36.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Trending Tags:

Advertisement

Bhishma Dwadashi 2023: इस दिन है भीष्म द्वादशी, जाने इसकी पूजा विधि और इसका धार्मिक महत्व

Bhishma Dwadashi 2023: इस साल 2 फरवरी, दिन बुधवार को भीष्म द्वादशी का पर्व मनाया जा रहा है. प्रचलित किंवदंतियों हैं कि इस दिन भगवान विष्ण का पूजन किया जाता है.साथ ही साथ पावन नदियों में स्नान आदि कर दान करने की भी परंपरा है.

Bhishma Dwadashi 2023: प्रत्येक वर्ष माघ मास के शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि को भीष्म द्वादशी का व्रत पड़ता है, कुछ मान्यताओं के अनुसार इस दिन को गोविंद द्वादशी के नाम से भी जाना जाता है. इस साल 2 फरवरी, दिन बुधवार को ये पर्व मनाया जा रहा है. प्रचलित किंवदंतियों हैं कि इस दिन भगवान विष्ण का पूजन किया जाता है.साथ ही साथ पावन नदियों में स्नान आदि कर दान करने की भी परंपरा है.

भीष्म द्वादशी पूजा मुहूर्त

इस वर्ष भीष्म द्वादशी 02 फरवरी 2023 को गुरुवार के दिन मनाई जाएगी.

द्वादशी तिथि आरंभ 01 फरवरी 2023, 14:04 से.

द्वादशी समाप्त 02 फरवरी 2023, 16:27.

भीष्म द्वादशी कथा

महाभारत के युद्ध में भीष्म पितामह कौरवों की तरफ से युद्ध लड़ रहे होते हैं. पांडवों के लिए भीष्म को हरा पाना असंभव था. इसका मुख्य कन था की उन्हें इच्छा मृ्त्यु का वरदान प्राप्त था. वह केवल अपनी इच्छा से ही प्राण त्याग सकते थे. युद्ध में भीष्म पितामह के कौशल से कौरव हार ही नहीं सकते थे. उस युद्ध में पितामह को पराजित करने के लिए एक योजना बनाई गई. इस योजना का मुख्य केन्द्र शिखंडी था. पितामह ने प्रण लिया था की वह कभी किसी स्त्री के समक्ष शस्त्र नहीं उठाएंगे. इसलिए उनकी इस प्रतिज्ञा का भेद जब पांडवों को पता चलता है. तब एक चाल चली जाती है. युद्ध समय पर शिखंडी को युद्ध में उनके समक्ष खड़ा कर दिया जाता है. अपनी प्रतिज्ञा अनुसार पितामह शिखंडी पर शस्त्र नहीं उठाते हैं. शस्त्र न उठाने के कारण भीष्म पितामह युद्ध क्षेत्र में अपने शस्त्र नहीं उठाते हैं. इस अवसर का लाभ उठा कर अर्जुन उन पर तीरों की बौछार शुरू कर देते हैं. पितामह बाणों की शैय्या पर लेट जाते हैं.

परंतु उस समय भीष्म पितामह अपने प्राणों का त्याग नहीं करते हैं. सूर्य दक्षिणायन होने के कारण भीष्म पितामह ने अपने प्राण नहीं त्यागे. सूर्य के उत्तरायण होने पर ही वे अपने शरीर का त्याग करते हैं. भीष्म पितामह ने अष्टमी को अपने प्राण त्याग दिए थे. पर उनके पूजन के लिए माघ मास की द्वादशी तिथि निश्चित की गई. इस कारण से माघ मास के शुक्ल पक्ष द्वादशी तिथि को भीष्म द्वादशी कहा जाता है.

पूजा विधि

  • भीष्म द्वादशी की सुबह स्नान आदि करने के बाद व्रत का संकल्प लें.

  • भगवान की पूजा में केले के पत्ते व फल, पंचामृत, सुपारी, पान, तिल, मौली, रोली, कुमकुम, दूर्वा का उपयोग करें.

  • पूजा के लिए दूध, शहद केला, गंगाजल, तुलसी पत्ता, मेवा मिलाकर पंचामृत तैयार कर प्रसाद बनाएं व इसका भोग भगवान को लगाएं.

  • इसके बाद भीष्म द्वादशी की कथा सुनें.

  • देवी लक्ष्मी समेत अन्य देवों की स्तुति करें तथा पूजा समाप्त होने पर चरणामृत एवं प्रसाद का वितरण करें.

  • ब्राह्मणों को भोजन कराएं व दक्षिणा दें.

  • ब्राह्मणों को भोजन कराने के बाद ही स्वयं भोजन करें और सम्पूर्ण घरपरिवार सहित अपने कल्याण धर्म,अर्थ,मोक्ष की कामना करें.

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें