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खोजा गया मस्तिष्क में क्रोध का केंद्र, दवा से काबू होगा गुस्सा

एक जैसी परिस्थितियों को कोई हंसते-हंसते झेल जाता है, तो कोई गुस्से में आपा खो बैठता है. छोटी-बड़ी बातों को लेकर निराशा, तनाव या फिर तर्क-कुतर्क से उपजे क्रोध को नियंत्रित करने के वैसे तो कई मनोवैज्ञानिक व दूसरे तरीके पहले से मौजूद हैं, लेकिन अब वैज्ञानिकों ने कुछ नये शोध के साथ मस्तिष्क में […]

एक जैसी परिस्थितियों को कोई हंसते-हंसते झेल जाता है, तो कोई गुस्से में आपा खो बैठता है. छोटी-बड़ी बातों को लेकर निराशा, तनाव या फिर तर्क-कुतर्क से उपजे क्रोध को नियंत्रित करने के वैसे तो कई मनोवैज्ञानिक व दूसरे तरीके पहले से मौजूद हैं, लेकिन अब वैज्ञानिकों ने कुछ नये शोध के साथ मस्तिष्क में क्रोध का केंद्र ढूंढ़ निकाला है और दवाओं से गुस्से को खत्म करने की कोशिश की जा रही है.
उम्मीद जगी है कि अब ऐसी दवाएं बनाना संभव होगा, जिनकी सहायता से आक्रामक व्यवहार को तुरंत नियंत्रित किया जा सकेगा. क्रोध पर विजय पाने की दिशा में किये जा रहे वैज्ञानिक उपायों के बारे में बता रहा है आज का नॉलेज…
– शंभु सुमन
तनाव से भरी जिंदगी में काम के बोझ से दबा कोई युवक मोबाइल नेटवर्क या नेट-कनेक्शन में समस्या आते ही या ट्रैफिक जाम में फंसते ही तुरंत आक्रोश में आ जाता है. कई बार तो वह बालों को नोचता और खीजता हुआ आपे से बाहर भी हो जाता है. उसकी आंखें लाल हो जाती हैं. फोन पर बातें करते समय हाथ कांपने लगते हैं और दांत भींच जाते हैं. कई बार किसी असामान्य घटना के अलावा छोटी-छोटी बातें भी एक व्यक्ति को असहज बना देती हैं. जैसे बिजली का आना-जाना, बस या ट्रेन, मेट्रो आदि में भीड़ होना या फिर कार्यालय में किसी सामयिक मुद्दे को लेकर तर्क-वितर्क में उलझना आदि.
इन स्थितियों में कुछ लोगों की न केवल झुंझलाहट बढ़ जाती है, बल्कि वे चंद मिनटों में ही भीतर से खौलने लगते हैं. कई बार उनका उबाल हिंसक रूप भी अख्तियार कर लेता है, और फिर बहुचर्चित फिल्म के शीर्षक की तरह यह सवाल पैदा हो जाता है- अलबर्ट पिंटो को गुस्सा क्यों आता है? इसी क्यों और कैसे को लेकर मनोवैज्ञानिक, शारीरिक, सांस्कृतिक और पारिवारिक कारणों पर तरह-तरह के शोध हो रहे हैं व उनके उपाय निकाले जा रहे हैं. इस क्रम में दावा किया जा रहा है कि वैज्ञानिकों ने मस्तिष्क में क्रोध के केंद्र को ढूंढ़ निकाला है और अब वे इसकी दवाएं बनाने की तैयारी में जुटे हुए हैं.
गुस्से पर फौरी नियंत्रण के तलाशे जा रहे उपाय
आज दुनियाभर में गुस्से को एक बीमारी के नजरिये से देखा जा रहा है और वैज्ञानिक इसके फौरी उपाय या निदान के लिए तरीके तलाशने में जुटे हैं. यानी क्रोध या असहज-आक्रामक तनाव पर काबू पाने के तकनीकी व चिकित्सीय उपाय तलाशे जा रहे हैं.
