्यास स्थिति में हटाना न पड़े. अंगूठे को दायें नाक के पास रखें तथा अनामिका अंगुली को बायें नाक के नजदीक इस प्रकार रखें कि आवश्कतानुसार इसके द्वारा क्रमवार नाक पर दबाव डालकर श्वास को भीतर या बाहर रोका जा सके. इसे नाड़ी शोधन या नसाग्र मुद्रा कहते हैं. अच्छा होगा किसी योग शिक्षक की देख-रेख में इसे करें.
पूरक तथा रेचक क्रियाएं
अंगूठा से दायें नाक को बंद करें और बायें नाक से श्वास लें. इस क्रिया को पूरक कहते हैं तथा तत्पश्चात् उसी बायें नाक से रेचक करें यानी श्वास छोड़ें. पूरक और रेचक की गति सामान्य रहेगी. पांच बार पूरक एवं रेचक करें. अब बायें नाक को बंद कर दायें नाक से पूरक एवं रेचक पांच बार करें. इस समय भी श्वास की गति सामान्य रहेगी. प्रत्येक नाक से पांच बार की गयी क्रिया को एक आवृति कहते हैं. उपरोक्त क्रिया की कुल 25 आवृतियां कर सकते हैं, तो अति उत्तम है अन्यथा दो आवृति अवश्य करें. आवृतियां धीरे-धीरे बढ़ाएं. तत्पश्चात् दायें नाक को बंद कर बायें से पूरक करें. पुन: बायें नाक को बंद कर दायें नाक से रेचक करें. याद रखें पूरक हमेशा बायें नाक से तथा रेचक दाएं नाक से. इसके बाद बायें नाक को बंद कर दायें नाक से पूरक और बायें से रेचक करें. इसे भी पांच बार करें. यह एक आवृति हुई. ऐसा पांच बार करें.
कैसा हो खान-पान
साबुत अनाज- गेहूं, चावल, ज्वार, बाजरा आदि छिलकेवाले मोटे अनाज का सेवन करें. भोजन में मेवों को शामिल करें. मसाला – दालचीनी, हल्दी, लहसुन, लौंग, काली मिर्च, जो सूजन, दर्द, रक्त संचार को सुधारता है. हरी सब्जियों का सेवन करें तथा विटामिन अवश्य लें. तुलसी का काढ़ा कम-से-कम एक बार अवश्य लें.