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वंदौ गुरुपद कंज, कृपा सिंधु नररूप हरि, महामोह तम पुंज, जासु वचन रवि कर निकर
शिक्षक दिवस शत्रुघ्न प्रसाद सिंह पूर्व सांसद, अध्यक्ष, बिहार माध्यमिक शिक्षक संघ मोह के तम पुंज को ज्ञान रश्मियों से दूर भगाने वाले नररूप हरि की वंदना के स्वर आज मद्धिम पड़ रहे हैं. महान राष्ट्र भक्त, आदर्श शिक्षक राष्ट्रपति डॉ राधाकृष्णन ने हमें आत्मविश्लेषण, आत्मावलोकन करना चाहिए. क्या सत्ता द्वारा प्रायोजित शिक्षक सम्मान की […]
शिक्षक दिवस
शत्रुघ्न प्रसाद सिंह
पूर्व सांसद, अध्यक्ष, बिहार माध्यमिक शिक्षक संघ
मोह के तम पुंज को ज्ञान रश्मियों से दूर भगाने वाले नररूप हरि की वंदना के स्वर आज मद्धिम पड़ रहे हैं. महान राष्ट्र भक्त, आदर्श शिक्षक राष्ट्रपति डॉ राधाकृष्णन ने हमें आत्मविश्लेषण, आत्मावलोकन करना चाहिए. क्या सत्ता द्वारा प्रायोजित शिक्षक सम्मान की सार्थकता समाप्त नहीं हो रही है ? राष्ट्र के सम्मान समारोह में समाज की सहभागिता हो पाती है ? शिक्षकों का राष्ट्रीय और सामाजिक दायित्व सिर्फ पुरस्कारों तक ही सीमित नहीं है ?
शिक्षक समाज, सत्ता के द्वारा प्रदत्त अधिकारों की वंचना का शिकार है. इस छल और प्रवंचना को अपने पौरुष से पराजित करने के पर्व के रूप में शिक्षक दिवस को मनाने का संकल्प लेने का यही वक्त है. तभी तुलसीदास के शब्दों में-‘वंदौ गुरुपद पदुम परागा, सुरुचि सुवास सरस अनुरागा.’ से पूरा राष्ट्र और समाज भी सम्मानित होगा. सुना है कि आज राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी शिक्षक दिवस के सम्मान में बच्चों को पढ़ा रहे हैं. कुछ दिन पहले पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल कलाम अंतिम सांस तक पढ़ाते रहे. प्रधानमंत्री भी शिक्षक दिवस पर मन की बात करते हैं.
स्वामी विवेकानंद, महात्मा गांधी, कोठारी, राममूर्ति, मुदालियर, पटेल, अरविंद आदि महापुरुषों ने शिक्षा, शिक्षक, शिक्षार्थी के भूत, वर्तमान और भविष्य पर गहन चिंतन मनन किया है. क्या हम प्रेरणा की ऐसी प्रज्जवलित दीप शिखा में अपने श्रमसीकर का स्नेह दान देकर अप्प दीपो भव की सार्थकता सिद्ध करेंगे. व्यवस्था ने शिक्षकों के सम्मान का अवमूल्यन कर दिया है.
उन्हें झारखंड में पारा, मध्य प्रदेश में मित्र, बिहार में नियोजित और दिल्ली में अतिथि शिक्षक का दर्जा देकर शिक्षक जैसे पवित्र एवं गरिमापूर्ण पेशा को कलंकित करने का पाप किया है. इन नियोजनों, नियुक्तियों में पकड़े गये फर्जी शिक्षकों ने पूरे राष्ट्र राज्य को कलंकित किया है.
वे माननीय उच्च न्यायालय के निर्देश पर विवश होकर जेल जाने के भय से नौकरी छोड़ कर भाग गये. जो नहीं भागे पकड़े गये. लेकिन नीचे से ऊपर तक जिन सरकारी पदाधिकारियों एवं जनप्रतिनिधियों ने ऐसा कलंकित कांड रचा उन्हें जेल की सलाखों में क्यों नहीं बंद किया जाता है ?
शिक्षक नियुक्ति घोटाले के कारण हरियाणा के तो तत्कालीन मुख्यमंत्री जेल के सींखचों में बंद हैं. व्यापम घोटाले में भी कई तथाकथित शिक्षकों, नौकरशाहों एवं राजनेताओं के दामन रक्त रंजित हैं. बिहार लोक सेवा आयोग, माध्यमिक सेवा बोर्ड, विभिन्न नियोजन इकाइयां, पंचायत, प्रखंड, स्थानीय निकायों के माध्यम से नियुक्त नियोजन की वैध-अवैध प्रक्रियाएं अपनायी जाती रही है.
योग्य, अयोग्य, दक्षता, पात्रता परीक्षोत्तीर्ण शिक्षक बहाल हो रहे हैं. इन सारी दोषपूर्ण प्रक्रियाओं ने शिक्षा व्यवस्था की स्वस्थ, सुसंस्कृत व्यवस्था को ही ध्वस्त कर दिया है इसे तुरत समाप्त करना चाहिए. तभी शिक्षक सही मायने में सम्मानित होंगे. आज अर्थ पिशाच पूरी दुनिया को निगल जाना चाहता है.
विश्व बैंक के बिचौलियों ने सुदृढ़ भारतीय सुसंस्कृत शिक्षा व्यवस्था को नीलाम कर पूरी पीढ़ी को कर्जखोर बना दिया है. सस्ती मजदूरी, सस्ते श्रम पर अपनी गर्वोक्ति से दुनिया में दहाड़ने वाले देश सेवक शिक्षकों को झुनझुना दिखला रहे हैं तो इसमें आश्चर्य नहीं होना चाहिए. घपले, घोटाले, जेल और बेल का खेल शिक्षा जगत को कलंकित कर रहा है. वैज्ञानिक सोच समझ की तिलांजलि देने वाले सत्ता के शीर्ष पर है. शिक्षा की मूल समस्याओं से ध्यान हटाने के सारे कुप्रयास हो रहे हैं. विद्यालयों, महाविद्यालयों एवं विश्वविद्यालयों में शिक्षकों के लाखों पद रिक्त है.
छात्रों का सिर्फ नामांकन, पंजीयन, परीक्षा, मूल्यांकन, बिना विद्यालयों, महाविद्यालयों में पढ़े, परीक्षा के प्रमाण पत्र प्राप्त हो रहे हैं. ताज्जुब यह है कि जिन विषयों के शिक्षक अंगीभूत अथवा संबद्ध, स्वीकृत-प्रस्वीकृत, विद्यालयों, महाविद्यालयों में नहीं है, उन विषयों में नामांकित छात्र-छात्राओं की उपस्थिति दर्ज होती है, परीक्षा देते हैं, उत्तीर्ण होते हैं. पूरे देश में लगभग 10 लाख और सिर्फ बिहार में दो लाख शिक्षकों के पद रिक्त हैं. छात्र-शिक्षकों को नहीं जानते-पहचानते हैं. गुरु पूर्णिमा, शिक्षक दिवस जैसे पवित्र मौके पर किसकी पूजा, किसका पुष्प, धूप, दीप से नीराजन सजाये जायें ? जिन गुरुओं ने सब कुछ दिया आखिर उन्हें किस तरह सम्मानित करें. वेद की ऋचा है :
अर्थात आपमें स्वर्णिम संस्कार प्रदान करने की असीम शक्ति है और जीवों के एकमात्र स्वामी आप ही है और आपने ही इस पृथ्वी का धारण लोक कल्याण के लिए किया है. ब्राह्मांड की सारी सामग्रियां आपकी ही है. इस प्रकार जो भी समर्पित किया जाये वह भी तो आप ही का है. इसलिए कौन सी वस्तु हवन के रूप में आपको समर्पित करूं ऐसा ज्ञान मुझमें नहीं है.
वेद, पुराण, उपनिषद, रामचरितमासन आदि सदग्रंथों ने जिन गुरुओं की महिमा गायी है उन्हें सरकार ने रसोईया बना दिया है. प्राथमिक, माध्यमिक शिक्षक तो साइकिल, पोशाक, मध्याह्न भोजन, छात्रवृत्तियों के वितरण एवं इसके हिसाब किताबों एवं संकुल केंद्रों में ही अपमानित प्रताडि़त हो रहे हैं.
