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शेखी बघारने के अलावा अफसरों ने कुछ नहीं किया

झारखंड में उग्रवाद नियंत्रण ज्यादातर उपायुक्त और पुलिस निरीक्षक विकास योजनाओं के लागू नहीं होने का दोष राजनीतिज्ञों और लुटेरों को देते हैं. पर, उनको तब क्या हो गया था, जब केंद्र सरकार ने उग्रवाद प्रभावित जिलों के उपायुक्तों को एसीए के तहत प्रदान की गयी राशि को बिना टेंडर किये इस्तेमाल करने का अधिकार […]

झारखंड में उग्रवाद नियंत्रण
ज्यादातर उपायुक्त और पुलिस निरीक्षक विकास योजनाओं के लागू नहीं होने का दोष राजनीतिज्ञों और लुटेरों को देते हैं. पर, उनको तब क्या हो गया था, जब केंद्र सरकार ने उग्रवाद प्रभावित जिलों के उपायुक्तों को एसीए के तहत प्रदान की गयी राशि को बिना टेंडर किये इस्तेमाल करने का अधिकार दे दिया? एक भी उपायुक्त ऐसा नहीं है, जिसने राशि का उपयोग किया हो. क्या यह शासन के खिलाफ अपराध नहीं है? वह भी इस राज्य में, जहां हर साल नक्सली हिंसा में सुरक्षा बलों के जवानों के साथ आम लोग भी मारे जाते हैं.
मनोज प्रसाद, रांची
19 अक्तूबर 2006 को झारखंड में उग्रवादियों से निबटने के लिए शुरू की गयी दो योजनाओं एलडब्लूइ और एसीए के अब आठ साल पूरे हो गये हैं. इसके तहत केंद्र सरकार से आर्थिक मदद मिलती है. इन आठ वर्षो के दौरान शेखी बघारने के अलावा राज्य के अफसरों ने कुछ नहीं किया. आला अफसरों को सहायता निधि का इस्तेमाल गरीबों के हक के लिए करने में नाममात्र की सफलता मिल सकी. सहायता निधि में वृद्धि कराने में भी अफसर नाकाम रहे.
उग्रवाद प्रभावित इलाकों की लंबे समय से चली आ रही अनकही पीड़ा सभी की जानकारी में है. उग्रवाद प्रभावित इलाकों के गांवों में जाने का रास्ता नहीं है. वहां बिना बालू और सीमेंट की सड़कें हैं. रास्तों को जोड़ने के लिए पुल नहीं हैं. स्कूलों का भवन नहीं है. बिजली की समस्या है. पानी और शौचालय जैसी बुनियादी जरूरतें पूरी नहीं होतीं. उग्रवाद प्रभावित इलाकों की परेशानियों से निबटने के लिए 19 अक्तूबर 2006 को केंद्र सरकार ने गृह मंत्रालय के तहत अलग विभाग (एलडब्लूइ) का गठन किया.
12वीं पंचवर्षीय योजना में उग्रवाद प्रभावित इलाकों के लिए अतिरिक्त विशेष निधि का प्रबंधन किया गया. एलडब्लूइ का उद्देश्य माओवादी विद्रोह को प्रभावी तरीके से समाप्त करना था. इसके लिए उग्रवाद प्रभावित राज्यों छत्तीसगढ़, ओड़िशा, बिहार, पश्चिम बंगाल, आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश और झारखंड को एसीए के तहत निधि प्रदान की गयी. इंटिग्रेटेड एक्शन प्लान (आइएपी) के तहत इन राज्यों को चुने गये आदिवासी और पिछड़े बहुल इलाकों में इस निधि को खर्च करना है.
गृह मंत्रालय ने जिला कलेक्टर या जिला मजिस्ट्रेट की अध्यक्षता में एक समिति गठित की. समिति में योजनाओं के क्रियान्वयन के लिए जिम्मेवार जिला के पुलिस अधीक्षक और वन अधिकारी को भी रखा. केंद्र सरकार ने प्रक्रिया पारदर्शी बनाने और विकास कार्य में लोगों की हिस्सेदारी सुनिश्चित करने के लिए स्थानीय सांसद और पंचायती राज संस्थाओं के जनप्रतिनिधियों को भी परामर्श देने के लिए समिति में जगह दी. जिला स्तरीय समिति को क्षेत्र की जरूरत के मुताबिक लचीलापन बरकरार रखते हुए अलग-अलग योजना के तहत राशि खर्च करने का जिम्मा दिया गया. समिति बनाने का असल उद्देश्य केंद्र और राज्य प्रायोजित योजनाओं के तहत प्राप्त निधि का आवश्यकतानुसार ज्यादा से ज्यादा इस्तेमाल करना था. जिससे उग्रवाद प्रभावित इलाकों में सामाजिक और आर्थिक मापदंडों को तेज कर दौड़ में शामिल किया जा सके.
नियमों के मुताबिक, समिति को सार्वजनिक सेवाओं का बुनियादी ढांचा तैयार करने की ठोस योजना तैयार करनी थी. समिति को स्कूल भवन, आंगनबाड़ी केंद्र, प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र, पेयजलापूर्ति, ग्रामीण सड़कें, सार्वजनिक जगहों पर बिजली, कौशल निर्माण और इसी तरह की अन्य सार्वजनिक सेवाओं का निर्माण करने और बेहतर बनाने पर सहायता राशि का खर्च किया जाना सुनिश्चित करना था. उग्रवाद प्रभावित और पांचवीं अनुसूचित क्षेत्रों में विकास सुनिश्चित करने के लिए जिलों को मिलनेवाले आवंटन का कम से कम 65 फीसदी इन क्षेत्रों में शुरू की गयी परियोजनाओं पर खर्च किया जाना था. निधि इस्तेमाल करने के बाद केंद्र सरकार को उसका विवरण भेज कर आगामी वर्ष के लिए राशि की निकासी करनी थी.
योजना के तहत अनुदान हासिल करनेवाले देश के अन्य जिलों के अधिकारियों का प्रदर्शन अब तक नकारात्मक नहीं रहा है. वहीं, झारखंड का हाल बुरा है. 17 उग्रवाद प्रभावित जिलोंवाले राज्य झारखंड को, हर जिले के लिए 30 करोड़ रुपये अनुदान के रूप में दिये गये थे. 2011-12 में एसीए के अंतर्गत मिले इस अनुदान की 50 फीसदी राशि का भी उपयोग नहीं किया गया. नतीजतन, केंद्रीय गृह मंत्रालय ने वित्तीय वर्ष 2013-14 में जिलों को मिलनेवाले अनुदान की राशि घटा कर 10 करोड़ प्रति जिला कर दी.
अनुदान की राशि खर्च करने में अक्षम रहे उपायुक्तों के खराब प्रदर्शन को तत्कालीन विकास आयुक्त सुधीर प्रसाद (अब एटीआइ के प्रशासक) ने गंभीरता से लिया था. उन्होंने उपायुक्तों के साथ बैठक की. वीडियो कांफ्रेंसिंग कर उनको निर्देशित किया. साथ ही पंचायती राज विभाग के तत्कालीन सचिव एल ख्यांगते को हस्तक्षेप करने को कहा.
एल ख्यांगते ने सभी उपायुक्तों को पत्र लिख कर उनके जिले में योजना की बदहाली के बारे में सूचित किया. दिये गये निर्देशों का पालन नहीं किये जाने पर उनके विरुद्ध अनुशासनात्मक कार्रवाई करने की बात कही. एक अगस्त 2014 को लिखे गये पत्र में ख्यांगते ने कहा था : इस वित्तीय वर्ष में यदि आपके जिले को राशि प्राप्त नहीं होती है, तो उसके लिए आपको सीधे-सीधे जिम्मेदार माना जायेगा. विकास आयुक्त और पंचायती राज सचिव द्वारा की गयी कार्यवाही का शानदार परिणाम आया. वित्तीय वर्ष 2014-15 में केंद्रीय गृह मंत्रालय ने योजनाओं की निधि में वृद्धि स्वीकार करते हुए प्रति जिला 20 करोड़ रुपये जारी किया है.
झारखंड में अक्षम और भ्रष्ट अफसरों की अच्छी मांग है. उन अफसरों को संरक्षण देने के लिए एक के बाद दूसरी सरकार आ जाती है. हालांकि झारखंड में योग्य और ईमानदार अफसरों की भी कोई कमी नहीं है, लेकिन उनकी क्षमता को प्रशासन की गुणवत्ता में सुधार लाने के लिए इस्तेमाल नहीं किया गया. उनको विकास में तेजी लाने और जनता के साथ दोस्ताना संबंध रखनेवाली सरकार के निर्माण में शामिल नहीं किया गया.
23 दिसंबर को झारखंड विधानसभा चुनाव के लिए किये गये वोटों की गिनती होनी है. उसके बाद नयी सरकार का गठन होगा. नयी सरकार को ईमानदार और भ्रष्ट अफसरों के बीच अंतर करना होगा. झारखंड के लोगों का सपना साकार करने के लिए योग्य और ईमानदार अफसरों को एक टीम बना कर काम करना होगा. इससे बेरोजगार युवकों के एक बड़े तबके की भी काफी मदद होगी.
(लेखक झारखंड स्टेट न्यूज डॉट कॉम के संपादक हैं)
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