कोलकाता.
कलकत्ता उच्च न्यायालय ने हाल ही में कई महत्वपूर्ण आदेश जारी किये हैं. राज्य में भ्रष्टाचार से संबंधित मामले में कलकत्ता हाइकोर्ट के आदेशों ने राज्य सरकार की मुश्किलें बढ़ा दी है. लेकिन इसी बीच, कलकत्ता हाइकोर्ट को लेकर एक रिपोर्ट सामने आयी है, जिसमें बताया गया है कि मुकदमों की लंबाई के मामले में कलकत्ता उच्च न्यायालय देश के सभी उच्च न्यायालयों से पीछे है. देश का सबसे पुराना कलकत्ता हाइकोर्ट 18 उच्च न्यायालयों में 17वें स्थान पर है. ऐसी ही जानकारी हाल ही में टाटा ट्रस्ट द्वारा तैयार ”इंडिया जस्टिस रिपोर्ट 2025” के माध्यम से दी गयी. टाटा ट्रस्ट ने देश के उच्च न्यायालय में मामले की सुनवाई, उस समय लगने वाले समय सहित अन्य मुद्दों को लेकर सर्वेक्षण किया था और उसी सर्वेक्षण के आधार पर यह जानकारी दी गयी है. न केवल न्यायिक व्यवस्था के संदर्भ में, बल्कि पुलिस, जेल, कानूनी सहायता और न्यायिक व्यवस्था – इन चार क्षेत्रों के संदर्भ में भी पश्चिम बंगाल देश के सभी राज्यों में अंतिम स्थान पर है. दक्षिण भारत के राज्यों के उच्च न्यायालयों ने शीर्ष पांच स्थान हासिल किये हैं. कर्नाटक उच्च न्यायालय चार मानदंडों में देश में प्रथम स्थान पर है. ”इंडिया जस्टिस रिपोर्ट” नामक यह अध्ययन टाटा ट्रस्ट के तत्वावधान में 2019 में शुरू हुआ था. यह रिपोर्ट पुलिस, जेल, न्यायपालिका और कानूनी सहायता के पहलुओं पर विचार करके तैयार की गई थी.2025 की रिपोर्ट में कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, केरल और तमिलनाडु सभी विषयों में अच्छे अंक प्राप्त कर शीर्ष पांच में रहे. कर्नाटक का स्कोर 6.78 है, जबकि पश्चिम बंगाल का स्कोर केवल 3.63 है. पश्चिम बंगाल से ठीक ऊपर उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड हैं. ”इंडिया जस्टिस रिपोर्ट” के अनुसार, राजस्थान, केरल और मध्य प्रदेश ने 2022 से 2025 के बीच न्यायपालिका में सबसे अधिक प्रगति की है. ओडिशा और झारखंड ने जेल प्रबंधन बेंचमार्क में अच्छा प्रदर्शन किया है.
बताया गया है कि राज्य में लीगल एड सर्विस मौजूद है, लेकिन आम लोगों को इसका कितना लाभ मिल रहा है, इस पर सवाल उठते रहे हैं. कलकत्ता उच्च न्यायालय के रिक्त पदों पर नियुक्ति को लेकर भी सवाल उठाये गये हैं. इस संबंध में हाइकोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता फिरदौस शमीम ने कहा कि कर्मचारियों की नियुक्तियों को लेकर भी मामला लंबित है. इन रिक्तियों को भरना राज्य की जिम्मेदारी है. उन्होंने आगे बताया कि उच्च न्यायालय बार से नियुक्तियां नहीं की जा रही हैं, तथा ऐसा किया जाना आवश्यक है.उन्होंने कहा कि जब कोई न्यायाधीश बाहर से आता है तो उसे अदालत की कार्यप्रणाली समझने में काफी समय लगता है. इसकी वजह से मामले अधिक समय तक लंबित रहते हैं.
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