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अब सीएनजी ट्रेन भी रेवाड़ी से रोहतक के बीच हुई शुरुआत

भारतीय रेल ने पहली बार सीएनजी ट्रेन की शुरुआत की है. भविष्य में सीएनजी रेलवे का वैकल्पिक ईंधन हो सकता है. इस ट्रेन में किस तरह के किये गये हैं संरचनात्मक बदलाव, इस तकनीक के क्या हैं फायदे, क्या है डुअल फ्यूल इंजन संचालन का सिद्धांत आदि के बारे में बता रहा है नॉलेज.. सीएनजी […]

भारतीय रेल ने पहली बार सीएनजी ट्रेन की शुरुआत की है. भविष्य में सीएनजी रेलवे का वैकल्पिक ईंधन हो सकता है. इस ट्रेन में किस तरह के किये गये हैं संरचनात्मक बदलाव, इस तकनीक के क्या हैं फायदे, क्या है डुअल फ्यूल इंजन संचालन का सिद्धांत आदि के बारे में बता रहा है नॉलेज..
सीएनजी इंजन की तकनीक
भारतीय रेलवे के कुल खर्च का करीब 22 फीसदी ईंधन के मद में जाता है. इस खर्च को कम करने के मकसद से करीब एक दशक पूर्व सीएनजी से ट्रेनें चलाने के कॉन्सेप्ट पर काम शुरू किया गया. ‘इंडियन रेलवेज सर्विस ऑफ मैकेनिकल इंजीनियर्स’ की वेबसाइट पर डिप्टी सीएमइ जीके गुप्ता की एक रिपोर्ट में बताया गया है कि दुनियाभर में दस लाख से ज्यादा वाहन सीएनजी से चलाये जा रहे हैं.
यहां तक कि हमारे देश में भी पर्यावरण प्रदूषण को कम करने में इसने महती भूमिका निभायी है. भारतीय रेलवे में इस कॉन्सेप्ट को डीइएमयू ट्रेनों में लगाने की दिशा में 2004 में ही काम शुरू किया गया. इसके लिए आरडीएसओ (रिसर्च डिजाइन एंड स्टैंडर्ड आग्रेनाइजेशन, लखनऊ) और चीफ कंट्रोलर ऑफ एक्सप्लोसिव, नागपुर ने भी अपने ओर से सहमति दे दी.
सीएनजी कन्वजर्न किट के कॉम्पोनेंट
त्न डीएफएम- 100 डुअल फ्यूल कंट्रोलर : यह डीजल और गैस एक्चुएटर्स के माध्यम से डीजल/ गैस की सप्लाई को समानुपातिक रूप से नियंत्रित करता है.
त्न डीजल एक्चुएटर्स : डीजल ईंधन को समानुपातिक रूप से नियंत्रित करता है.
त्न गैस वाल्व एक्चुएटर्स : गैस ईंधन को समानुपातिक रूप से नियंत्रित करता है.
त्न इएसडी- 5300 स्पीड गवर्नर : इंजन की रफ्तार को नियंत्रित करता है. कई खासियतों से युक्त है, जो गतिशील अवस्था में इसे नियंत्रित करने में सक्षम है.
त्न स्पेशल एलसीसी स्पीड एंड लोड कंट्रोल यूनिट : यह इलेक्ट्रॉनिक लोड कंट्रोल डिवाइस है, जो डीएफएम कंट्रोलर व स्पीड गवर्नर को स्पीड व लोड कंट्रोल कार्यो के लिए सिगनल भेजता है.
त्न इलेक्ट्रॉनिक नॉक कंट्रोल- डीएफ 16 : नॉकिंग सेंसरों के माध्यम से इंजन के आघात या कंपन को डिटेक्ट करना और नुकसानदायक पहलुओं को काबू में रखने के लिए गैस की समानुपातिक सप्लाई को नियंत्रित रखना.
त्न एग्जहॉस्ट टेंपरेचर सेंसर : एग्जहॉस्ट गैस टेंपरेचर को महसूस करना और डीएफएम कंट्रोलर को सिगनल भेजना, जो गैस के अनुपात को नियंत्रित करता है.
