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प्रिंट मीडिया की विश्वसनीयता आज भी कायम : डॉ सोमा बंद्योपाध्याय

पत्रकार और साहित्यकार एक-दूसरे के पूरक हैं, लेकिन दुर्भाग्य से आज पत्रकारिता का स्वरूप बदल गया है.

कोलकाता. पत्रकार और साहित्यकार एक-दूसरे के पूरक हैं, लेकिन दुर्भाग्य से आज पत्रकारिता का स्वरूप बदल गया है. यह जीविका का एक साधन बन गयी है. डिजिटल और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया की अपेक्षा आज भी प्रिंट मीडिया पर लोगों की विश्वसनीयता कायम है, यह हमारे लिए गौरव की बात है. यह विचार डॉ सोमा बंद्योपाध्याय ने ‘हिन्दी पत्रकारिता: प्रथम समाचार पत्र उदन्त मार्त्तण्ड द्विशताब्दी वर्ष पर केंद्रित द्वि-दिवसीय भारत: साहित्य एवं मीडिया महोत्सव’ के समापन सत्र की अध्यक्षता करते हुए भारतीय भाषा परिषद सभागार में व्यक्त किये. उन्होंने कहा कि कलकत्ता हिंदी पत्रकारिता की जन्मभूमि और नवजागरण का केंद्र रहा है. हिंदी पत्रकारिता के विकास में बांग्लाभाषी राजा राम मोहन राय, अमृतलाल चक्रवर्ती, रामानंद चट्टोपाध्याय, शारदाचरण मित्र आदि की महत्वपूर्ण भूमिका रही है. रवींद्रनाथ टैगोर ने कहा था कि हिन्दी अपने आंतरिक मूल्यों के कारण विश्व में समादृत होगी. यह महोत्सव उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान (उत्तर प्रदेश सरकार), भारतीय भाषा परिषद (कोलकाता), काशी-वाराणसी विरासत फाउंडेशन (बनारस) व केंद्रीय हिन्दी संस्थान (आगरा) के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित किया गया था और यह वरिष्ठ साहित्यकार आचार्य विष्णुकांत शास्त्री व पद्मश्री से सम्मानित डॉ कृष्ण बिहारी मिश्र को समर्पित था. मौके पर डॉ अमिता दुबे ने कहा कि आज पत्रकारिता इवेंट मैनेजरों के हाथों पहुंच गयी है. यह मिशन न होकर औद्योगिक क्रांति का अंग बन गयी है. दुर्गा प्रसाद श्रीवास्तव ने जोर दिया कि सही अर्थों में पत्रकार वही है, जिसमें मानवता के लिए तड़प हो. ओमप्रकाश त्रिपाठी ने कहा कि पत्रकारिता के माध्यम से राष्ट्रीय सद्भाव को बढ़ावा देना चाहिए. स्वाति घोषालकर ने चिंता जतायी कि आज पत्रकारिता सत्ता और टीआरपी का दबाव महसूस कर रही है. डॉ नीलम वर्मा, शीतला प्रसाद दुबे, डॉ प्रेम शंकर त्रिपाठी ने भी अपने विचार व्यक्त किये. कार्यक्रम का संचालन अरविंद मिश्र ने किया, स्वागत भाषण राम मोहन पाठक ने दिया और शरद त्रिपाठी ने धन्यवाद ज्ञापित किया. समापन सत्र से पूर्व ‘भारतीय भाषाई पत्रकारिता: मिशन से व्यवसाय, व्यापार तक’ विषय की अध्यक्षता करते हुए अंबरीष सक्सेना ने कहा कि भाषा एक जरूरी माध्यम है, परंतु विचार भी महत्वपूर्ण है.

इस अवसर पर डॉ सुष्मिता बाला, सौरभ गुप्ता, अनुराधा गोस्वामी, विनय कुमार सिंह, परमात्मा कुमार मिश्र, रंजन सिंह, अभिषेक मिश्र, प्रमोद कुमार, अनुराग मिश्र, चंदन कुमार गोस्वामी, जयप्रकाश मिश्र, अलीम खान, नाजू हटिककोट्या बरूआ, नूतन अग्रवाल, विवेक तिवारी आदि ने भी विचार व्यक्त किये.

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