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बेटियां सास को भी वही सम्मान दें, जो देती हैं अपनी मां को

वीना श्रीवास्तव साहित्यकार व स्तंभकार, इ-मेल : veena.rajshiv@gmail.com, फॉलो करें – फेसबुक : facebook.com/veenaparenting ट्विटर : @14veena आज फिर एक सवाल उठाना चाहती हूं कि बेटियां ही क्यूं हमेशा अच्छी होती हैं, बहुएं क्यूं नहीं ? मां ही हमेशा क्यूं अच्छी होती हैं, सास क्यों नहीं ? बेटियां आज हर क्षेत्र में आगे हैं. खेलकूद […]

वीना श्रीवास्तव
साहित्यकार व स्तंभकार, इ-मेल : veena.rajshiv@gmail.com, फॉलो करें –
फेसबुक : facebook.com/veenaparenting
ट्विटर : @14veena
आज फिर एक सवाल उठाना चाहती हूं कि बेटियां ही क्यूं हमेशा अच्छी होती हैं, बहुएं क्यूं नहीं ? मां ही हमेशा क्यूं अच्छी होती हैं, सास क्यों नहीं ? बेटियां आज हर क्षेत्र में आगे हैं. खेलकूद हो, विज्ञान हो, शिक्षा, संगीत या कला हो. उन्हें अपने पैरों पर खड़ा देख, मजबूती के साथ आगे बढ़ता देख कर सिर गर्व से ऊंचा हो जाता है. जब परिवार की बात आती है, तो वहां भी बेटियों के सिर ही सेहरा सजता है. पहले बात बेटी और फिर बहू की.
आजकल सोशल साइट्स पर बेटियों को लेकर बहुत सकारात्मक सोच और पहल दिखाई दे रही है, जो तारीफ के काबिल है. ये सोच आगे बढ़नी और फलनी-फूलनी चाहिए. अगर हम इन्हीं बेटियों के शादीशुदा जीवन की बात करें, तो ये बेटियां ही बहू भी हैं. तो क्यों वे अच्छी बहू नहीं बन पातीं ? आज भी अमूमन माता-पिता फख्र से कहते हैं कि वक्त पर बेटियां ही काम आती हैं. बेटे तो पूछते तक नहीं. मगर आप यह सोचिए, प्रत्येक बेटी किसी घर की बहू भी है. इसकी सबसे बड़ी वजह हमारे घर की महिलाएं हैं.
सभी का झुकाव मायके की तरफ रहता है. ये सब कुछ बेटियां भी स्पष्ट देखती हैं. वह देखती हैं- अपनी मां का बदला हुआ रूप, जो नानी-नाना और दादी-बाबा के प्रति व्यवहार में परिलक्षित होता है. बेटे भी देखते हैं कि ननिहाल की किसी मुसीबत में पापा बिना देरी के मां के साथ दौड़ जाते हैं, मगर घर में दादी-बाबा कुछ भी कहते रहें, पापा के कान पर जूं तक नहीं रेंगती. दादी बीमार हों, तो पापा झुंझलाते हैं- जब देखो इनकी तबियत ही खराब रहती है.
मां भी कान भरती है- मम्मी जी कुछ काम तो करती नहीं, ऊपर से आफत मचाये रहती हैं, लेकिन सास-ससुर बीमार होते हैं, तो दामाद फौरन से पेशतर की दौड़ लगाता है. जब बेटियां मायके जाती हैं, तो वहां भाभी को खरी-खोटी सुनाती हैं कि मां की देखभाल ठीक से नहीं करतीं, मगर वे खुद अपनी सास की कितनी देखभाल करती हैं, यह वे नहीं देखतीं. जिस घर में लड़कियां पली-बढ़ीं, उनके लिए मन में प्यार होना लाजिमी है. बेटियां ही अपना घर छोड़के पति के घर जाती हैं. बेटा अगर अपने घर में ही है, तो क्या उसे अपने परिवारीजन का ख्याल नहीं रखना चाहिए?
एक और वजह है- लड़कियां मायके में किसी दबाव में नहीं रहतीं. घर के प्रति कोई जिम्मेदारी नहीं होती. अपनी मरजी से जीती हैं. इसीलिए वे चाहती हैं कि शादी के बाद भी वे पति के साथ अकेले रहें. हमारी एक परिचित हैं. वे कहीं लड़की देखने गयीं. वहां लड़का और लड़की को बात करने का समय दिया गया. लड़की ने सबसे पहले कहा- मुझे खाना बनाना नहीं आता.
इसलिए यह उम्मीद मत करना कि मैं खाना बनाऊंगी. उसके बाद बिना हिचक पूछा- शादी के बाद हम लोग अलग रहेंगे न ? यह कैसा प्रश्न है? प्रयास परिवार को जोड़ने के लिए होना चाहिए, न कि तोड़ने के लिए और विवाह से पहले ही घर से अलग होने की सोच तो बिलकुल भी अच्छी नहीं. ऐसे प्रश्न पर अगर मां-पिता शादी के लिए तैयार हो भी रहे हों, तो भी मना कर देंगे और वहां भी माता-पिता ने रिश्ते के लिए मना कर दिया. जो माता-पिता अपना पूरा जीवन लगाकर बच्चों को पालते हैं, उन्हीं को दरकिनार करना कहां तक उचित है?
क्या वह लड़की यह सोचती है कि कल को उसके भाई का भी विवाह होगा और उसकी भाभी यही सोचे, तो उसे कैसा लगेगा? क्या माता-पिता से प्यार केवल लड़कियों को होता है, लड़कों को नहीं होता? मगर विवाह के शुरुआती दिनों में जीवन में जो बदलाव आते हैं, उसमें लड़के इस कदर डूब जाते हैं कि पत्नी की हर जायज-नाजायज बात मानते हैं. जब कुछ समय बाद होश आता है, तो फिर घर में कलह होना स्वाभाविक है. लड़कियों को उतना ही सम्मान सास को देना होगा, जितना वे मां को देती हैं. यह उनका वो घर है, जहां से उनका नया जीवन शुरू होता है.
विवाह के बाद जब घर के सदस्यों के संबंध बिगड़ते हैं, तो उसमें सबसे ज्यादा भूमिका ‘अहं’ की होती है. एक बेटी का सिर दुखता है, तो मां प्यार से सिर दबाती है. बीमार होने पर सेवा करती है, लेकिन अगर बहू बीमार पड़ती है तो बहू की सेवा करना तो दूर, उसे आराम भी नहीं करने दिया जाता. इसी तरह अगर मां टोका-टाकी करती है, डांटती है तो बेटी एक कान से सुन कर दूसरे से निकाल देती है, मगर सास गुस्सा होती है तो बहू को बरदाश्त नहीं होता और फिर शुरू होता है मन-मुटाव का अध्याय. ये बातें सास-बहू दोनों को समझनी होंगी.
समय के साथ खुद को बदलकर आपको एक अच्छी मां-रूपी सास बनना होगा और बहू को घर की प्यारी बेटी बनाना होगा. जब आप बहू को बेटी मानेंगी, तो बहू भी आपको मां मानेगी. यह कदम सास-बहू दोनों को समान रूप से उठाना होगा.
फासले तभी कम होंगे जब कुछ दूरी बहू तय करेगी और कुछ दूरी सास. बहू को घर में आजादी मिलेगी, तो वह आपसे दूर नहीं जायेगी. कुछ बंदिशें आप कम करिए और कुछ मान-सम्मान व प्यार बहू घरवालों के दे, तो प्यार का सफर घरवालों के साथ मिल कर आसानी से तय हो जायेगा. याद रखिए, मन से चाहेंगी, तो कोई भी दूरी तय हो जायेगी, लेकिन अकेले व्यक्ति की कोशिश कारगर नहीं होगी. थोड़ा-थोड़ा सब पास आयेंगे, तो सब साथ चलेंगे. बच्चों को भी अच्छे संस्कार मिलेंगे जो उनके आनेवाले जीवन को महकायेंगे.
क्रमश:

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