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झारखंड के स्वतंत्रता सेनानियों के इस गांव में नहीं चाहता कोई अपनी बेटी ब्याहना, जानें कारण

हजारीबाग जिला अंतर्गत बड़कागांव प्रखंड क्षेत्र में स्वतंत्रता सेनानियों का एक ऐसा गांव है, जहां आज भी विकास की किरणें नहीं पहुंची है. अब तो आलम ये है कि इस गांव में कोई अपनी बेटी ब्याहाना नहीं चाहता है.

बड़कागांव (हजारीबाग), संजय सागर : हजारीबाग जिला अंतर्गत आंगो पंचायत में एक गांव है सिमरा जरा. इस गांव में आज भी कई युवा कुंवारें हैं. कारण है कि इस गांव में कोई अपनी बेटी ब्याहना नहीं चाहता. बताया जाता है कि इस गांव में मूलभूत सुविधाओं की घोर कमी है. इस गांव से बड़कु मांझी, चैता मांझी और खैरा मांझी सरीखे कई स्वतंत्रता सेनानी आजादी की लड़ाई में महत्वपूर्ण योगदान दिये. इसके बावजूद ये गांव आज भी बुनियादी सुविधाओं से उपेक्षित है. यहां के ग्रामाीण आज भी सुविधाएं उपलब्ध कराने की मांग कर रहे हैं.

200 मीटर ऊंची पहाड़ पर बसे इस गांव में नहीं है मूलभूत सुविधाएं

हजारीबाग जिले से 55 किलोमीटर की दूरी पर स्थित सिमरा जरा गांव 200 मीटर ऊंची पहाड़ पर बसा है. इस गांव में सड़क नहीं रहने के कारण विधायक, सांसद या अधिकारी नहीं जाना चाहते हैं. ग्रामीणों का कहना है कि विभिन्न पार्टियों के नेता वोट मांगने जरूर आते हैं, लेकिन वोट के बाद सिमरा जरा गांव आना भूल जाते हैं. यहां सड़क, बिजली, पानी, स्वास्थ्य, रोजगार, आंगनबाड़ी केंद्र, जन वितरण प्रणाली दुकान आदि मौलिक सुविधाओं का अभाव है.

सड़क नहीं रहने से इस गांव में नहीं आता रिश्ता

सिमरा जरा गांव के बिरसा मांझी ने बताया कि मेरे शादी के लिए मेहमान आये थे. शादी के लिए छेका भी हो गया था, लेकिन सड़क नहीं रहने के कारण रिश्ता टूट गया. कहा कि ऐसी स्थिति सिर्फ मेरे साथ ही नहीं, बल्कि कई अन्य युवाओं के साथ भी हुई है.

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उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए विद्यार्थियों को 21 किलोमीटर का करना पड़ता है सफर

सिमरा जरा गांव जाने के लिए सड़क नहीं है. लोग पगडंडियों के सहारे बाजार, जिला मुख्यालय, प्रखंड मुख्यालय, पंचायत एवं स्कूल-कॉलेज आना-जाना करते हैं. पहाड़ी क्षेत्र के सिमरा जरा में लोग वर्ष 1920 से रह रहे हैं. इस गांव में 30 घर है. सभी मांझी जाति के हैं. मैट्रिक पास 20, इंटर पास 16 हैं. चार विद्यार्थी स्नातक सेमेस्टर थर्ड में पढ़ाई कर रहे हैं. यहां सरकारी सुविधा के नाम पर 2007 में उत्क्रमित प्राथमिक विद्यालय भवन बनाया गया. दो पारा शिक्षक हैं जबकि 17 बच्चे हैं. यहां पांचवी क्लास तक पढ़ने के बाद बच्चे पहाड़ी क्षेत्रों से गुजरते हुए आठ किलोमीटर दूर पैदल चलकर बरतुआ स्कूल में पढ़ने जाते हैं. जबकि हाई स्कूल और कॉलेज की पढ़ाई करने के लिए बच्चों को 21 किलोमीटर दूर बड़कागांव आना पड़ता है.

इलाज के अभाव में कई लोगों की हो चुकी है मौत

सिमरा जरा गांव में स्वास्थ्य की कोई सुविधा नहीं है. यहां के लोगों को उप स्वास्थ्य केंद्र जाने के लिए आठ किलोमीटर दूर जाना पड़ता है. आंगो का उप स्वास्थ्य केंद्र भी एक नर्स के सहारे चलता है. यहां कोई डॉक्टर नहीं बैठते हैं. ऐसी परिस्थिति में 21 किलोमीटर दूर बड़कागांव अस्पताल आना पड़ता है. सड़क नहीं रहने के कारण बीमार व्यक्तियों को खटिया में टांग कर अस्पताल ले जाना पड़ता है, लेकिन जाते-जाते रास्ते में कई लोगों की मौत हो जाती है.

रास्ते में दर्जनों की हो गई मौत

गांव के मालिक साहिब, राम मांझी एवं जीतन मांझी ने बताया कि अब तक दर्जनों ग्रामीणों की मौत अस्पताल ले जाने के कारण रास्ते में ही हो चुकी है. इसमें जुलाई 2018 में बिरसा मांझी की पत्नी सधनी देवी, 17 नवंबर 2022 में दशमी देवी (28 वर्ष), 2016 में कपूर कुमार (सात वर्ष ) के अलावा राजू हेंब्रम (तीन वर्ष) की मौत हो चुकी है. इसके अलावा पांच साल पहले बेनी राम मांझी, मुंशी मांझी, सात साल पहले गुल्ली देवी और संझली देवी, छह साल पहले बोधा राम मांझी, लेटे मांझी, बिगा रामा मांझी, शर्मा मानसी की पत्नी आशा हेंब्रम की मौत हो गई.

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पानी के लिए हाहाकार

सिमरा जरा गांव में पानी के लिए हमेशा हाहाकार मची रहती है. यहां एक भी चापाकल नहीं है. यहां सरकारी कुआं दो है. एक कुआं पूरी तरह सूख जाती है, तो दूसरे कुएं में गर्मी के दिनों में पानी कम रहता है. जो पानी रहता है वो भी गंदा रहता है. यहां एक भी तालाब नहीं है.

राशन दुकान एवं आंगनबाड़ी के लिए आठ किलोमीटर का करना पड़ता है सफर

सिमरा जरा में बच्चों की पढ़ाई के लिए आंगनबाड़ी केंद्र नहीं है और ना ही जन वितरण प्रणाली की दुकान है. राशन के लिए लाल कार्डधारियों को आठ किलोमीटर दूर जाना पड़ता है. ग्रामीणों ने बताया कि डीलर द्वारा दो किलो चावल काट लिया जाता है. वहीं, बच्चे एवं गर्भवती माताओं को पैदल आठ किलोमीटर दूर आंगो जाना पड़ता है.

ढिबरी युग में जीने की विवश्ता

पूरे भारत में राजीव गांधी विद्युतीकरण योजना के तहत गांव में बिजली पहुंचाई जा रही है. वहीं, अब तक बिजली नहीं पहुंची है. लोगों को ढिबरी युग में जीना पड़ रहा है. चार साल पहले लोगों को जरेडा द्वारा सौर ऊर्जा का सोलर लैंप मिला था, वह भी छह महीने में ही खराब हो गया.

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पुराने मिट्टी के घर में रहने को मजबूर

यहां के लोग जर्जर मिट्टी के घर में रहने के लिए मजबूर हैं. वर्ष 1997 में सात लोगों को इंदिरा आवास मिला था, जो अत्यंत जर्जर हो गया. यहां के लोगों को पेंशन नहीं मिलता है. 10 लोगों का राशन कार्ड नहीं बना है. वर्ष 1997 में लेबर कार्ड बना था, लेकिन उससे काम नहीं मिलता है. स्वच्छता विभाग की ओर से देश के हर गांव में शौचालय बनाया जा रहा है, लेकिन सिमरा जरा गांव में किसी के घर में शौचालय नहीं बना है. आज भी लोग खुले में शौच जाने को मजबूर हैं.

कृषि के लिए नहीं है कोई साधन

इस गांव में मात्र दो एकड़ जमीन में धान एवं मकई की खेती होती है जिससे जीविका चलाना मुश्किल हो जाता है. यही कारण कि हमलोगों को भूखमरी की स्थिति आ जाती है. यहां एक भी सरकारी नौकरी करने वाला नहीं है. सभी मजदूरी करते हैं. रोजगार नहीं रहने से यहां के मजदूर दूसरे राज्यों में पलायन करने को मजबूर होते हैं. यहां से अब तक 15 ग्रामीण पलायन कर चुके हैं.

ग्रामीणों की मांग

सिमरा जरा गांव में मूलभूत सुविधाओं को बहाल करने के लिए ग्रामीणों ने कई बार मांग की, लेकिन किसी ने इस ओर ध्यान नहीं दिया. अब एक बार फिर ग्रामीण सड़क, बिजली, कुएं, चापाकल, आंगनबाड़ी केंद्र, जन वितरण प्रणाली की दुकान, उप स्वास्थ केंद्र, तालाब, जीविकोपार्जन के लिए पशुधन योजना के तहत बकरी पालन के अलावा सूकर, गाय, मुर्गी, भेड़ पालन आदि की मांग की है.

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