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सुप्रीम कोर्ट ने मुर्शिदाबाद में हिंसा मामले की सुनवाई से किया इंकार

सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को एक याचिकाकर्ता को नये संशोधित वक्फ (संशोधन) अधिनियम को लेकर पश्चिम बंगाल में हुई हिंसा की अदालत की निगरानी में जांच के अनुरोध वाली याचिका वापस लेने की अनुमति दे दी. न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति एन कोइस्वर सिंह की पीठ ने याचिकाकर्ता शशांक शेखर झा को याचिका वापस लेने की अनुमति दी और उन्हें नयी याचिका दायर करने की छूट दी.

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कोलकाता.

सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को एक याचिकाकर्ता को नये संशोधित वक्फ (संशोधन) अधिनियम को लेकर पश्चिम बंगाल में हुई हिंसा की अदालत की निगरानी में जांच के अनुरोध वाली याचिका वापस लेने की अनुमति दे दी. न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति एन कोइस्वर सिंह की पीठ ने याचिकाकर्ता शशांक शेखर झा को याचिका वापस लेने की अनुमति दी और उन्हें नयी याचिका दायर करने की छूट दी.

शीर्ष अदालत ने शशांक शेखर झा की रिट याचिका में किये गये दावों को लेकर उनकी खिंचाई करते हुए कहा कि याचिका आवश्यक पक्षों के अलावा किसी भी उचित सत्यापन के बिना दायर की गयी थी. पीठ ने कहा : लगता है आप किसी जल्दबाजी में हैं. प्रतीत होता है कि याचिकाकर्ता मीडिया में आयी खबरों पर भरोसा करते हैं. शीर्ष अदालत ने उनसे याचिका में अपने दावों का उचित सत्यापन करने और नयी याचिका दायर करने के लिए कहा.

गौरतलब रहे कि कलकत्ता उच्च न्यायालय ने हाल में हिंसा प्रभावित मुर्शिदाबाद जिले में केंद्रीय बलों की तैनाती का आदेश दिया है. नये वक्फ कानून के खिलाफ 11 और 12 अप्रैल को प्रदर्शन के दौरान मुर्शिदाबाद जिले के कुछ हिस्सों मुख्य रूप से सुती, शमशेरगंज, धुलियान और जंगीपुर में सांप्रदायिक हिंसा में कई लोग मारे गये और सैकड़ों लोग बेघर हो गये. याचिका में मामले की विशेष जांच दल (एसआइटी) से जांच कराने की मांग की गयी थी. वकील शशांक शेखर झा ने शीर्ष अदालत में जनहित याचिका में वक्फ अधिनियम के खिलाफ विरोध प्रदर्शन के बाद 11 अप्रैल को हुई हिंसा की अदालत की निगरानी में जांच की मांग की थी. आवेदक ने अदालत से यह भी मांग की थी कि वह प्रतिवादियों से कानून-व्यवस्था तंत्र की विफलता के बारे में स्पष्टीकरण मांगे. उन्होंने पीड़ितों के लिए मुआवजा और पुनर्वास की भी मांग की थी.

””हम पर संसदीय व कार्यपालिका के कार्यों में अतिक्रमण का आरोप””

कोलकाता/नयी दिल्ली.

उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश न्यायमूर्ति बीआर गवई ने न्यायपालिका को हाल में निशाना बनाये जाने का स्पष्ट जिक्र करते हुए सोमवार को कहा कि ‘हम पर संसदीय और कार्यपालिका के कार्यों में अतिक्रमण करने का आरोप’ लगाया जा रहा है. पश्चिम बंगाल में वक्फ कानून विरोधी प्रदर्शनों के दौरान हाल में हुई हिंसा की जांच कराये जाने का अनुरोध करने वाली एक नयी याचिका पर सुनवाई कर रही पीठ की अगुवाई कर रहे न्यायमूर्ति गवई ने यह टिप्पणी की. इस पीठ में न्यायमूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह भी शामिल हैं. न्यायमूर्ति गवई ने एक अन्य मामले में भी इसी तरह की टिप्पणी की. एक मामला जहां वक्फ कानून के विरोध में पश्चिम बंगाल में हाल में हुई हिंसा से जुड़ा है तो दूसरी याचिका में केंद्र को ओटीटी और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर अश्लील सामग्री की स्ट्रीमिंग पर रोक लगाने के लिए उचित कदम उठाने का निर्देश देने का अनुरोध किया गया है.

ऑनलाइन सामग्री पर याचिका पर सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति गवई ने कहा, ‘इस पर कौन नियंत्रण कर सकता है? इस संबंध में नियम तैयार करना केंद्र का काम है.’ न्यायमूर्ति गवई ने मामले में पक्ष रख रहे अधिवक्ता विष्णु शंकर जैन से कहा, ‘हमारी आलोचना की जा रही है कि हम कार्यपालिका के कामकाज में, विधायिका के कामकाज में हस्तक्षेप कर रहे हैं.’ जैन ने कहा, ‘‘यह बहुत गंभीर मामला है’. इसके बाद पीठ ने सुनवाई अगले सप्ताह के लिए सूचीबद्ध कर दी.

डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है

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