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अन्य पिछड़ा वर्ग प्रमाण पत्र के मामले में हाइकोर्ट ने मुख्य सचिव को किया तलब

कलकत्ता हाइकोर्ट ने 22 मई 2024 को राज्य सरकार द्वारा जारी लगभग 12 लाख ओबीसी प्रमाण पत्र रद्द करने का आदेश दिया था.

12 मार्च को अगली सुनवाई के दिन वर्चुअल माध्यम से उपस्थित रहने का दिया आदेश

संवाददाता, कोलकाताकलकत्ता हाइकोर्ट ने 22 मई 2024 को राज्य सरकार द्वारा जारी लगभग 12 लाख ओबीसी प्रमाण पत्र रद्द करने का आदेश दिया था. हाइकोर्ट ने अपने आदेश में कहा था कि राज्य में 2010 के बाद बनाये गये सभी प्रमाण-पत्र रद्द करने होंगे. इसके साथ ही उच्च न्यायालय ने निर्देश दिया था कि पश्चिम बंगाल पिछड़ा वर्ग कल्याण आयोग अधिनियम, 1993 के अनुसार ओबीसी की एक नयी सूची तैयार की जाये, जिस सूची को अंतिम अनुमोदन के लिए विधानसभा में प्रस्तुत करना होगा. लेकिन आरोप है कि राज्य सरकार ने हाइकोर्ट के आदेश का अभी तक पालन नहीं किया है. इसलिए उच्च न्यायालय ने अब आदेश का पालन नहीं करने के लिए राज्य के खिलाफ अदालत की अवमानना का मामला स्वीकार कर लिया है. गुरुवार को मामले पर सुनवाई करते हुए न्यायाधीश तपोब्रत चक्रवर्ती और न्यायाधीश राजशेखर मंथा की खंडपीठ ने राज्य के मुख्य सचिव से जवाब तलब किया है और 12 मार्च को दोपहर दो बजे मामले की अगली सुनवाई के दाैरान वर्चुअल माध्यम से उपस्थित रहने का आदेश दिया है.

गौरतलब है कि राज्य सरकार ने ओबीसी प्रमाण पत्र के संबंध में उच्च न्यायालय के आदेश को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है. हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने हाइकोर्ट के आदेश पर कोई रोक नहीं लगायी है. गुरुवार को मामले की सुनवाई के दौरान हाइकोर्ट के खंडपीठ ने कहा कि आखिर राज्य सरकार उच्च न्यायालय के आदेश को क्यों लागू नहीं कर रही है. इसका जवाब मुख्य सचिव को आगामी सुनवाई के दिन उपस्थित रह कर देना होगा. गौरतलब है कि ओबीसी प्रमाण पत्र से संबंधित मामला सर्वोच्च न्यायालय में लंबित है. शीर्ष अदालत ने छह जनवरी को दायर एक मामले को खारिज कर दिया था और कहा था कि वह ओबीसी प्रमाण पत्र रद्द करने के मामले में उच्च न्यायालय के फैसले में हस्तक्षेप नहीं करेगा.

क्या है मामला

उल्लेखनीय है कि पिछले वर्ष हाइकोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि राज्य सरकार द्वारा 2010 के बाद से बनाये गये अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) प्रमाण पत्र प्राप्तकर्ताओं की सूची पिछड़ा वर्ग अधिनियम 1993 का उल्लंघन है. ओबीसी सूची अधिनियम के कानून के अनुरूप तैयार नहीं की गयी. अदालत ने कहा था कि बिना किसी विशेष सर्वेक्षण, बिना किसी विशेष जानकारी के, ओबीसी श्रेणी में नये वर्गों को शामिल किया गया, जो असंवैधानिक है.

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Prabhat Khabar News Desk
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