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रिकॉर्ड बनाने वाली ऐसी फ़िल्म जिसमें था सिर्फ़ एक एक्टर

भारत में एक ऐसी फ़िल्म बन चुकी है जिसने रिकॉर्ड बनाया क्योंकि उस फ़िल्म में एक ही एक्टर था. वो एक्टर थे सुनील दत्त, जो फ़िल्म ‘यादें’ के निर्माता निर्देशक भी थे. इस फ़िल्म ने ‘गिनीज़ बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स’ में जगह भी बनाई. ये फ़िल्म 1964 में रिलीज़ हुई और ये एक ब्लैक एंड […]

भारत में एक ऐसी फ़िल्म बन चुकी है जिसने रिकॉर्ड बनाया क्योंकि उस फ़िल्म में एक ही एक्टर था. वो एक्टर थे सुनील दत्त, जो फ़िल्म ‘यादें’ के निर्माता निर्देशक भी थे.

इस फ़िल्म ने ‘गिनीज़ बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स’ में जगह भी बनाई.

ये फ़िल्म 1964 में रिलीज़ हुई और ये एक ब्लैक एंड व्हाइट फ़िल्म थी. फ़िल्म की शुरुआत में ही लिखा आता है- वर्ल्ड फ़र्स्ट वन एक्टर मूवी.

इस फ़िल्म में सुनील दत्त का किरदार घर आता है और देखता है कि उसकी पत्नी और बच्चे घर पर नहीं. उसको लगता है वो उसको छोड़ कर चले गए. आगे जब वो अकेला होता है, खुद से बातें करता है, वक़्त में पीछे जाता है, आसपास की चीज़ों से बात करता है और कहानी आगे बढ़ती है.

फ़िल्म में नरगिस की आवाज़ सुनाई देती है.

क्यूरेटर, फ़िल्म इतिहासकार और लेखक अमृत गंगर कहते हैं, "इस फ़िल्म में जो भी दिखाया गया वो अकेलेपन का अहसास दिखाने की कोशिश है. क्या होता है उस किरदार के साथ जब वो घर आता है और उससे लगता है कि पत्नी और बच्चे उसको छोड़ कर चले गए. वो अपने आसपास पड़े सामान से बातें करता है और वो कहीं ना कहीं अहसास में जीवित हो उठते हैं ."

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पूरी फ़िल्म को अपने कंधे पर रख कर दर्शक को अपने साथ रखना एक चुनौती है.

अमृत गंगर कहते हैं, "इस फ़िल्म में जो हुआ अगर उसे तक़नीक के लिहाज़ से देखें तो ये इससे पहले नाटक और रंगमंच में होता रहा है. बल्कि थियेटर में ये और मुश्किल होता है क्योंकि ऑडियंस वहाँ मौजूद होती है और अकेले आपको सब संभालना है और कोई रीटेक नहीं."

इस फ़िल्म को ‘ए’ सर्टिफ़िकेट मिला

इस फ़िल्म को एक बात और ख़ास बनाती है. ये फ़िल्म जहाँ सच में आपका ध्यान खींचेगी वो है कि औरतों की समाज में, अपने परिवार में जगह क्या है.

आवाज़ और डायलॉग के ज़रिए पति-पत्नी मे बहस होती है, एक दूसरे के चरित्र पर लांछन लगते हैं और आदमी का किरदार अपना रोब दिखाता है. फ़िल्म की शुरुआत में ही लिखा आता है- जिस घर में नारी का सम्मान होता है उस घर में देवता निवास करते हैं.

इस फ़िल्म में नरगिस की परछाईं

फ़िल्म में जब पति-पत्नी की बहस दिखाई जाती है, तो पत्नी नज़र नहीं आती, सिर्फ़ उसकी आवाज़ सुनाई देती है, वो आवाज़ होती है नरगिस की.

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नरगिस फ़िल्म के एंड में भी छाया या परछाईं के रूप में नज़र आती है. नरगिस घर आती है और देखतीं है उनके पति ने फाँसी लगा ली. क्या सुनील बच जाते हैं, क्या सब ठीक हो जाता है , देखिए भावनाओं की कहानी जिसे अलग ढंग से पेश किया गया था. इस फ़िल्म में दो गाने भी हैं.

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