7.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

आसनसोल लोकसभा सीट से भाजपा-तृणमूल के उदय के साथ ही ढलने लगा कांग्रेस-माकपा का सूरज

आसनसोल लोकसभा सीट से 2019 में माकपा के 15.31 फीसदी और वोट हाथ से निकल गये. शेष मिले वोट 7.08 फीसदी ही रहे गये. माकपा इन दिनों अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही है.

शिवशंकर ठाकुर, आसनसोल : माकपा के लाल दुर्ग के रूप में चर्चित आसनसोल के 67 साल के चुनावी इतिहास में दो चरणों में 34 सालों तक इस सीट पर माकपा का परचम लहराता रहा. पहले चरण में वर्ष 1971 से 1980 तक दो चुनावों में और दूसरे चरण में वर्ष 1989 से 2014 तक 25 वर्षों में इस सीट पर कुल आठ बार हुए चुनाव में हर बार माकपा उम्मीदवार को जीत मिली. इसलिए इसे माकपा के दुर्ग की संज्ञा मिली. इसे वर्ष 2014 में भाजपा ने ध्वस्त कर दिया था. इसके साथ ही यहां माकपा का सूर्यास्त होने लगा. इससे पहले कुल 10 बार इस सीट पर हुए चुनावों को जीतने वाली माकपा को यहां 61.33 फीसदी तक वोट मिल चुके थे. अब उसके खाते में सात फीसदी वोट ठहर गये हैं.

2009 में 48.69 फीसदी वोट पाकर आसनसोल के माकपा उम्मीदवार वंशगोपाल चौधरी ने अपनी पार्टी के लिए अंतिम जीत दर्ज की थी. 2014 के चुनाव में 26.30 फीसदी वोटों का नुकसान हुआ. 2019 में माकपा के 15.31 फीसदी और वोट हाथ से निकल गये. शेष मिले वोट 7.08 फीसदी ही रहे गये. माकपा इन दिनों अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही है. वर्ष 2014 से 2022 तक हुए तीनों (एक उपचुनाव) चुनावों में सीधा मुकाबला भाजपा और तृणमूल के बीच हुआ. उल्लेखनीय तथ्य यह भी है कि 1984 यहां 55.52 फीसदी वोट पाने वाली कांग्रेस अब 1.30 फीसदी वोट पर सिमट चुकी है.

आसनसोल लोकसभा सीट का इतिहास

वर्ष 1957 में बर्दवान संसदीय क्षेत्र से कट कर आसनसोल सीट बनी थी. 1957 से 2022 तक दो उपचुनाव सहित इस सीट पर कुल 18 बार चुनाव हुए. 2005 में माकपा नेता व तत्कालीन सांसद विकास चौधरी के निधन और पूर्व भाजपा सांसद बाबुल सुप्रियो द्वारा इस्तीफा दिये जाने के बाद वर्ष 2022 में यहां उपचुनाव हुआ था. 1957 में दो सांसदों वाली इस सीट पर कांग्रेस के मनमोहन दास और चर्चित नेता अतुल्य घोष सांसद बने थे. 1962 में एक सांसद वाली सीट रह गयी तब भी कांग्रेस के अतुल्य घोष ही दूसरी बार सांसद बने. 1967 में संयुक्त समाजवादी पार्टी के देबेन सेन, 1971 और 1977 में माकपा के रोबिन सेन, वर्ष 1980 और 1984 में कांग्रेस के आनंदगोपाल मुखर्जी, वर्ष 1989, 1991 और 1996 में माकपा के हराधन राय तथा 1998, 1999 और 2004 में माकपा नेता विकास चौधरी यहां से सांसद बने. 2005 ने चौधरी का निधन के बाद उपचुनाव तथा 2009 के आम चुनाव में माकपा के वंश गोपाल चौधरी यहां जीते. वर्ष 2014 और 2019 में भाजपा के बाबुल सुप्रियो को यहां जीत मिली थी. आगे चल कर पार्टी से बात नहीं बनने पर सुप्रियो ने इस्तीफा देकर इस सीट को खाली कर दिया, जिसके बाद 2022 में यहां उपचुनाव कराना पड़ा तथा इसके साथ ही यहां की संसदीय राजनीति में बिहारी बाबू अर्थात शत्रुघ्न सिन्हा की इंट्री हो गयी. पटना की हार के बाद यहां राहत पाये तथा चुनाव जीत कर लोकसभा पहुंचे.

Asan Soal 993
आसनसोल लोकसभा सीट से भाजपा-तृणमूल के उदय के साथ ही ढलने लगा कांग्रेस-माकपा का सूरज 5

1998 और 2014 में हुए बड़े बदलाव

आसनसोल की राजनीतिक में 1998 और 2014 के चुनाव परिवर्तनकारी रहे. तृणमूल के गठन के बाद पार्टी ने पहली बार 1998 के चुनाव में अपना उम्मीदवार मैदान में उतारा. वर्ष 1971 से लेकर 1996 तक सात बार हुए चुनाव में माकपा और कांग्रेस के बीच मुकाबला होता रहा. इस दौरान दो बार कांग्रेस और पांच बार माकपा को जीत मिली थी. 1998 के चुनाव में तृणमूल का उदय हुआ और माना जाता है कि इसके साथ ही कांग्रेस का अस्त भी शुरू हुआ. कांग्रेस की जगह आसनसोल की राजनीति में तृणमूल ने जगह बना ली. कांग्रेस तीसरे नम्बर पर खिसक गयी. 1996 में कांग्रेस को 40.60 फीसदी वोट मिले थे, जो 1998 में तृणमूल उम्मीदवार के मैदान में आते ही घटकर 12.79 फीसदी पर पहुंच गये. यह गिरावट आगे भी जारी रही.

1999 के चुनाव में कांग्रेस का वोट घट कर 10.95 फीसदी हो गया, तो तृणमूल का बढ़ कर 41.63%. 2004 के चुनाव में कांग्रेस का वोट दहाई से इकाई में चला गया, 9.75% हो गया. 2005 के उपचुनाव में कांग्रेस 7.85 फीसदी पर कांग्रेस पहुंच गयी. 2014 के चुनाव में पार्टी को 4.24 फीसदी वोट मिले. 2019 में देश की इस सबसे पुरानी पार्टी को 1.7 फीसदी वोट ही मिल सके. 2022 के उपचुनाव में तो हालत और भी खस्ता हो गयी. बात सिर्फ 1.30 % पर जा पहुंची. इस बीच 2014 में आसनसोल के राजनीतिक परिदृश्य में भाजपा का पदार्पण हुआ और इसके साथ ही माकपा का भी सूर्यास्त शुर हो गया.

Lok Sabha Election 949
आसनसोल लोकसभा सीट से भाजपा-तृणमूल के उदय के साथ ही ढलने लगा कांग्रेस-माकपा का सूरज 6

Also Read: WB News : आसनसोल के सोडियम सिलीकेट फैक्ट्री मे जोरदार धमाके के साथ हुआ जहरीली गैस का रिसाव

पूरी ताकत झोंकते दिख रहे तीन उम्मीदवार

आसनसोल सीट पर इस बार कुल सात उम्मीदवार मैदान में हैं. तृणमूल के शत्रुघ्न सिन्हा, भाजपा के सुरेंद्रजीत सिंह अहलूवालिया, माकपा की जहांआरा खान, बसपा के सनी कुमार शाह, एसयूसीआइ (सी) के अमर चौधरी, निर्दलीय दीपिका बाउरी और सुजीत पाल चुनाव लड़ रहे हैं.इनमें पहले तीन का प्रचार काफी जोर-शोर से चल रहा है. कहा जा सकता है कि ये तीनों और इनके कार्यकर्ता ही आसनसोल की जमीन पर मुख्य रूप से नजर आ रहे हैं.

संदेशखाली-एसएससी पर हो रहे वार-पलटवार

राजनीतिक विश्लेषक व कलकत्ता उच्च न्यायालय के वरिष्ठ अधिवक्ता हरिशंकर चट्टोपाध्याय के अनुसार, इस बार के चुनाव में जनता की मुख्य समस्याओं पर दोनों प्रमुख पार्टियां – भाजपा और तृणमूल कुछ नहीं बोल रहीं. भाजपा नेता अपनी सभाओं में प्रभु श्रीराम का जिक्र कर रहे हैं, हिंदुत्व पर बोल रहे हैं, संदेशखाली और एससीसी नियुक्ति को ही हथियार बना रहे हैं. प्रधानमंत्री ने भी कुछ ऐसी ही बातें कहीं. तृणमूल भी इन्हीं मुद्दों के इर्द गिर्द भाजपा को घेरने में जुटी है. मुख्यमंत्री भी अपनी जनकल्याणकारी योजनाओं को गिनाये जा रही हैं. माकपा का प्रचार मंहगाई, केंद्रीय संस्थाओं का निजीकरण और भाजपा के संप्रदायवाद आदि पर केंद्रित हो कर रह गया है. शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार, गरीबी, अवैध कोयला खनन आदि इलाके के बड़े मुद्दे हैं. अवैज्ञानिक तरीके से हो रहा बालू खनन और जल संकट भी. अवैध कब्जा, बदहाल सड़कें, निकासी व्यवस्था तथा अतिक्रमण आदि जैसी ज्वलंत समस्याओं पर कोई नहीं बोल रहा. नेताओं के भाषण में अधिकांश समय सिर्फ एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप में ही बीत रहा है.