जब से सरकार ने वोट बैंक के निर्लज्ज निर्णय के कारण 75 फीसदी उपस्थिति की अनिवार्यता समाप्त कर दी है, तब से छात्र-छात्राओं की अनुपस्थिति के आंकड़े भयभीत करने लगे हैं. पढ़ने-पढ़ाने वाले शिक्षक सम्मानित होते हैं, होते रहेंगे. सत्ता पुरस्कृत भले नहीं करे. जनता, छात्र, अभिभावक उन्हें ‘वंदौ गुरुपद’ करते हैं. अध्यापन एक साधना है. साधक शिक्षक स्वाध्याय से समाज, राष्ट्र और भविष्य का निर्माण निष्ठापूर्वक कर रहे हैं.
वे सम्मान के भूखे नहीं है. शिक्षक दिवस साधना के सम्मान का पर्व है लेकिन पाखंड की राजनीति ने साधना का भी बाजारीकरण कर दिया है. सब कुछ बेचे और खरीदे जाते हैं. सच्चा साधक शिक्षक, अपमान का घूंट पीते रहने के लिए अभिशप्त हैं.
शिक्षक दिवस देश प्रदेश की राजधानी के मुख्यालयों में मनाया जाता है. राष्ट्रपति, मुख्यमंत्री, शिक्षा मंत्री और कहीं-कहीं जिलाधिकारी, पुलिस अधीक्षक भी शिक्षकों को सम्मानित करते हैं. बिहार माध्यमिक शिक्षक संघ की कतिपय जिला शाखाएं स्वयं ही सेवानिवृत्त साथियों को सम्मानित करती है.
लेकिन जन सम्मान से दूर संरक्षित समारोह नये संस्कार का सृजन नहीं कर सकते हैं. भव्यता के भ्रमजाल में नकली संसार के सृजन देवता ने शिक्षा और शिक्षक को आभासी दुनिया का सौदागार बना दिया है. रोजगार विहीन विकास के आतंक ने शिक्षित, प्रशिक्षित, कुशल, अकुशल युवा बेरोजगार की ऐसी आक्रामक फौज तैयार कर दी है कि वे विज्ञापन, रिक्ति आदि देख कर झपट्टा मारती है, परीक्षा में कदाचार, फर्जी अंक पत्रक, प्रमाण पत्र जैसे तैसे प्राप्त करना, कराने का गंदा खेल खूब हो रहा है.
केवल शिक्षक ही नहीं व्यापम मॉडल डॉक्टर, इंजीनियर, सरकारी कर्मचारी लाखों करोड़ों में सब कुछ तुरंत पा लेने की ललक में दौलतमंद बनना चाहते हैं. 15 अगस्त को लाल किले के प्राचीर से माननीय प्रधानमंत्री ने सिर्फ अंक पत्रकों के आधार पर ही बिना साक्षात्कार, परीक्षा, प्रमाण पत्रों के सत्यापन किये सरकारी पदों पर नियुक्ति करने की घोषणा की है. साक्षात्कार में पैरवी पुत्रों की नियुक्ति में व्याप्त भ्रष्टाचार पर रोक लगाने की सदिच्छा से ही परीक्षा में कदाचार नहीं रोका जा सकता है. नियुक्ति में पारदर्शिता सिर्फ आनलाइन से ही नहीं होगी.
इससे पाठ्यक्रम, परीक्षा, मूल्यांकन की पद्धतियों में आमूल परिवर्तन की अनिवार्यता होनी चाहिए. शिक्षकों की प्रतिष्ठा सिर्फ पुरस्कार से नहीं वरन उन्हें संविधान प्रदत्त गरिमापूर्ण जीवन जीने के लिए संवैधानिक अधिकार सुनिश्चित करने होंगे. स्मार्ट स्कूल एवं स्मार्ट शिक्षक के बिना शिक्षक दिवस के गरिमापूर्ण पर्व में कुछ शिक्षकों को सम्मानित करना सिर्फ सत्ता का पाखंड होगा और यह यक्ष प्रश्न अनुत्तरित ही रहेगा.
‘कस्मै देवाय हविषा विधेम’
शत्रुघ्न प्रसाद सिंह, पूर्व सांसद
अध्यक्ष, बिहार माध्यमिक शिक्षक संघ
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