त्न नॉकिंग सेंसर : नॉकिंग सेंसरों को इंजन के सभी सिलिंडरों में फिट किया जाता है. ये आघात की प्रवृत्ति (नॉकिंग टेंडेंसी) को महसूस करते हैं और इस संबंध में एंटी नॉक कंट्रोलर को सिगनल भेजते हैं.
त्न इंजन स्पीड सेंसर : ये इंजन की स्पीड को महसूस करते हैं और एलसीसी कंट्रोल यूनिट के माध्यम से इंजन स्पीड गवर्नर को सिगनल भेजते हैं.
त्न फ्लेम अरेस्टर : किसी प्रकार की गड़बड़ी की दशा में इंजन से गैस सिलिंडरों तक आग पहुंचने या इंजन में किसी स्थान पर आग लगने से यह बचाव करता है.
सीएनजी के कुछ अन्य कॉॅम्पोनेंट
त्न एयर गैस मिक्सर.
त्न गैस फिल्टर.
त्न वाल्व के साथ प्रेसर गेज.
त्न इलेक्ट्रिक गैस शट ऑफ वाल्व.
त्न मैनुअल शट ऑफ वाल्व.
इंजन/ ट्रेन कोच में किये गये संरचनात्मक बदलाव
डीइएमयू इंजन में डुअल फ्यूल के कॉन्सेप्ट को लागू करने के लिए उसमें कई संरचनात्मक बदलाव किये गये हैं, जिनमें से कुछ प्रमुख इस प्रकार हैं :-
ट्रैक्शन मोटर में हवा आनेवाले फिल्टरों का स्थान बदलते हुए उसे सतह से हटा कर दीवार के पास लगाना.
एलटीए रेडिएटर्स को फिट करना.
एलटीए पंप को फिट करना.
सीएनजी किट आदि को फिट करने के लिए पहले कोच में करीब 30 सीटों को कम करना.
सीएनजी के मुताबिक ऊपरी हिस्से की फिटिंग.
सीएनजी कासकेड की फिटिंग.
सीएनजी पाइपलाइन के लिए राह बनाना.
डीजल ईंधन से प्राकृतिक गैस की ओर चली रेल
दुनियाभर में रेल चलाने वाली कंपनियां और सरकारें ऊर्जा की लागत को कम करना चाहती हैं. जानकारों का कहना है कि प्राकृतिक गैस का इस्तेमाल करते हुए इस खर्चे को 50 फीसदी तक कम किया जा सकता है. इसलिए ऐसे लोकोमोटिव इंजनों का विकास किया जा रहा है, जो डीजल और प्राकृतिक गैस दोनों ही से चलने में सक्षम हो.
दरअसल, रेल कंपनियां चाहती हैं कि जिस तरह से दुनियाभर में प्राकृतिक गैस का उत्पादन व्यापक पैमाने पर बढ़ रहा है, उसका फायदा उन्हें भी मिले. इसलिए वे ऐसे इंजन का डिजाइन तैयार करने में जुट गये, जो एलपीजी (लिक्विफाइड पेट्रोलियम गैस), एलएनजी (लिक्विफाइड नेचुरल गैस), सीएनजी (कम्प्रेस्ड नेचुरल गैस) आदि से संचाचित हो.
अमेरिका की जनरल इलेक्ट्रिक के लोकोमोटिव डिवीजन के प्रवक्ता जेसिका टेलर के हवाले से ‘द क्रिश्चियन साइंस मॉनिटर’ की एक रिपोर्ट में बताया गया है कि रेलवे सेक्टर में प्राकृतिक गैस ठीक उसी तरह की एक क्रांति ला सकता है, जैसा पूर्व में स्टीम इंजन को स्थानांतरित करते हुए डीजल इंजन ने किया था.
दरअसल, जनरल इलेक्ट्रिक उन प्रमुख कंपनियों में शामिल है, जो इसके उपकरणों का परीक्षण कर रहा है. इस रिपोर्ट में बताया गया है कि में डीजल और प्राकृतिक गैस दोनों के इस्तेमाल से ट्रेनों के इंजन को चलाना ज्यादा फायदेमंद है, बनिस्पत केवल प्राकृतिक गैस के.
डीजल ईंधन इंजन को दहन के लिए जरूरी स्पार्क पैदा करने और हॉर्स पावर को बढ़ाने में मदद करता है. बाहर से दिखने में प्राकृतिक गैस का इंजन डीजल इंजन से अलग नहीं होता. प्राकृतिक गैस इंजन में एक अलग से टैंक होता है, जिसमें गैस भरी होती या फिर गैस भरे हुए अनेक छोटे-छोटे सिलेंडर होते हैं.
