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भारत के यूट्यूबर्स उतने अमीर नहीं, जितने दिखाई देते हैं; देखें डिजिटल दुनिया की असल तस्वीर

SociaL Media All That Glitters is Not Gold: सोशल मीडिया पर चमकते चेहरों और लाखों व्यूज के पीछे एक बड़ी सच्चाई छिपी है. क्रिएटर बनना आसान हो गया है, लेकिन उससे टिकाऊ कमाई करना आज भी एक चुनौती है - खासकर भारत जैसे देश में जहां प्रतिस्पर्धा बहुत ज्यादा है.

SociaL Media All That Glitters is Not Gold: हर दिन सोशल मीडिया पर दिखने वाले वायरल वीडियो, चमचमाते थंबनेल और लाखों फॉलोअर्स वाले क्रिएटर्स को देखकर लगता है कि हर यूट्यूबर या इंस्टाग्रामर रातों-रात अमीर बन चुका है. लेकिन Boston Consulting Group (BCG) की ताजा रिपोर्ट इस भ्रम को तोड़ती है.

रिपोर्ट के मुताबिक, भारत के लगभग 20 से 25 लाख एक्टिव डिजिटल क्रिएटर्स में से केवल 8 से 10 प्रतिशत लोग ही वाकई में अपनी कंटेंट से कमाई कर पा रहे हैं. बाकी के 90% क्रिएटर्स या तो बहुत कम कमा रहे हैं या कुछ भी नहीं.

90% क्रिएटर्स की कमाई क्यों ठप है?

इस असंतुलन की सबसे बड़ी वजह है ओवरसप्लाई यानी जरूरत से ज्यादा क्रिएटर्स का होना. लाखों लोग यूट्यूब, इंस्टाग्राम, Moj जैसे प्लैटफॉर्म पर अपनी पहचान बनाने में जुटे हैं, लेकिन उनमें से बेहद कम ऐसे हैं जो अपने दर्शकों को स्थायी कमाई में बदल पा रहे हैं.

रिपोर्ट कहती है कि अधिकतर क्रिएटर्स की आमदनी ₹18,000 प्रति माह से भी कम है, और छोटे क्रिएटर्स साल भर में औसतन ₹3.8 लाख कमा पाते हैं. वहीं, जिनके पास लाखों सब्सक्राइबर्स और मजबूत ब्रांड डील्स हैं, उनकी कमाई ₹50,000 महीने या उससे अधिक हो सकती है – मगर ये बेहद कम प्रतिशत में हैं.

व्यूज हैं, लेकिन पैसा नहीं

भारत में एक लाख व्यूज पर औसतन ₹5,500 से ₹20,000 की कमाई होती है – यह भी उस पर निर्भर करता है कि कंटेंट किस कैटेगरी का है और दर्शक कौन से इलाके से हैं. फाइनेंस, एजुकेशन और टेक जैसे निच कैटेगरीज अब धीरे-धीरे उभर रही हैं, खासकर टियर-2 और टियर-3 शहरों में.

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क्या बदल रहा है?

BCG रिपोर्ट बताती है कि क्रिएटर इकोनॉमी अब केवल ऐड रेवेन्यू पर नहीं टिक रही. नये इनकम सोर्स जैसे:

लाइव कॉमर्स (Live Shopping)

वर्चुअल गिफ्टिंग(Live tipping)

पेड सब्सक्रिप्शन

एफिलिएट मार्केटिंग

… जैसे मॉडल्स तेजी से लोकप्रिय हो रहे हैं.

YouTube Live, Moj, ShareChat जैसे प्लैटफॉर्म अब दर्शकों को रियल टाइम में टिप्स देने की सुविधा दे रहे हैं. कुछ सफल क्रिएटर्स अपने लॉयल फैंस के जरिये भी कमाई कर रहे हैं, जो उन्हें सब्सक्रिप्शन और डिजिटल गिफ्ट के जरिये सपोर्ट करते हैं.

प्रभाव तो अरबों का, लेकिन आमदनी सीमित

भारत में क्रिएटर्स का कंटेंट हर साल लगभग $350-400 अरब डॉलर के कंज्यूमर खर्च पर असर डालता है, जो 2030 तक $1 ट्रिलियन तक पहुंच सकता है. लेकिन इस प्रभाव के मुकाबले सीधी कमाई अभी सिर्फ $20–25 अरब डॉलर की है, जो आने वाले दशक में पांच गुना तक बढ़ने की उम्मीद है.

सफलता का फॉर्मूला क्या है?

रिपोर्ट का साफ संदेश है:

“सिर्फ व्यूज नहीं, आपको अपने दर्शकों के साथ असली कनेक्शन बनाना होगा.क्रिएटर्स को अपनी कमाई के स्रोतों को विविध बनाना होगा – सिर्फ ऐड पर निर्भर रहना अब काम नहीं करेगा.

जो लोग सोशल मीडिया को ‘शॉर्टकट टू सक्सेस’ समझते हैं, उनके लिए यह रिपोर्ट एक रियलिटी चेक है. डिजिटल कंटेंट बनाना आज भी एक फुलटाइम मेहनत है, जिसमें सिर्फ कैमरा नहीं, रणनीति और धैर्य भी चाहिए.

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