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नसबंदी व गोद लेने के चलते कुत्तों के काटने की घटनाओं में आयी भारी गिरावट

आवारा कुत्तों पर सुप्रीम कोर्ट के एक आदेश को लेकर देशभर में बहस छिड़ी हुई है. हालांकि, बाद में सुप्रीम कोर्ट के आदेश में थोड़ा बदलाव किया गया है.

संवाददाता, कोलकाता

आवारा कुत्तों पर सुप्रीम कोर्ट के एक आदेश को लेकर देशभर में बहस छिड़ी हुई है. हालांकि, बाद में सुप्रीम कोर्ट के आदेश में थोड़ा बदलाव किया गया है. इस बीच, कुत्तों के हमलों या काटने को लेकर बढ़ती दहशत के बीच पश्चिम बंगाल ने एक अलग रास्ता अपना कर सफलता पायी है. ताजा आंकड़े बताते हैं कि वर्ष 2025 के पहले सात महीनों में राज्य में कुत्तों के काटने की घटनाओं में उल्लेखनीय कमी आयी है. राज्य सरकार द्वारा शुरू किये गये नसबंदी और गोद लेने के कार्यक्रम ने इसमें अहम भूमिका निभायी है. वकीलों से लेकर पशु प्रेमियों तक, सभी इस बात पर सहमत हैं कि समस्या का समाधान उन्हें जबरन कैद करना या मारना नहीं है, बल्कि जन-हितैषी और पशु-केंद्रित उपाय करना है.

बंगाल के मामले में भी यह बात साबित हुई है. सरकारी आंकड़ों के अनुसार, नियमित नसबंदी कार्यक्रमों के कारण आवारा कुत्तों की संख्या काफी हद तक नियंत्रित हो गयी है. इसके अलावा गोद लेने के कार्यक्रमों के माध्यम से कई आवारा कुत्तों को शहरों और गांवों में नये आश्रय मिल रहे हैं. इससे न केवल कुत्तों की सुरक्षा सुनिश्चित होती है, बल्कि लोगों के साथ उनके टकराव भी कम होते हैं.

सरकारी आंकड़ों के अनुसार कोलकाता और उससे सटे हावड़ा और विधाननगर नगर निगम में आवारा कुत्तों की संख्या ज्यादा है. राज्य पशुपालन विकास विभाग ने इन तीनों नगर निगमों को आवारा कुत्तों की नसबंदी के लिए धनराशि दी है. 2025 के पहले सात महीनों के आंकड़े बताते हैं कि राज्य में कुत्तों के काटने की घटनाओं में कमी आयी है. पशुपालन विकास विभाग की रिपोर्ट में बताया गया है कि अब तक कुत्तों के काटने से 10,264 लोग घायल हुए हैं. पिछले साल यह संख्या 76,486 थी.

विभाग के एक अधिकारी ने कहा : सरकार की निरंतर पहल ने आवारा कुत्तों के काटने की घटनाओं को कम करने में अहम भूमिका निभायी है. अब इंसान भी अपेक्षाकृत सुरक्षित हैं. अब तक विभाग ने कोलकाता, हावड़ा और विधाननगर नगर निगम को नसबंदी कार्यक्रमों के लिए एक करोड़ रुपये दिये हैं. हम नगर निगमों के काम से संतुष्ट हैं. कई लोगों का मानना है कि बंगाल का यह अनुभव दूसरे राज्यों के लिए भी एक मिसाल बन सकता है.

इस संबंध में कोलकाता नगर निगम के डिप्टी मेयर अतिन घोष ने कहा : हम देश में एकमात्र निगम हैं, जहां आवारा कुत्तों के लिए एक अलग विभाग है. महानगर में 19 रेबीज रोकथाम केंद्र हैं. इसके अलावा प्रतिदिन औसतन 25-30 कुत्तों की नसबंदी की जाती है. हमने अपने महानगर में आवारा कुत्तों की स्थिति को नियंत्रित रखने के लिए हर संभव कदम उठाये हैं.

राज्य के पशुपालन विकास मंत्री स्वप्न देबनाथ ने कहा कि कुत्तों की नसबंदी को लेकर आमलोगों में जागरूकता की कमी है. उन्होंने कहा : हमने आवारा कुत्तों और आम लोगों, दोनों की सुरक्षा के लिए कदम उठाये हैं. कई मामलों में जब हम नसबंदी के लिए अलग-अलग इलाकों में कुत्तों को पकड़ने जाते हैं, तो स्थानीय लोग इसका विरोध करते हैं. इस संबंध में आमलोगों को और अधिक जिम्मेदार और जागरूक होने की जरूरत है, ताकि समाज में इंसानों और कुत्तों के बीच सह-अस्तित्व का संतुलन बना रहे.

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