रेल इंजन बनाने वाली दुनिया की प्रमुख कंपनियों में शामिल जनरल इलेक्ट्रिक और कैटरपिलर्स इलेक्ट्रो-मोटिव डीजल ने विगत वर्षो इस इंजन के प्रोटोटाइप को विकसित किया और यूनियन पेसिफिक समेत कैनेडियन नेशनल रेलरोड ने इसका परीक्षण किया.
कंप्रेस्ड नेचुरल गैस (सीएनजी) से कम फैलता है प्रदूषण
सीएनजी (कंप्रेस्ड नेचुरल गैस) यानी संपीड़ित प्राकृतिक गैस का इस्तेमाल ईंधन के रूप में किया जाता है. इसमें उच्च दाब पर ज्यादा तादाद में मीथेन भरा होता है और वाहनों के इंजन में यह पेट्रोल, डीजल आदि की तरह ईंधन के तौर पर काम करता है. अन्य ईंधन के मुकाबले यह ज्यादा सुरक्षित होने के साथ प्रदूषण कम फैलाता है.
हालांकि, इसमें इथेन और प्रोपेन समेत नाइट्रोजन, हिलियम, कार्बन डाइऑक्साइड और सल्फर कंपाउंड समेत जलवाष्प भी मिलाया जाता है, लेकिन लीक होने पर उसका पता लगाने के लिए इसमें सल्फर आधारित एक खास तत्व मिलाया जाता है. वैसे सीएनजी हवा के मुकाबले हल्की होती है, इसलिए लीकेज की दशा में यह तुरंत ऊपर उड़ जाती है, जिससे खतरे का जोखिम कम हो जाता है.
आम तौर पर इसे वाहन में सिलिंडरों के भीतर स्टोर किया जाता है, जहां से पाइप लाइन के माध्यम से इसे इंजन तक पहुंचाया जाता है. राजधानी दिल्ली समेत देश के कई बड़े शहरों में सार्वजनिक वाहनों, ऑटोरिक्शा आदि में सीएनजी इंधन का इस्तेमाल तेजी से बढ़ रहा है. इसके लिए कई कंपनियों की गाड़ियां अब खास तौर पर सीएनजी इंजन के लांच हो रही हैं.
सीएनजी ट्रेन का प्रायोगिक चरण
डीजल चालित ट्रेनों के इंजन से पर्यावरण में प्रदूषण का स्तर बढ़ रहा है. भारतीय रेलवे ने अब इस समस्या से निबटने के लिए कुछ ट्रेनों को सीएनजी से चलाने की योजना बनायी है. हालांकि, अभी शुरुआत केवल एक ट्रेन से की गयी है, लेकिन धीरे-धीरे इनकी संख्या बढ़ायी जायेगी.
सीएनजी से पर्यावरण प्रदूषण का स्तर घटने के सबसे बड़े उदाहरण के रूप में दिल्ली शहर को ले सकते हैं. 1990 के दशक में दिल्ली शहर में प्रदूषण का स्तर बहुत बढ़ गया था. 2000 के आरंभिक काल से सीएनजी चालित बसों, ऑटो रिक्शा आदि की शुरुआत होने पर कुछ वर्षो के भीतर ही इसके सकारात्मक नतीजे सामने आये और पर्यावरण प्रदूषण काफी हद तक कम हुआ. इसलिए उम्मीद की जा रही है कि सीएनजी से चलनेवाले इंजन से ट्रेनें चलाने पर प्रदूषण का स्तर काफी कम हो जायेगा.
उत्तरी रेलवे इसके लिए तेजी से काम कर रहा है. उत्तरी रेलवे ने तीन साल पहले दिल्ली स्थित शकूरबस्ती डीजल शेड में एक परीक्षण किया था, जिसके तहत एक डीइएमयू पावर कार (डीपीसी) को ड्यूल फ्यूल मोड (डीपीसी) में कनवर्ट किया गया. यह डीपीसी डीजल और सीएनजी दोनों से चल सकता था. इसे ट्रायल बेस पर दिल्ली के आसपास के रेलमार्गो पर चलाया गया. यह परीक्षण कामयाब रहा और ट्रायल के दौरान किसी तरह की समस्या नहीं आयी.
डुअल फ्यूल इंजन के संचालन का मूल सिद्धांत
डुअल फ्यूल इंजन में सीएनजी गैस को एयर बैग ब्लेंडर द्वारा एयर के साथ मिलाया जाता है और उसे इंजन के दहन चैंबर में प्रवेश कराया जाता है. इस एयर-गैस मिक्सर को उच्च तापमान व उच्च दाब पर इंजन में कंप्रेस्ड किया जाता है. इसके बाद इसमें डीजल ईंधन डाला जाता है, जो स्वत: जलती है, नतीजन प्राकृतिक गैस का भी दहन होता है. इस प्रकार इंजन के दहन चैंबर में प्राकृतिक गैस और डीजल के मिश्रित दहन से पावर जेनरेट होता है.
सामान्य तौर पर प्राकृतिक गैस और डीजल को 50 : 50 के अनुपात में मिश्रित किया जाता है. हालांकि, लोड के मुताबिक इसमें फर्क भी आ सकता है. लोड कम होने पर डीजल ईंधन का इस्तेमाल ज्यादा होने लगता है और जब लोड ज्यादा हो तो गैस की खपत का अनुपात बढ़ जाता है.
डुअल फ्यूल कंट्रोल यूनिट (डीएफएम कंट्रोलर) प्राकृतिक गैस और डीजल की खपत के अनुपात को जरूरत के मुताबिक नियंत्रित करता है. इसी प्रकार एयर/ गैस ब्लेंडर में गैस की मात्र को भी यह रेगुलेट करता है.
इसके बाद एयर/गैस मिक्सर टबरे चाजर्र में प्रवाहित होते हुए इंटरकूलर के माध्यम से इंजन तक पहुंचता है. इंजन की जरूरी स्पीड को ‘गवर्नर कंट्रोल’ द्वारा नियंत्रित किया जाता है, जो वाया स्पीड सेंसर इंजन के रिंग गियर तक पहुंचता है और इंजन की स्पीड को मापता है.
जहां कहीं भी आघात की प्रवृत्ति देखी जाती है, तो नॉक सेंसर्स नॉक कंट्रोलर को सिगनल भेजता है, नतीजन डीएफएम कंट्रोलर को सिगनल भेजा जाता है और उसके बाद सीएनजी व डीजल की सप्लाई को नियमित किया जाता है. ठीक इसी तरह से टेंपरेचर सेंसर्स सीएनजी व डीजल के रेगुलेटिंग रेशियो द्वारा एक्जहॉस्ट गैस टेंपरेचर को नियंत्रित करता है.
सुरक्षा के दृष्टिकोण से खास
सीएनजी भले ही एक ज्वलनशील गैस हो, लेकिन इसकी ज्वलनशीलता का दायरा कम होने (नैरो फ्लेमेबिलिटी रेंज) की खासियत ने इसे वाकई में एक सुरक्षित ईंधन बना दिया है. सीएनजी तेजी से बिखरता है और दहन के जोखिम को कम करता है. साथ ही यह द्रव या वाष्प बन कर सतह पर नहीं फैलता. यहां तक कि किसी दुर्घटना से इसके छलकने पर भी यह ज्यादा घातक साबित नहीं होता. दरअसल, सीएनजी प्राथमिक तौर पर मीथेन है.
हालांकि, यह ग्रीनहाउस गैस है जो लीक होने की दशा में प्रदूषणकारी होता है और ‘ग्लोबल क्लाइमेट चेंज’ के खतरे को बढ़ाता है. सटीक सुरक्षा मानकों ने सीएनजी वाहनों को डीजल चालित वाहनों की भांति सुरक्षित बना दिया है. किसी प्रकार की दुर्घटना की अवस्था में आग से बचाव के लिए डुअल फ्यूल डीइएमयू इंजन में सुरक्षा के खास प्रावधान इस प्रकार किये गये हैं :
प्रेशर रिलीफ डिवाइस
फ्लेम अरेस्टर
फायर अलार्म सिस्टम
सैपरेट स्टोरेज
गैस लीक डिटेक्टर
एंटी-क्लाइंबिंग कॉपलर्स

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