सामान्य तौर पर गुस्से को एक भावना माना गया है, जिससे शरीर प्रभावित होता है. हृदय की गति बढ़ जाती है. रक्तचाप बढ़ जाता है. इसके पैदा होने का एक प्रमुख कारण भय माना गया है, क्योंकि भय व्यक्ति के व्यवहार में स्पष्ट रूप से व्यक्त होता है और इसे रोकने की कोशिश में ही व्यक्ति गुस्से में आ जाता है.
न्यूयाॅर्क यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर डाऊ लिन ने हाल में ही दिमाग में गुस्से के केंद्र का पता लगाने की बात कही है. इसके आधार पर उन्होंने घोषणा की है कि मनुष्य या जानवरों की आक्रामकता के स्तर को दवाओं के माध्यम से नियंत्रित किया जा सकता है. डाऊ बिल के अनुसार, उनकी टीम को यह सफलता नर चूहे पर किये गये शोध से मिली है कि उसके मस्तिष्क का कौन-सा भाग उसकी आक्रामकता के स्तर के लिए जिम्मेवार है.
इस संबंध में एक रिपोर्ट में बताया गया है कि मस्तिष्क के उस भाग को लेटरल सेप्टम (एलएस) कहा जाता है, जो ठीक बीच में होता है. विशेषज्ञों ने मस्तिष्क में न्यूरल सक्रियता को प्रकाश से नियंत्रित करनेवाले तकनीक ऑप्टोजेनेटिक्स का उपयोग किया, जिससे मस्तिष्क के इस भाग में न्यूरॉन्स को कृत्रिम रूप से अधिक सक्रिय कर दिया गया. इस तरह से मस्तिष्क में रासायनिक प्रक्रिया तेज हो जाने के कारण चूहों की आक्रामकता बढ़ गयी और उसने दूसरे चूहों पर हमले करने शुरू कर दिये. इस तरह वैज्ञानिकों को चूहों की आक्रामकता बढ़ाने या आक्रामकता को कम करने के प्रयोग में सफलता मिली.
डाऊ लिन के अनुसार, चूहों की हिंसक हरकतों में आये बदलाव को नियंत्रित किया जा सकता है. लेटरल सेप्टम (एलएस) भावना को नियंत्रित करनेवाले हिप्पोकैंपस से जुड़े होते हैं और उसे विद्युतीय तरंगें मिलती हैं. यह हाइपोथैलेमस से भी जुड़ा होता है, जो मोटे तौर पर आक्रमण के लिए जिम्मेवार होता है. इसका पता चलने पर इनसान में हिंसक व्यवहार और आक्रामकता के अन्य रूपों को नियंत्रित करने में मदद मिल सकती है.
एलएस में उत्तेजक मस्तिष्क कोशिकाएं और दूसरे न्यूरॉन्स होते हैं, जो हाइपोथैलेमस की प्राकृतिक आक्रामकता के दौरान अत्यधिक सक्रिय हो जाते हैं. शोधकर्ताओं को इससे उम्मीद जगी है कि अब ऐसी दवाएं बनाना संभव होगा, जिनकी सहायता से न पशुओं और इनसान के आक्रामक व्यवहार को नियंत्रित किया जा सकता है. यानी तुरंत गुस्से की चपेट में आनेवाले अपने आक्रमक तेवर को दवा की एक गोली से कम कर सकते हैं.तनाव कम करने के कुछ आसान तरीके भी हैं
विशेषज्ञों का कहना है कि कुछ तकनीक का उपयोग कर किसी तर्क-वितर्क से उपजे विवाद को कम किया जा सकता है. वैज्ञानिकों ने इसके लिए कुछ शब्दों के प्रयोग का साधारण तरीका निकाला है. इस बाबत शोधकर्ताओं ने पिछले दो सालों के दौरान कुछ महत्वपूर्ण विश्लेषण किये हैं. दरअसल कई लोग ऑनलाइन काम करते समय अक्सर उत्तेजित हो जाते हैं और चीखने-चिल्लाने जैसी हरकतें करने लगते हैं या फिर सोशल नेटवर्किंग साइटों पर कई लोग दूसरों की पोस्ट देख कर भी बेवजह की नाराजगी के भाव से ग्रसित हो जाते हैं.
इस संदर्भ में शोधकर्ताओं ने पाया कि किस तरह के शब्दों से ऐसी स्थिति बन जाती है और उन शब्दों का दिमाग पर तीखा और गहरा असर पड़ता है. कई बार इनकी वजह से व्यक्ति आक्रामक तेवर अख्तियार कर लेता है. आये दिन ऐसी अनेक आक्रामक सामाजिक घटनाएं इसी वजह से देखने को मिलती हैं.
ये शोध और विश्लेषण कॉर्नेल यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर लिल्लीअन ली और उनके पीएचडी छात्रों द्वारा किये गये हैं. शोध के लिए लोगों द्वारा पोस्ट की गयी सामग्रियों का इस्तेमाल किया गया है और उनका विश्लेषण किया गया है. साथ ही लोगों के सवाल भी जुटाये गये. इस आधार पर हर तर्क पर जीत हासिल करने के न केवल तरीके सुझाये गये हैं, बल्कि अनावश्यक बातों से बचने की सलाह भी दी गयी है. सकारात्मक शब्दों के प्रयोग को प्रमुख और अच्छा बताया गया है, जबकि विध्वंसक, विस्फोटक, हिंसा आदि शब्दों से बचने की सलाह दी गयी है.
इसके अतिरिक्त शोधकर्ताओं ने तनाव के क्षणों में कुछ सामान्य उपायों का भी विश्लेषण किया है, जो व्यक्ति अनजाने में करते रहे हैं. उदाहरण के लिए कोई हिसाब-किताब करने वाला छात्र जब जटिल समस्याओं को सुलझाते हुए तनाव की वजह से सिरदर्द का शिकार हो जाता है, तब कुछ समय के लिए अपनी पेंसिल को दांतों तले दबा कर काफी राहत और ताजगी भरा महसूस करता है.
सौंदर्यबोध विशेषज्ञ डॉक्टर जेन लियोनार्ड का कहना है कि सिर दर्द तनाव, चिंता, थकान और भावनात्मक परेशानियों से शुरू होता है. ऐसी स्थिति में चेहरे, गर्दन, जबड़े और खोपड़ी की मांसपेशियाें में ऐंठन होने लगती है. इस तरह से ग्रसित व्यक्ति अपने दर्द की उन्हीं जगहों को इंगित करता है, जो उसके स्रोत होते हैं. वैसे इस तरह का ऐंठन लिए हुए दर्द सिर के पिछले हिस्से में होता है, जिसे टेंपरॉलिस कहा जाता है. यही ऐंठन जबड़े की मांसपेशियों से भी जुड़ा होता है और टेंपोरोमांडब्यूलर ज्वाइंट रोग का संकेत देता है. यह आमतौर पर जबड़े से पकड़ने या नींद के दौरान दांत पीसने की वजह से हो सकता है.
लंदन में क्लीनिक चलानेवाली डाॅक्टर लियोनार्ड का कहना है कि जब हम अपने दांतों के बीच पेंसिल को रखते हुए दबाते हैं, तो हमारे जबड़े की मांसपेशियों को काफी आराम मिलता है. इसी तरह से कुछ भी चबाने से मांसपेशियों को आराम मिलता है. जबड़े शरीर में एक जटिल जोड़ों में से एक है. किसी भी तरह की समस्या से मांसपेशियां शिथिल पड़ जाती हैं और टेंपोरोमांडब्यूलर ज्वाइंट रोग से परेशानी आ जाती है.
बहरहाल, तनाव या आक्रामकता अगर अपने आसपास की चीजों की वजह से आ सकती है, तो सामान्य उपायों से उससे छुटकारा पाया जा सकता है. इनमें अगर अधिकतर उपाय मनोवैज्ञानिक और अपने आचार-व्यवहार से जुड़े हैं, तो उनके पीछे वैज्ञानिक तथ्य छिपे हैं.
शत्रुता को बढ़ावा देते हैं क्रोध, अवमानना और घृणा!
इनसान के भीतर पैदा होने वाले क्रोध, अवमानना और घृणा जैसे व्यवहार शत्रुता को बढ़ावा देते हैं. ‘मेडिकल एक्सप्रेस’ के मुताबिक, राजनीति और कानून समेत अन्य अनेक विभागों में कार्यरत विविध लोगों पर किये गये शोध के आधार पर ये नतीजे निकाले गये हैं. हाल ही में अमेरिका की सैन फ्रैंसिस्काे यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने अपने अध्ययन में इसे दर्शाया है.
इस रिपोर्ट के प्रमुख लेखक और इस यूनिवर्सिटी में साइकोलॉजी के प्रोफेसर डेविड मेटसुमोटो का कहना है कि जब हम उन खास भावनाओं को समझने में सक्षम हो जाते हैं, जो इनसान को आक्रामकता की ओर ले जाती हैं, तो उनसे निबटने के लिए हम कुछ उपाय कर सकते हैं.
उन्होंने अलग-अलग विचारधारा वाले लोगों का इस संदर्भ में व्यापक अध्ययन किया है. उनका कहना है कि किसी इनसान में व्यापक आक्रामकता पैदा होने की दशा में दूसरों को उसके नकारात्मक असर से कैसे बचाया जाये, इस पर वे काम कर रहे हैं.
हर कार्यक्षेत्र में कम-से-कम पांच तरह के लोग
मनोचिकित्सकों का मानना है कि औसतन हर कार्यक्षेत्र में कम-से-कम पांच तरह के लोग होते हैं. इनमें स्वार्थी, दीवानेपन की हद तक क्रोधी, लड़ाकू किस्म के, अपराध की भूलें करनेवाले और गप्पी शामिल हैं.
इनसे ही कार्यालय की राजनीति तय होती है, जिससे अन्य सदस्यों की कार्यक्षमता प्रभावित होती है. विशेषज्ञ कहते हैं कि किस तरह से ऐसे लोगों से निबटा जा सकता है. कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर डाॅक्टर जुडिथ ऑरलोफ के अनुसार, इनकी वजह से ही ज्यादातर कार्यालय के काम प्रभावित होेते हैं. इनमें कुछ अप्रिय और अहंकारी पागलों की तरह होते हैं, लेकिन वे दूसरों को काफी आकर्षित कर सकते हैं. डाॅक्टर जुडिथ का कहना है कि ऐसे लोगों की जाल में फंसने से बचना जरूरी है.
आपको चाहिए कि उनसे बातचीत करने के दौरान अपनी भावनाओं को नियंत्रित रखें और अपने तरीके अपनाने के बजाय उनकी बातों को भी सुनें. इसी तरह से लड़ाकू या गुस्सैल बॉस से छुट्टी लेने के लिए उनसे सीधे छुट्टी मांग कर उलझने के बजाय यह समझाना सही होगा कि उन तारीखों पर अवकाश मिलने से संगठन को फायदा होगा.
कैसे-कैसे व्यक्तित्व
– लड़ाकू किस्म का व्यक्ति अपनी आत्म-प्रशंसा सुनना चाहता है. वह अपनी प्रमुखता और अधिकार को ही महत्व देता है. बात-बात पर भले ही वह नहीं भड़के, लेकिन उसके मन की नहीं होने पर तुरंत उत्तेजित हो जाता है.
– क्रोध का आदी या एंगर-एडिक्ट व्यक्ति आक्रामक प्रवृत्ति के होते हैं. वे आरोप, आक्रमण, आलोचनाएं या अपमानजनक बातों का सीधा जवाब देने में जरा भी देर नहीं करते हैं. अनियंत्रित क्रोधी व्यक्ति खतरनाक और बेकाबू हो जाते हैं.
– आक्रामक क्रोधी व्यक्ति एक तरह से क्रोध के दीवाने जैसे ही होते हैं. लेकिन ये अपने साथ वालों के साथ मुसकान, शांत स्वभाव और सकारात्मक ढंग से पेश आते हैं. जरूरत पड़ने पर छिपे तौर पर वार करने से नहीं चूकते हैं.
– भूल करने वाले दोषी बड़े पैमाने पर दोषी हो सकते हैं. वे अपने सहकर्मियों या सहयोगियों के इस्तेमाल करने का तरीका जानते हैं और हेर-फेर कर अपनी इच्छा पूरी करते हैं.
– गप्पी किस्म के व्यक्ति गॉशिप के जरिये बेवजह तनाव का माहौल बनाने में सफल होते हैं. ये लोग गुप्त बातों को दिलचस्प बना कर लोगों के साथ चतुराई के साथ साझा करते हैं.
आपका चेहरा देख कर घोड़ा पढ़ लेगा मन!
घोड़ा एक ऐसा जीव है, जो प्राचीन काल से ही इनसान के बेहद करीब रहा है. उन दिनों परिवहन का सबसे सुलभ और तेज साधन यही हुआ करता था. अब तक भले ही यह समझा जा रहा हो कि तेज भागने की वजह से यह जीव इनसान के लिए प्रिय रहा होगा, लेकिन एक नये शोध से यह पता चला है कि घोड़ा अपने प्रिय व्यक्ति का चेहरा देख कर उसके मन की बात को समझ जाता है.
‘साइंस एलर्ट’ की एक रिपोर्ट के मुताबिक, घोड़ा अपने मालिक के मिजाज का अंदाजा इस कदर लगाने में सक्षम होता है जैसे कि वह उसका अपना कोई बेहद प्रिय हो. ब्रिटेन के मनोवैज्ञानिकाें ने शोध के आधार पर पहली बार साबित किया है कि घोड़े इनसान के चेहरे के भाव के बीच भेद को समझ सकते हैं. इतना ही नहीं, यह हमारे मूड को समझने में काफी सक्षम है. गुस्से वाले चेहरे की तसवीरों को देखते ही उसमें उत्तेजना आ जाती है.
ज्यादातर पशु अपनी बायीं आंख से इनसान के मूड को भांप लेते हैं. वैसे घोड़ों के साथ इनसानों की बातचीत का प्रयोग काफी शुरुआती दौर में है. इस शोध में 28 घोड़ों को शामिल किया गया है, इसलिए फिलहाल इसके नतीजों पर ज्यादा चर्चा नहीं की जा रही है. फिर भी अब तक के विश्लेषण के अाधार पर इतना तय है कि इस पशु में इनसान के साथ जुड़ने की क्षमता अधिक हो सकती है.
ससेक्स यूनिवर्सिटी के प्रमुख शोधकर्ता एमी स्मिथ के अनुसार, इस दिलचस्प शोध से पता चलता है कि जानवरों की विविध प्रजातियों में घोड़ों में भावनाओं को पढ़ने की क्षमता ज्यादा होती है. हम बहुत पहले से सुनते आये हैं कि घोड़ा सामाजिक रूप से एक परिष्कृत प्राणी है और शोध के माध्यम से भी यह स्पष्ट किया गया है कि वह इनसान के चेहरे पर उपजने वाले सकारात्मक और नकारात्मक भावों के बीच भेद कर सकता है.
कैसे समझा गया इसे
इसे साबित करने के लिए शोधकर्ताओं ने एक खास इनसान की अलग-अलग चेहरे के भाव को दर्शाने वाली दो बड़ी रंगीन तसवीरें बनवायीं. इनमें एक तसवीर मुसकुराते हुए दांत दिखानेवाली थी, जबकि दूसरा गुस्सेवाली दांत भींची हुई थी. ब्रिटेन के पांच अलग-अलग अस्तबलों में 28 घोड़ों को ये तसवीरें दिखायी गयीं. घोड़ों को तसवीरें दिखानेवालों को नहीं पता कि किस तरह की तसवीर उसके हाथ में है. हर तसवीर को देखने के बाद इन घोड़ों में अलग-अलग तरह की प्रतिक्रियाएं देखी गयीं.
खुशी प्रकट करनेवाली तसवीर देख कर घोड़े में नाराजगी नहीं दिखी, जबकि गुस्सेवाली तसवीर देखते ही घोड़े में उत्तेजना आ गयी और उसका व्यवहार असहज हो गया. नाराज घोड़े में बायीं आंख में गुस्से के भाव स्पष्ट दिखे और उसका सिर भी घूमने लगा था. यह भले ही अजीब लगने जैसा हो सकता है, लेकिन व्यापक शोध से पता चला है कि अन्य जानवरों की प्रजातियों की बायीं आंखों में नकारात्मक प्रभाव आ जाते हैं, क्योंकि उसके दायीं ओर के मस्तिष्क में उत्तेजना की प्रक्रिया होने लगती है.

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