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अक्षय तृतीया पर बन रहें 4 स्वयंसिद्ध अभिजित मुहूर्त, जानें इस दिन का आध्यात्मिक महत्व, विधि और नियम जानें

Akshaya Tritiya: अक्षय का अर्थ है, कभी न क्षय होने वाला. संपूर्ण कामनाओं को प्रदान करने वाला यह व्रत वैशाख मास के शुक्ल पक्ष के तृतीया तिथि को किया जाता है. इस वर्ष 2023 में अक्षय तृतीया 23 अप्रैल रविवार को है.

Akshaya Tritiya: अक्षय का अर्थ है, कभी न क्षय होने वाला. संपूर्ण कामनाओं को प्रदान करने वाला यह व्रत वैशाख मास के शुक्ल पक्ष के तृतीया तिथि को किया जाता है. इस वर्ष 2023 में अक्षय तृतीया 23 अप्रैल रविवार को है. सौभाग्य की बात है कि इस बार अक्षय तृतीया रोहिणी नक्षत्र में ही घटित है. अतः मुहूर्त की बात की जाय तो यह समयकाल विशेष भाग्यशाली मुहूर्त के समान है.

चार स्वयंसिद्ध अभिजित मुहूर्त

भारतीय कालगणना के अनुसार चार स्वयंसिद्ध अभिजित मुहूर्त है- चैत्र शुक्ल प्रतिपदा (गुड़ीपडवा), आखातीज (अक्षय तृतीया), दशहरा और दीपावली के पूर्व की प्रदोष तिथि. अक्षय तृतीया को सतयुग का त्रेतायुग का आरम्भ माना गया है. इस दिन किया हुआ जप, तप, ज्ञान तथा दान अक्षय फलदायक होता है.

  • इस दिन शुभ एवं पवित्र कार्य करने से जीवन धन्य हो जाता है. इस दिन गंगा स्नान का विशेष महत्व है.

  • इस दिन से ही भगवान बद्रीनारायम के पट खुलते हैं.

  • वर्ष में एक बार वृंदावन के श्री बांकेबिहारी जी के मंदिर में श्रीविग्रह के चरण दर्शन होते हैं.

  • नर-नारायण ने भी इसी दिन अवतार लिया था.

  • स्कन्दपुराण और भविष्य में उल्लेख है कि वैशाख शुक्ल पक्ष की तृतीया को रेणुका के गर्भ से भगवान विष्णु ने परशुराम के रूप में जन्म लिया.

  • हयग्रीव का अवतार भी इसी दिन हुआ था.

  • स्वयंसिद्ध मुहूर्त होने के कारण सबसे अधिक विवाह इसी दिन होते हैं.

अक्षय तृतीया पूजा नियम

अक्षय तृतीया के दिन गौरी की पूजा भी होती है. सधवा स्त्रियां और कन्याएं गौरी-पूजा करके मिठाई, फल और भीगे हुए चने बांटती है, गौरी-पार्वती की पूजा करके धातु या मिट्टी कलश में जल, फल, फूल, तिल, अन्न आदि भरकर दान करती है.इस वर्ष गौरीपुत्र श्रीगणेश की तिथि चतुर्थी का संयोग तृतीया को है जो अधिक शुभ फलदायी है.यह व्रत करके स्त्री अखण्ड सौभाग्यवती होती है,इस व्रत अनुष्ठान करनेवाले की संतान अक्षय़ हो जाती है और की हुई कामना पूर्ण होती है.अविवाहित कन्याओं को मनोनुकूल वर की प्राप्ति होती है तथा शीघ्र विवाह होती है.

अक्षय तृतीया का विधि और महत्व

शास्त्र-पुराणों के अनुसार अक्षय तृतीया की सबसे बड़ा महत्व है कि इस अवसर पर अक्षय लक्ष्मी की साधना किया जाता है. लक्ष्मी तंत्र में कहा गया है कि स्वयं कुबेर ने इस साधना के माध्यम से लक्ष्मी को अनुकूल बनाया था. भले ही किसी को पूजा पद्धति की जानकारी न हो, उसे स्पष्ट मंत्रों का उच्चारण ज्ञात न हो, परन्तु अक्षय तृतीया के अवसर पर पारद लक्ष्मी, सुमेरूपृष्ठ कुबेर यंत्र, श्रीयंत्र, लक्ष्मी पिरामिड, ऋद्धि- सिद्धिदाता पिरामिड, इन्द्राणी यंत्र पिरामिड, लक्ष्मी चरण पादुका, अष्टलक्ष्मी, लक्ष्मीकारक कौडियां, श्रीयंत्रेश्वर, चांदी के सिक्का खरीदकर घर में लाने के बाद अपने सामने बाजोट पर चावल से श्री बीज मंत्र बनायें. अब इस पर एक थाली रखें और उस पर लाल पुष्प का आसन बिछाकर श्रीअष्टलक्ष्मी यंत्र स्थापित करें. इसके बाकी सामग्री जैसे श्रीयंत्र, कूबेर यंत्र, लक्ष्मी पिरामिड आदि को दूध, दही, घी, शहद, शक्कर सभी को मिलाकर स्नान करवायें. एक घी का दीपक जलायें. अब कुकुंम, अक्षत, लौंग, इलाइची, सुपारी, पान, इत्र चढ़ायें. धूप-दीप करें व खीर का प्रसाद चढ़ायें. ऊँ श्रीं श्रियै नमः मंत्र का 5 माला जप करें. अक्षय तृतीया के दिन इस तरह पूजा करने से घर में स्थायी लक्ष्मी का निवास होता है. ऐश्वर्य, शक्ति, सौन्द्रर्य और शांति प्राप्त होती है.

डॉ.एन.के.बेरा, 9431114351

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