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झारखंड का वो रेलवे स्टेशन जिसका कोई नाम नहीं

<p>रांची से टोरी जाने वाली पैसेंजर ट्रेन लोहरदगा के बाद ऐसे ही एक ‘अनाम’ रेलवे स्टेशन पर रुकती है जहां नाम को लेकर झगड़ा चल रहा है. </p><p>यहां सिर्फ़ एक मिनट के इस ठहराव के दौरान दर्जनों लोग उतरते हैं. वे कमले, बड़कीचांपी, छोटकीचांपी, सुकुमार आदि गांवों के रहने वाले हैं. </p><p>इन लोगों ने लोहरदगा […]

<p>रांची से टोरी जाने वाली पैसेंजर ट्रेन लोहरदगा के बाद ऐसे ही एक ‘अनाम’ रेलवे स्टेशन पर रुकती है जहां नाम को लेकर झगड़ा चल रहा है. </p><p>यहां सिर्फ़ एक मिनट के इस ठहराव के दौरान दर्जनों लोग उतरते हैं. वे कमले, बड़कीचांपी, छोटकीचांपी, सुकुमार आदि गांवों के रहने वाले हैं. </p><p>इन लोगों ने लोहरदगा और रांची में ट्रेन पर सवार होते वक्त बड़कीचांपी का टिकट लिया था. मतलब, इस ‘अनाम’ स्टेशन का नाम बड़कीचांपी है. </p><p>फिर भी दूसरी जगहों की तरह इस प्लेटफ़ॉर्म पर, यात्री शेड या किसी भी सार्वजनिक जगह पर स्टेशन का नाम नहीं लिखा गया है.</p><h1>ऐसा क्यों है</h1><p>मेरे साथ इस स्टेशन पर उतरीं कमले गांव की सुमन उरांव ने बताया कि इसके पीछे दो गांवों का विवाद है. </p><p>इस कारण साल 2011 में इसकी शुरुआत के बावजूद अभी तक स्टेशन का नाम नहीं लिखा जा सका. </p><p>सुमन उरांव कहती हैं, &quot;ये स्टेशन मेरे गांव कमले की ज़मीन पर बना हुआ है. इस कारण गांव के लोगों की मांग है कि इसका नाम ‘कमले’ होना चाहिए. हमने इसके निर्माण के लिए जमीन दी है. हमारे लोगों ने मज़दूरी भी की है. तो फिर रेलवे ने किस आधार पर इसका नाम ‘बड़कीचांपी’ तय कर दिया. इस कारण हम लोगों ने प्लेटफ़ॉर्म पर रेलवे स्टेशन का नाम नहीं लिखने दिया. &quot;</p><p><a href="https://www.bbc.com/hindi/international-44155404">वक़्त से 25 सेकेंड पहले खुली ट्रेन और रेलवे ने मांगी माफी</a></p><p><a href="https://www.bbc.com/hindi/india-43136363">‘राम मंदिर जैसा होगा अयोध्या रेलवे स्टेशन’</a></p><p><a href="https://www.bbc.com/hindi/international-44575667">ये है प्यार से भरी हरी-हरी सुरंग</a></p><h1>कब से है विवाद</h1><p>स्थानीय पत्रकार प्रसेनजीत बताते हैं, &quot;ये विवाद सात साल पुराना है.&quot; </p><p>&quot;लोहरदगा रेलवे स्टेशन से टोरी की तरफ 14 किलोमीटर के बाद बने इस स्टेशन पर साल 2011 में 12 नवंबर को पहली बार ट्रेन का परिचालन हुआ था.&quot; </p><p>&quot;तब यहां स्टेशन का नाम लिखने की कोशिश की गई थी. लेकिन, ग्रामीणों के विरोध के कारण ये संभव नहीं हो सका. इसके बाद रेलवे ने कई बार यह कोशिश की लेकिन ग्रामीण जुट गए और नाम नहीं लिखने दिया.&quot;</p><p>&quot;पिछले साल भी रेलवे के अधिकारियों ने यहां स्टेशन का नाम लिखने की कोशिश की. तब पेंटर ने बड़की लिख भी दिया था. अभी चांपी लिखा जाना बाकी था कि यह खबर कमले गांव में फैली और सैकड़ों ग्रामीण वहां जमा हो गए. फिर लिखे हुए शब्द पर कालिख पोत दी और उसे मिटा दिया गया. इसके बाद से रेलवे ने विवाद के कारण फिर कभी इसका प्रयास नहीं किया.&quot;</p> <ul> <li><a href="https://www.bbc.com/hindi/india-44574335">पांच लड़कियों से कथित गैंगरेप में तीन गिरफ़्तार</a></li> <li><a href="https://www.bbc.com/hindi/india-44515538">झारखंड बंद: क्यों हो रहा है भूमि अधिग्रहण क़ानून का विरोध </a></li> <li><a href="https://www.bbc.com/hindi/india-44428831">झारखंड में हर दिन क्यों दम तोड़ रहे हैं दर्जनों बच्चे</a></li> </ul><h1>बना प्रतिष्ठा का सवाल</h1><p>बड़कीचांपी के स्टेशन अधीक्षक प्रीतम कोय ने बताया कि कमले और बड़कीचांपी गांवों के लोगों ने इसे अपनी प्रतिष्ठा का सवाल बना लिया है. </p><p>&quot;इस कारण हमें नाम लिखवाने में परेशानी हो रही है. दरअसल, स्टेशनों के नामकरण के वक्त स्थानीय लोगों से रायशुमारी की परंपरा है.&quot; </p><p>&quot;तब किसी ने इसपर आपत्ति जाहिर नहीं की होगी. तभी इसका नाम बड़कीचांपी प्रस्तावित किया गया होगा.&quot; </p><p>&quot;अब हमारे रिकॉर्ड में बड़कीचांपी नाम होने के बावजूद हमलोग इसका डिस्प्ले नहीं कर पा रहे लेकिन टिकटों की बिक्री और दूसरे विभागीय दस्तावेज़ों में रेलवे इसका उल्लेख बड़कीचांपी ही करता है.&quot;</p> <ul> <li><a href="https://www.bbc.com/hindi/india-44322173">आदिवासियों की ज़िदगी महकाने वाली अगरबत्ती </a></li> <li><a href="https://www.bbc.com/hindi/india-44654170">दुर्दांत ‘बूढ़ा पहाड़’ जो है नक्सलियों का ठिकाना</a></li> </ul><h1>सार्थक पहल की ज़रूरत</h1><p>बड़कीचांपी दरअसल लोहरदगा जिले के कुडू प्रखंड की एक पंचायत है. </p><p>कमले गांव भी इसी पंचायत में है लेकिन रेलवे स्टेशन से बड़कीचांपी गांव की दूरी करीब 2 किलोमीटर है. </p><p>दर्जनभर गांवों के लोग इसी स्टेशन से ट्रेन पर सवार होते हैं. </p><p>बड़कीचांपी की मुखिया मुनिया देवी कहती हैं, &quot;इस विवाद के समाधान के लिए सार्थक पहल की जरुरत है. रेलवे को यह पहल करनी होगी. क्योंकि, नाम का लिखा जाना या नहीं लिखा जाना तो बहुच छोटी समस्या है पर लोगों में टकराव बड़ सकता है.&quot; </p><p><strong>(बीबीसी हिन्दी के एंड्रॉएड ऐप के लिए आप </strong><a href="https://play.google.com/store/apps/details?id=uk.co.bbc.hindi">यहां क्लिक</a><strong> कर सकते हैं. आप हमें </strong><a href="https://www.facebook.com/bbchindi">फ़ेसबुक</a><strong>, </strong><a href="https://twitter.com/BBCHindi">ट्विटर</a><strong>, </strong><a href="https://www.instagram.com/bbchindi/">इंस्टाग्राम </a><strong>और </strong><a href="https://www.youtube.com/user/bbchindi">यूट्यूब</a><strong>पर फ़ॉलो भी कर सकते हैं.)</strong></p>

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