कोलकाता.
अगर कोई उम्मीदवार किसी नौकरी या एडमिशन के एंट्रेंस एग्जाम में वेटिंग लिस्ट में शामिल होता है, तो इसका मतलब यह नहीं है कि उसे भविष्य में उसी पद पर नौकरी पक्के तौर पर मिल ही जायेगी. सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि वेटिंग लिस्ट में नाम होने का कोई स्वतः अधिकार नहीं बनता. केवल तभी उम्मीदवार की नौकरी के लिए विचार किया जायेगा, जब मुख्य चयनित उम्मीदवार पदभार ग्रहण न करे. कलकत्ता हाइकोर्ट ने इससे पहले प्रसार भारती को निर्देश दिया था कि वह वेटिंग लिस्ट में पहले स्थान पर रहने वाले एक तकनीशियन को आगामी नियुक्ति प्रक्रिया में नियुक्त करे. अदालत ने यह निर्देश इस आधार पर दिया था कि प्रसार भारती ने भविष्य में रिक्ति आने पर उसे नौकरी देने का आश्वासन दिया था. हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने अब इस आदेश को रद्द कर दिया है. सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस पीएस नरसिम्हा और जस्टिस अतुल एस चंदुरकर की बेंच ने कहा कि वेटिंग लिस्ट केवल उस नियुक्ति प्रक्रिया तक सीमित होती है, जिसके लिए उम्मीदवार ने आवेदन किया हो. इसे अगली नियुक्ति प्रक्रिया में स्वतः लागू नहीं किया जा सकता. बेंच ने कहा कि वेटिंग लिस्ट में रहने वाला उम्मीदवार तब तक केवल विचाराधीन रह सकता है, जब तक चयनित उम्मीदवार पदभार ग्रहण न करे. इसके बाद उसका कोई अधिकार नहीं रहता.सुप्रीम कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि उम्मीदवार को यह कहने का अधिकार नहीं है कि भविष्य में कोई भी नयी रिक्ति आये, तो उसे उस पर नियुक्त किया जाये. वेटिंग लिस्ट का उद्देश्य केवल वर्तमान नियुक्ति प्रक्रिया में नियुक्ति का विकल्प रखना है, न कि भविष्य में होने वाली किसी भी नियुक्ति के लिए गारंटी देना.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हाइकोर्ट ने यह महत्वपूर्ण तथ्य नजरअंदाज किया कि 1997 में उपलब्ध रिक्तियों को भरने के बाद वेटिंग लिस्ट समाप्त हो गयी थी और नियुक्ति प्रक्रिया पूरी हो चुकी थी, इसलिए हाइकोर्ट का आदेश कि तकनीशियन को नियुक्ति किया जाये, सही नहीं था. बेंच ने यह भी स्पष्ट किया कि किसी आश्वासन या बयान की गंभीरता होती है, लेकिन अगर उसका पालन करने से वैधानिक नियम या कानून का उल्लंघन हो, तो प्रभावित पक्ष अदालत में जाकर इसे सही तरीके से प्रस्तुत कर सकता है.डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है

