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फिर आने वाला है पोलाराइड कैमरे का दौर स्ननैप लें और प्रिंट करें
जर्मनी के बर्लिन शहर में आज खत्म हो रहे तकनीकी मेले में दुनिया की प्रमुख कंपनियों ने नये-नये प्रोडक्ट लॉन्च किये हैं. इनमें से कई चीजें पूरी दुनिया में चर्चा का विषय बन रही हैं. इन्हीं में शामिल है एक ऐसा कैमरा, जिसका दौर कुछ दशकों पहले खत्म हो चुका था, लेकिन नयी खासियतों के […]
जर्मनी के बर्लिन शहर में आज खत्म हो रहे तकनीकी मेले में दुनिया की प्रमुख कंपनियों ने नये-नये प्रोडक्ट लॉन्च किये हैं. इनमें से कई चीजें पूरी दुनिया में चर्चा का विषय बन रही हैं. इन्हीं में शामिल है एक ऐसा कैमरा, जिसका दौर कुछ दशकों पहले खत्म हो चुका था, लेकिन नयी खासियतों के साथ यह फिर से आ चुका है. कैसा है यह कैमरा, क्या है इसकी खासियतें आदि समेत इसके अनेक पहलुओं के बारे में बता रहा है आज का नॉलेज…
– शंभु सुमन
सेल्फी और डिजिटल कैमरे के बेहद लोकप्रिय दौर में अपनी तसवीरें देखने का आनंद भले ही सुखद हो, लेकिन जो अनुभूति चिकने ब्रोमाइड पेपर पर छपी हुई तस्वीर को निहारने में होता है, वैसा असर डिजिटल कैमरे, कंप्यूटर या स्मार्टफोन के स्क्रीन पर देखने से नहीं हो पाता.
एक से बढ़ कर एक सुविधाओं वाले डिजिटल कैमरे के आने और विभिन्न मेगा पिक्सल वाले फ्रंट, रीयर और बैक कैमरे वाले स्मार्टफोन की लोकप्रियता ने लोगों में फोटोग्राफी के प्रति भी काफी हद तक दीवानगी पैदा कर दी है. आज हर उम्र के सामान्य से सामान्य लोग भी विभिन्न मौके को अपने कैमरे में कैद करने को इच्छुक रहते हैं. उनकी कोशिश होती है कि कोई भी यादगार लम्हा संजोये जाने से वंचित न रह जाये. आज कैमरा एक दुर्लभ वस्तु नहीं रहा, और न ही तसवीरों को खींचने से लेकर उन्हें सहेजने-संभालने की ज्यादा झंझट है. एक-दो नहीं, बल्कि सैकड़ों-हजारों की संख्या में तसवीरें संग्रहित करने के डिजिटल तरीके उपलब्ध हैं.
ऐसे में अपने स्मार्टफोन से सेल्फी लेनेवाला कोई युगल क्षणभर के लिए सोचता है, काश! स्नैप लेते ही इसका एक प्रिंट भी बन जाता, तो बहुत अच्छा होता, ताकि वह अपने प्रिय की तसवीर को उपहारस्वरूप अपने हस्ताक्षर समेत तुरंत भेंट कर पाता. माना कि स्नैप को प्रिंट करने में कोई विशेष मुश्किल नहीं है, लेकिन स्नैप की तरह वह चंद मिनटों में नहीं मिल सकता है.
अच्छे और मनपसंद प्रिंट के लिए स्टूडियो तक जाना पड़ता है, जहां से डिजिटल प्रिंट निकलवाना होता है. फिलहाल इस काम में थोड़ा समय ज्यादा लगता है, लेकिन बहुत जल्द ही इस समस्या का समाधान भी होने वाला है, क्योंकि पोलाराइड युग की वापसी हो चुकी है. अब पोलाराइड या स्नैप करें और चंद सेकेंड में प्रिंटेड तसवीर प्राप्त करें.
प्रिंटेड फोटो की चाहत
सत्तर के दशक में आया पोलाराइड कैमरा लोगों के जेहन में अभी भी बसा हुआ है, जो डिजिटल कैमरे के आने तक लोकप्रिय बना रहा. यही पोलाराइड कैमरा इस बार डिजिटल कैमरे के रूप में प्रिंटिंग तकनीक की नयी सुविधाओं के साथ बाजार में आ चुका है. इसके बारे में महत्वपूर्ण बात यह है कि इस कैमरे के साथ प्रिंटिंग की वैसी तकनीकी सुविधा भी दी गयी है, जिसमें न तो स्याही का इस्तेमाल होता है और न ही कलर इंक का कार्टेज या रिबन लगाया जाता है.
इसके माध्यम से एक मिनट के भीतर 2 गुणा 3 इंच यानी पर्स के आकार की तसवीर तुरंत प्रिंट होकर बाहर निकल आती है. यानी कि स्नैप लें और प्रिंट करें का झटपट खेल चमत्कृत करने जैसा होता है.
जर्मनी के बर्लिन में 4 से 9 सितंबर तक चलनेवाले आइएफए 2015 की प्रदर्शनी में इस पोलाराइड डिजिटल कैमरे का भी प्रदर्शन किया गया. आयोजक द्वारा इस बारे में कई खूबियां गिनायी गयीं और आने वाले दिनों में इसके लोकप्रिय होने की संभावनाएं तलाशी गयीं.
लोगों में भी इस 10 मेगापिक्सल कैमरे के प्रति गजब की ललक देखी गयी, जिसमें 32 जीबी तक डाटा संग्रहित करने की क्षमता का एक माइक्रो एसडी कार्ड लगाया गया है. यह कैमरा न केवल तुरंत फोटो खींच सकता है, बल्कि उसकी ब्रोमाइड पर रंगीन प्रिंट देने में भी सक्षम है.
एक मिनट में फोटो प्रिंट
एक स्नैप के बाद फोटो के प्रिंट होकर पूरी तरह से बाहर निकलने में करीब एक मिनट का समय लगता है. यह ठीक उसी तरह से बाहर निकलता है, जिस तरह एक कलर लेजर प्रिंटर से प्रिंटआउट होता है.
इसी के साथ तसवीर को जरूरत के मुताबिक आसानी से कंप्यूटर, इंटरनेट से मिलनेवाली सुविधाओं, क्लाउड या सोशल साइटों के मंच पर भी सीधे-सीधे अपलोड किया जा सकता है. सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि फोटो प्रिंट के लिए इसमें जिंक यानी जीरो इंक कार्ड का इस्तेमाल किया जाता है, जिस पर स्यान, पीला और मेजेंटा रंगों के रसायन पहले से कोटेड होते हैं. उल्लेखनीय है कि यही तीन मूल रंग होते हैं, जिनसे बाकी के रंग या उनके शेड बन जाते हैं. छपने से पहले यह कार्ड सामान्य चिकने ब्रोमाइड पेपर की तरह सफेद दिखता है.
पोलाराइड स्नैप नाम के इस कैमरे का निर्माता एक जानेमाने औद्योगिक डिजाइनर रॉबर्ड ब्रूनर के नेतृत्व की कंपनी एम्मयूनिएशन है. ब्रूनर इससे पहले एडोब, बीट्स बाय ड्रे, स्क्वायर, लिफ्ट, ओबी वर्ल्डफोन और विलियम्स-सोनोमा के लिए डिजाइनिंग का काम कर चुके हैं. यह कैमरा बाजार में कम से कम 99 डॉलर अर्थात करीब 6315 रुपये में उपलब्ध है. एमेजन पर इसे ऑनलाइन भी बेचा जा रहा है.
कैमरे के अतिरिक्त 50 जिंक पेपर के पैकेट की कीमत 29.99 डॉलर यानी करीब 1900 रुपये रखी गयी है. इस कैमरे की अन्य विशेषताओं में एक फोटो बूथ एप्प के साथ खुद तसवीर लेने के लिए टाइमर का लगा होना भी है, जिससे केवल दस सेकेंड में छह तसवीरें ले सकती हैं. साथ ही यह आपको सेल्फी लेने में भी मदद कर सकता है. इसमें लगी वाइफाइ की सुविधा से तसवीरों को तुरंत कहीं भी आसानी से भेजा जा सकता है.
75 साल पहले आया पोलाराइड
इस कैमरे की डिजाइनिंग पोलाराइड कलर स्पेक्ट्रम के तकनीक के आधार पर की गयी है. हालांकि, तुरंत फोटो लेने और उसका प्रिंट लेने की अवधारणा पोलाराइड के द्वारा करीब 75 साल पहले ही विकसित की गयी थी. इस बारे में पोलाराइड के स्कॉट हार्डी ने प्रदर्शनी के दौरान मौजूद लोगों को विस्तार से बताया. मूलरूप से सन 1937 में स्थापित पोलाराइड दशकों से कैमरा और फोटोग्राफी संबंधी सामानों के निर्माण के लिए जाना जाता है. वर्ष 1943 में पोलाराइड के संस्थापक इडविन को तुरंत प्रिंट होनेवाली तसवीर का आइडिया उनकी तीन साल की बेटी के सवाल से मिला. एक बार उनकी बेटी ने पूछा, ‘स्नैप की तसवीर वह तुरंत क्यों नहीं देख सकती है?’
यह बात उनके दिमाग में घर कर गयी और वे इस क्षेत्र में नया करने में जुट गये. उन्हें सफलता चार साल बाद मिली और उन्होंने तुरंत प्रिंट किये जाने वाला कैमरा विकसित किया. देखते ही देखते यह कैमरा काफी लोकप्रिय हो गया. खासकर टूरिस्टों और नवविवाहित जोड़े इसका जम कर उपयोग करने लगे. यहां तक कि यह समाचार पत्र- पत्रिकाओं और दूसरे शोधार्थियों के लिए भी महत्व की चीज बन गया.
कारण इससे तसवीर के प्रिंट हाेने वाले समय की बचत होने लगी और रील के प्रोसेसिंग के झंझट से भी मुक्ति मिल गयी. पासपोर्ट साइज फोटो तुरंत बनवाना आसान हो गया, जबकि रील के खींचे गये कैमरे में तसवीरें तब तक कैद रहती थीं, जब तक कि उसकी रासायनिक प्रक्रिया अपना कर धुलाई और ब्रोमाइड पेपर पर सही तरीके से प्रिंट न कर लिया जाये. कई बार प्रोसेसिंग की गड़बड़ी की वजह से अच्छी स्नैप ली गयी तसवीर की गुणवत्ता में भी कमी आ जाती थी.
1980 तक खत्म हो गया था पोलाराइड कैमरा
वैसे पोलाराइड कैमरे का उपयोग 1980 के आते-आते काफी कम हो गया था. कारण तब तक वीडियो और डिजिटल कैमरे ने दस्तक दे दी थी. वर्ष 1990 आते-आते लोग इसे ठीक उसी तरह से भूल गये जैसे आज पेजर, ब्लैक एंड व्हाइट टेलीविजन और कंप्यूटर की फलोपी को भूल चुके हैं. अक्टूबर, 2001 में पोलाराइड कैमरे ने अंतिम सांस ली, लेकिन एक साल बाद ही पोलाराइड ब्रांड का लाइसेंस दूसरे उत्पादों के लिए मिल गया. हालांकि, इसकी हालत दिन-प्रतिदिन खराब होती चली गयी और 2008 में इसे दीवालिया घोषित कर दिया. इस घोषणा के बाद पोलाराइड की संपत्ति कई कंपनियों ने खरीद ली. इस क्रम में सीएंडए मार्केटिंग के स्नैप ने पोलाराइड लाइसेंस को 2009 में हासिल कर लिया.
बहरहाल, पोलाराइड एक बार फिर से वन स्नैप, वन प्रिंट आइडिया के साथ लोगों के सामने है. इससे प्रिंट होने वाली छोटे आकार की तसवीरें बदलते हुए व्यावसायिक दौर के लिए उपयोगी साबित हो सकती हैं. अगर यह पर्स में रखे जाने वाली या मेज पर छोटे से फोटो एलबम में यादगार तसवीर के तौर पर भावनात्मक रूप की जुड़ी हो सकती हैं, तो इसके कुछ व्यावसायिक या दूसरे तरह के उपयोग भी हो सकते हैं.
जैसे स्टीकर, विजिटिंग कार्ड आदि बीते जमाने के पोलाराइड तसवीर की तुलना में इस तसवीर की गुणवत्ता डिजिटल प्रिंटिंग तकनीक की वजह से बेहतर होने का दावा किया गया है. साथ ही तसवीर लंबे समय तक सुरक्षित भी रहती है और इस पर दाग-धब्बे भी नहीं पड़ते हैं.
िबना कार्टेज के फोटो
पोलाराइड स्नैप डिजिटल कैमरे में तसवीर लेने की तकनीक एक सामान्य डिजिटल कैमरे की तरह ही होती है. इसमें बदलाव केवल प्रिंटिंग तकनीक के साथ किया गया है. यह कहें कि एक डिजिटल कैमरे में फोटो प्रिंट करने की सुविधा जोड़ दी गयी है. इस फोटो प्रिंट की खूबी यह है कि इसमें रंगों की स्याही का कोई कार्टेज नहीं लगाया जाता है. यह स्याही के बगैर प्रिंटिंग की तकनीक पर कार्य करता है.
यानी कि कैमरे के साथ जुड़े प्रिंटर के तकनीक की बात करें, तो यह कैमरे के आकार के साथ जुड़ा होता है. इस हिस्से में जिंक पेपर लगाये जाते हैं- तीन मूल रंगों- स्यान, पीला और मेजेंटा के क्रिस्टल का सूखा लेप विभिन्न स्तरों पर लगा होता है. हालांकि, यह दिखने में सफेद सामान्य चिकने पेपर जैसा ही होता है. इस पर कई परतें चढ़ायी जाती हैं, जिन्हें मूल आधार की परत पर काफी बारीकी से कोट किया जाता है. इस पर की गयी पोलिमर की कोटिंग नमी, यूवीएम एक्सपोजर और धुंधलाने या दाग-धब्बे पड़ने से बचाता है. इन सभी परतों की मोटाई मानव के केश जितनी ही होती है.
अच्छी गुणवत्ता
कैमरे में स्नैप के बाद प्रिंट का ऑप्शन चुना जाता है. तब इसमें लगा प्रिंटर का हिस्सा एक सेकेंड में ही काफी गर्म हो जाता है, जिससे पेपर पर कोट किये गये रंगों के क्रिस्टल टूटने लगते हैं और एक-दूसरे से मिश्रित होकर स्थायी रंग बना देते हैं. तुरंत ही ये रंगों के क्रिस्टल तसवीर के अनुरूप विविध रंगों के साथ पूरे पेपर पर फैल जाते हैं. जैसे ही पेपर बाहर निकलने लगता है, इसके ठंडा होने पर मिश्रित रंग ठोस बन जाते हैं और खूबसूरत तसवीर उभर आती है. इस तरह से बाहर निकलने वाली तसवीर काफी चमकदार, अच्छी गुणवत्ता लिए होती है, जो लंबे समय तक नहीं धुंधलाती है.
सबसे पहले कैमरा ईराक के वैज्ञानिक इब्न-अल-हजैन द्वारा 1015 से 1021 के दौरान इस्तेमाल किया गया था. उस समय कैमरा ऑब्स्क्योरा के रूप में आया. बाद में अंगरेज वैज्ञानिक राबर्ट बॉयल और उनके सहायक राबर्ट हुक ने 1660 के दशक में एक पोर्टेबल कैमरा विकसित किया. बाद में सन 1685 में जॉहन जॉन द्वारा विकसित किया गया कैमरा और ज्यादा व्यावहारिक बन गया था. अलग-अलग दौर में इसमें व्यापक बदलाव होता रहा. ऑब्स्क्योर से लेकर डिजिटल कैमरे में हर पल को यादगार बना लेने की अद्भुत क्षमता है और इसके सफर में भी कई यादगार पहलू जुड़े हैं.
आब्स्क्योर कैमरा : पहले किस्म का यह कैमरा करीब एक कमरे के आकार का था. समय के साथ इसमें व्यापक बदलाव आया और इसका आकार छोटा होता चला गया. सन 1816 तक निप्से ने इसमें कई बदलाव किये.
कैलोटाइप्स
निप्से की मृत्यु के बाद सन1839 में उनके सहयोगी लुइस डैगुरे ने पहली बार प्रैक्टिकल फोटोग्राफिक प्रोसेस बनाया. इसे डैगुरियोटाइप का नाम दिया गया. बाद में 1840 में हैनरी फॉक्स ने कैलोटाइप्स नामक एक नयी प्राेसेस विकसित की. इसके जरिये एक फोटो की कई प्रतियां बनायी जा सकती थीं.
फिल्म का कैमरा
पहली बार कैमरे में फिल्म का उपयोग जार्ज इस्टमैन ने किया. उनके द्वारा बनाये गये कैमरे को कोडक का नाम दिया गया. यह बाजार में 1888 में आया, जिससे 100 तसवीरें हासिल की जा सकती थीं. इसमें फिल्म बदलने की भी सुविधा थी. इसी फिल्म के इजाद के साथ मूवी कैमरे का भी आविष्कार हुआ.
टीएलआर : वर्ष 1928 में पहली बार रिफ्लेक्स कैमरे का इजाद किया गया, जो काफी लोकप्रिय हुआ.एसएलआर : कैमरे का यह प्रकार 1933 में आया, जिसमें 127 रोल फिल्म लगी हुई थीं. बाद में 135 फिल्म्स के रोल वाला कैमरा आया.
पोलाराइड कैमरा : वर्ष 1948 में आया यह एक बिल्कुल ही नया कैमरा था, जिसे एडविन लैंड ने बनाया था. इसकी लोकप्रियता सत्तर के दशक में कायम हुई थी. इसमें तुरंत पिक्चर्स निकल आते थे.
डिजिटल कैमरा : यह पहले के सभी कैमरे से काफी अलग है, जिसका इस्तेमाल इन दिनों धड़ल्ले से हो रहा है. इनमें किसी तरह की फिल्म का इस्तेमाल नहीं होता है. इनमें फोटो डिजिटल मैमोरी कार्ड में सेव होता है. इसमें ब्लूटूथ, वाइफाइ आदि से फोटो शेयर की सुविधा भी है.
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