बिहार के छात्रों से अपेक्षा होती है कि वे यहां के इतिहास से अच्छी तरह से परिचित हो. इसलिए बीपीएससी पीटी में स्थानीय इतिहास से संबंधित प्रश्न बड़ी संख्या में पूछे जाते हैं. राजनीति एवं प्रशासन के क्षेत्र में भारत को बिहार का अप्रतिम योगदान रहा है. एक समय बिहार का इतिहास भारत का इतिहास माना गया. प्राचीन काल में मौर्य वंश के शासकों ने विशेषकर सम्राट अशोक ने प्रशासन के नये कीर्तिमानों को स्थापित किया. मौर्य काल में ही कला, शिक्षा एवं अन्य सांस्कृतिक क्षेत्रों में उपलब्धियां हासिल की गयी.
बिहार शुरू से ही ब्राह्मण धर्म, बौद्ध धर्म और जैन धर्म की गतिविधियों का प्रसिद्ध केंद्र रहा. मध्य काल में यहां इस्लाम धर्म का आगमन हुआ और सूफी संतों ने बड़े पैमाने पर अपने केंद्र स्थापित किये. सिख धर्म के दसवें गुरु गुरु गोविंदसिंह का जन्म भी बिहार में हुअा. इसतरह बिहार में सर्वधर्मसमभाव पर आधारित समन्वयमूलक संस्कृति का बीजारोपण हुआ जो आज भी हमारी संस्कृति का मूल आधार है. मध्यकाल में शेरशाह जैसे शासक ने प्रशासन के क्षेत्र में बिहार का नाम रोशन किया. आधुनिक बिहार का इतिहास अत्यंत महत्वपूर्ण है. ब्रिटिश साम्राज्यवाद के खिलाफ शुरू हुए आंदोलन में यहां के लोगों की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण रही. बिहार के आदिवासियों विशेषकर सिद्धों, कान्होंं एवं बिरसा मुंडा जैसे योद्धाओं ने ब्रिटिश विरोधी चेतना को पैदा करने में महत्वपूर्ण योगदान दिया.
देश के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम यानी 1857 के विद्रोह में बाबू कुंवर सिंह एवं उनके भाई अमर सिंह ने ब्रिटिश राज के खिलाफ जबर्दस्त संघर्ष किया. कालांतर में बिहार की धरती पर गांधी का अवतरण हुआ आैर उनके नेतृत्व में चलाये गये जनांदोलन में यहां के लोगों ने बढ़ चढ़ कर भाग लिया. बिहार के युवाओं ने क्रांतिकारी आंदोलन, साम्यवादी आंदोलन एवं समाजवादी आंदोलन में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभायी. इसप्रकार बिहार का इतिहास शुरू से लेकर आज तक काफी गौरवशाली रहा है. बिहार के इतिहास के अध्ययन के लिए केपी जयसवाल शोध संस्थान द्वारा छह खंडों में प्रकाशित कंप्रीहेंसिव हिस्ट्री ऑफ बिहार और तीन खंडों में प्रकाशित केके दत्त की पुस्तक बिहार में स्वतंत्रता आंदोलन का इतिहास उपयोगी है. लेकिन अधिक मोटी होने के कारण इनका समग्र अध्ययन अभ्यर्थियों के लिए मुश्किल है. लिहाजा मेरी पुस्तक बिहार इतिहास एवं संस्कृति और इम्तियाज अहमद की पुस्तक बिहार एक परिचय पढ़ना अधिक बेहतर होगा, जाे तुलनात्मक रूप में काफी पतली है और जिनमें पर्याप्त तथ्य भी हैं.
प्रो प्रमोदानंद दास, पूर्व एसोसिएट प्रो, इतिहास विभाग, पटना विवि