योगी ही सबसे बड़े स्टार प्रचारक

पिछले दो लोकसभा चुनावों यहां नरेंद्र मोदी भाजपा उम्मीदवार बाबुल सुप्रियो के समर्थन में आसनसोल में सभा कर गये थे. पर, इस बार उनका कार्यक्रम नहीं बन सका. अब उनके आने की संभावना लगभग नहीं ही है. भाजपा के स्टार प्रचारक और केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह का रोड शो अवश्य हुआ है. उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने रानीगंज विधानसभा क्षेत्र के खांद्रा मैदान में एक जनसभा की है. चर्चित सिने अभिनेता और भाजपा नेता मिथुन चक्रवर्ती भी एक रोड शो कर चुके हैं. भोजपुरी अभिनेता व गायक मनोज तिवारी ने भी इस बीच एक रोड शो किया है. इनके अलावा एनडीए की तरफ से कोई अन्य बड़ा स्टार प्रचारक आसनसोल में अब तक नहीं दिखा.

तृणमूल की ओर से मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने यहां दो-दो सभाएं कीं. तृणमूल महासचिव अभिषेक बनर्जी का रोड शो हुआ है. इनके अतिरिक्त राज्य के अनेक मंत्री नियमित इलाके में सभाएं और रैलियां कर रहे हैं. माकपा उम्मीदवार के पक्ष में पार्टी के प्रदेश सचिव सह पोलित ब्यूरो सदस्य मोहम्मद सलीम का आना हुआ है. डीवाईएफआई की प्रदेश सचिव मीनाक्षी मुखर्जी के अलावा प्रदेश स्तर के वामपंथी नेताओं ने सभा व रैलियां की हैं.

Asan Soal 393
आसनसोल लोकसभा सीट से भाजपा-तृणमूल के उदय के साथ ही ढलने लगा कांग्रेस-माकपा का सूरज 7

दो कारखाने बंद, पर सेल में 35 हजार करोड़ का निवेश भी

रूपनारायणपुर इलाके में 1952 में स्थापित देश की एकमात्र दूरसंचार केबल बनाने वाली पब्लिक सेक्टर इकाई हिंदुस्तान केबल्स को 28 सितंबर 2016 को ही बंद करने का निर्णय लिया गया था और कर्मचारियों को वीआरएस देकर 31 जनवरी 2017 को इसे बंद भी कर दिया गया. सिर्फ यही नहीं, पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर इस कारखाने की सारी मशीनें, स्क्रैप, ढांचा, जमीन के अंदर तक गड़े हुए लोहा तक को ऑक्शन करके बेच दिया गया और पूरे कारखाना परिसर को समतल मैदान बना दिया गया. बर्नपुर में 1918 में स्थापित इंडियन स्टैंडर्ड वैगन, जो 1972 में राष्ट्रीयकरण के बाद बर्न स्टैंडर्ड कंपनी लिमिटेड हुआ था, उसके बारे में आरएसपी नेता आशीष बाग कहते हैं कि यहीं हावड़ा ब्रिज और सेकेंड हुगली ब्रिज से लेकर पानी के बड़े जहाजों तक के लिए जेटी, द्वतीय विश्व युद्ध के लिए तोप के गोले आदि बनाने जैसे काम हुए थे. वर्ष 1889 में यह संस्था बीआईएफआर में गयी थी. 2010 में रेलवे के साथ कुछ शर्तों के आधार पर इसका विलय हुआ था. 2017-18 में 98 करोड़ रुपये मुनाफे के बाद भी सभी कर्मचारियों को वीआरएस देकर 24 सितंबर 2018 को इस कारखाने को भी बंद कर दिया गया.

कोयला उद्योग में एफडीआइ और कॉमर्शियल माइनिंग के बढ़ते प्रभाव से आगामी दिनों में कोल इंडिया का अस्तित्व भी समाप्त होने की आशंका को लेकर केंद्रीय ट्रेड यूनियन में शामिल लोग लगातार आंदोलन कर रहे हैं.

चित्तरंजन रेल कारखाना (चिरेका) एक उत्पादन इकाई से अब असेंबलिंग यूनिट में तब्दील हो गया है. श्रमिकों की संख्या लगातार कम हो रही है. नयी बहाली नहीं है, जिसे लेकर यूनियनों का आंदोलन लगातार चल रहा है.

शिल्पांचल में उद्योगों के बंद और रुग्ण होने के बीच एक अच्छी खबर भी है. इंटक नेता हरजीत सिंह और बीएमएस नेता दीपक सिंह ने बताते हैं कि सेल आइएसपी बर्नपुर में 35 हजार करोड़ के निवेश से 4.5 मिलियन टन का नया क्रूड स्टील प्रोडक्शन प्लांट की मंजूरी मिली है. इसके लिए फंड का आवंटन भी हो चुका है. इसके बनने से प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से भारी संख्या में रोजगार का सृजन होगा. अभी 2.5 मिलियन टन का प्लांट चल रहा है. नया प्लांट बन जाने से सात मिलियन टन का उत्पादन शुरू हो जायेगा. भाजपा नेता इसे बड़ी उपलब्धि बता रहे हैं.

भाजपा-तृणमूल कर रहे रोड शो, माकपा कर रही घर-घर प्रचार

आसनसोल के भाजपा उम्मीदवार श्री अहलूवालिया 72 वर्ष के हैं. तृणमूल के श्री सिन्हा 76 वर्ष के. तृणमूल का प्रचार मुख्य रूप से रोड शो और सभा के जरिये हो रहा है. अभी तक डोर टू डोर जनसंपर्क नहीं के बराबर है. भाजपा उम्मीदवार रोड शो के साथ जन संपर्क के माध्यम से भी अपने प्रचार को आगे बढ़ा रहे हैं. 57 वर्षीय माकपा उम्मीदवार सुश्री खान शुरू से ही जनसंपर्क पर केंद्रित हैं. रैलियों में पैदल ही चलना उन्हें ज्यादा पसंद है.

Asan Soal 9333
आसनसोल लोकसभा सीट से भाजपा-तृणमूल के उदय के साथ ही ढलने लगा कांग्रेस-माकपा का सूरज 8

उम्मीदवार अपने पहनावे से भी कर रहे अपनी ब्रांडिंग

माकपा उम्मीदवार सुश्री खान का अपना पुराना अंदाज सलवार-समीज, लाल टोपी और स्पोर्ट्स शूज वाला है. वह कहती हैं कि वह साड़ी कभी नहीं पहनीं. सलवार-समीज में ही कम्फर्ट महसूस होता है उन्हें. भाजपा उम्मीदवार श्री अहलूवालिया कुर्ता, पायजामा, लाल पगड़ी और पैरों में अपने स्टाइलिश जूते के साथ प्रचार अभियान में जुटे हैं. तृणमूल के स्टार उम्मीदवार श्री सिन्हा पूरे चुनाव प्रचार के दौरान फूल शर्ट, ट्राउजर, हाफ जैकेट, स्टॉल्स और स्पोर्ट्स शूज का उपयोग कर रहे हैं. धूप से बचने के लिए सनग्लास को तो सभी जरूरी मान रहे हैं.

पेयजल, अवैध खनन व भू-माफिया हैं बड़ी समस्या

आसनसोल लोकसभा क्षेत्र का इलाका प्राकृतिक संपदा से भरपूर है. इस कारण यहां एक के बाद एक उद्योग लगे और इस शहर के विकास को गति मिली. उद्योगों की भरमार के कारण इसे शिल्पांचल भी कहा जाता है. हाल के दिनों में भू-माफियाओं का दबदबा बढ़ने से सरकार के साथ-साथ आम जनता की समस्या भी बढ़ गयी है. कहीं भी किसी की भी जमीन खाली पड़ी है, तो फिर उस पर मालिकाना हक खतरे में है. चाहे वह सरकार की जमीन हो या निजी. सरकार तो माफियाओं से लड़ सकती है, लेकिन एक साधारण व्यक्ति उनके आगे सरेंडर कर देता है. हजारों की संख्या में लोग हैं, जो जमीन तो खरीदे लेकिन उसके मालिक नहीं बन पाये और वह जमीन उनके हाथ से चली गयी.

राज्य सरकार, आसनसोल दुर्गापुर विकास प्राधिकरण की जमीनों को माफियाओं ने गलत तरीके से बेच दिया है. भूस्वामी और खरीदार दोनों परेशान हैं. यह अरबों रुपये का कारोबार सबसे बड़ी समस्या के रूप में सामने आयी है. यह आम जनता की एक प्रमुख समस्या है. पेयजल यहां की आम समस्या है, जिसे दूर करने के लिए काम काफी तेजी से चल रहा है, वर्ष 2027 तक इस मामले में कुछ प्रगति की संभावना जताई जा रही है. अवैज्ञानिक तरीके से अवैध कोयला खनन से वर्तमान और भविष्य, दोनों में ही बड़े खतरे दिख रहे हैं. अवैध खनन से वर्तमान में श्रमिकों की जान जा रही है. भविष्य में इन भूखंडों पर बसे लोगों के लिए बड़ा खतरा कभी भी आ सकता है. फिलहाल इस पर अंकुश लगाने की दिशा में कहीं से कोई बड़ी पहले नहीं दिख रही है.

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें