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…तो 21वीं सदी का पहला डिफॉल्टर देश घोषित हो जायेगा ”ग्रीस”

एथेंस : दुनिया की सबसे बड़ी मर्चेट नेवी वाला देश ग्रीस आज जबरदस्त आर्थिक संकट से घिरा हुआ है. ऋण संकट चरम पर है. ग्रीस के यूरो जोन में बने रहने की कोशिशें भी लगातार नाकाम होती जा रही हैं. इस संकट का असर सोमवार को दुनिया भर के शेयर बाजारों में देखा गया. दुनिया […]

एथेंस : दुनिया की सबसे बड़ी मर्चेट नेवी वाला देश ग्रीस आज जबरदस्त आर्थिक संकट से घिरा हुआ है. ऋण संकट चरम पर है. ग्रीस के यूरो जोन में बने रहने की कोशिशें भी लगातार नाकाम होती जा रही हैं. इस संकट का असर सोमवार को दुनिया भर के शेयर बाजारों में देखा गया. दुनिया इस संकट से उबरने की दुआ कर रही है.

मंगलवार 30 जून यानी आज तक 1.6 अरब यूरो यानी 11440 करोड़ रुपये चुकाने की डेडलाइन (आइएमएफ में)है. यदि ग्रीस भुगतान नहीं करता है तो उसे डिफॉल्टर घोषित कर दिया जायेगा. यदि किस्मत ने साथ नहीं दिया तो वह 21वीं सदी का वह पहला देश बन जाएगा जो डिफॉल्टर घोषित होगा.

क्या हैसंकटकेकारण

1. ग्रीस के डिफॉल्ट होने की नींव एक तरह से 1999 में पड़ी, जब जबरदस्त भूकंप आया था. इसमें देश का ज्यादातर हिस्सा तबाह हो गया था. लगभग 50,000 इमारतों का पुनर्निर्माण करना पड़ा था. यह सारा काम सरकारी धन खर्च करके किया गया.

2. 2001 में यूरो जोन से जुड़ना भी ग्रीस के लिए फायदे का सौदा नहीं रहा. ग्रीस इस जोन में इसलिए शामिल हुआ कि उसे कर्ज मिलने में आसानी होगी, लेकिन उसका यह फैसला अब भारी पड़ता दिख रहा है.

3. 2004 में ओलिंपिक खेलों का आयोजन वर्तमान संकट के लिए जिम्मेदार है. इस आयोजन के लिए ग्रीस ने यूरो जोन से बड़ी मात्र में कर्ज लिया था. सफल आयोजन के लिए बेहिसाब धन खर्च किया गया. ओलिंपिक के लिए केवल सात साल के दौरान ही 12 अरब डॉलर (76,620 करोड़ रुपये) से ज्यादा खर्च किये गये.

4. ग्रीस का राजकोषीय घाटा बढ़ रहा था, लेकिन तत्कालीन सरकार ने खातों में हेराफेरी कर आंकड़ों को बढ़ा-चढ़ा कर पेश किया. 2009 में सत्ता में आयी नयी सरकार ने इसका खुलासा किया. उस समय ग्रीस पर उसकी जीडीपी की तुलना में 113 फीसदी ऋण था, जो यूरो जोन में सर्वाधिक था.

5. आंकड़ों में जोड़-तोड़ की बात सामने आने के कारण ग्रीस पर भरोसे का संकट पैदा हो गया. इसके चलते इस संकटग्रस्त देश को कर्ज देने वाले देशों की संख्या काफी कम हो गयी. इस दौरान यहां ब्याज दरें 30 फीसदी के स्तर पर पहुंच गयी.

6. राहत पैकेज का सही इस्तेमाल नहीं करना भी इस संकट का कारण है. मई 2010 में यूरो जोन, यूरोपियन सेंट्रल बैंक और अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने ग्रीस को डिफॉल्ट से बचाने के लिए 10 अरब यूरो का यूरो का राहत पैकेज दिया. जून 2013 तक उसकी वित्तीय जरूरतें भी पूरी कीं और उसके सामने सुधारों को लागू करने की शर्ते भी रखी गयी, लेकिन भारी सुस्ती और राहत पैकेज की शर्तो को सरकार लागू करने में नाकाम रही.

7. चुनाव के दौरान राजनीतिक दलों द्वारा किये लोकलुभावन वादे भी इस संकट के कारण बने. हुआ यूं कि ग्रीस की अर्थव्यवस्था कुछ रफ्तार पकड़ ही रही थी कि संसदीय चुनाव के बाद वामपंथी पार्टी इन वादों के साथ सत्ता में आयी कि सरकार बनते ही बेलआउट की शर्तो को ठुकरा दिया जायेगा. हालांकि, यूरो जोन के देशों ने फिर ग्रीस को राहत देते हुए टेक्निकल एक्सटेंशन दिया, लेकिन कोई राहत नहीं मिली.

बचने केउपाय

देश के सभी बैंक अगले एक सप्ताह तक बंद रहेंगे

एटीएम से भी 60 यूरो से ज्यादा निकालने पर रोक

ऑनलाइन बैंकिंग जारी, पर फॉरेन ट्रांसफर पर रोक

नहीं तो ग्रीस को घोषित कर दिया जायेगा डिफॉल्टर

मंगलवार 30 जून तक 1.6 अरब यूरो यानी 11440 करोड़ रुपये चुकाने की डेडलाइन (आइएमएफ में)है. यदि ग्रीस भुगतान नहीं करता है तो उसे डिफॉल्टर घोषित कर दिया जायेगा.

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