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दोषी सब-पोस्टमास्टर को तीन साल की कैद, छह लाख का जुर्माना भी

सजा. डाकघर में गबन के केस को लेकर 18 साल चली सुनवाई

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आसनसोल. दुर्गापुर मुख्य डाकघर अंतर्गत नाडिया पोस्टऑफिस की अतिरिक्त विभागीय उप डाकपाल (सब पोस्टमास्टर) रहीं लीलिमा घोष को सीबीआइ की विशेष अदालत ने सार्वजनिक धन के दुरुपयोग के मामले में दोषी पाये जाने पर तीन साल के कारावास की सजा सुनायी. साथ ही छह लाख रुपये का जुर्माना भी लगाया. जुर्माना की राशि जमा नहीं देने पर दोषी को अतिरिक्त छह माह की सजा काटनी होगी. एक फरवरी 2007 को सीबीआइ एसीबी ने लीलिमा के खिलाफ सार्वजनिक धन के दुरुपयोग को लेकर आइपीसी की धारा 409 के तहत मामला दर्ज किया था. 13 नवंबर 2007 को मामले में तीन आरोप-पत्र सीबीआइ के जांच अधिकारी ने अदालत में दायर किया था. जिस पर 18 वर्ष तक चली सुनवाई के बाद शनिवार को सजा सुनायी गयी. सजा तीन वर्ष से कम होने के कारण अदालत से आरोपी को जमानत मिल गयी. 20 मई तक यदि दोषी सीबीआइ अदालत के इस निर्णय को उच्च न्यायालय में चुनौती नहीं देती है, तो फिर यह सजा उन पर लागू हो जायेगी. कुल 27 गवाहों की गवाही और कागजी सबूतों के आधार पर सरकारी पक्ष के वरिष्ठ लोक अभियोजक राकेश कुमार ने मामले में अपनी मजबूत दलील पेश की, जिसके आधार पर आरोपी को दोषी ठहराते हुए सजा सुनायी गयी. गौरतलब है कि अतिरिक्त विभागीय सब पोस्टमास्टर के पद पर लीलिमा घोष की नियुक्ति वर्ष 1999 में हुई थी. नाडिया पोस्टऑफिस में तैनाती के दौरान वर्ष 2004 से 2006 के बीच नाडिया लीलिमा ने करीब 150 ग्राहकों का 5,06,750 रुपये पोस्टऑफिस के खाते में जमा करने के बजाय खुद रख लिए. ग्राहकों के खाते में राशि का उल्लेख किया लेकिन डाकघर के लेखा पुस्तकों में इसका हिसाब नहीं दिया. पैसे का गबन करने की जानकारी मिलने के बाद आसनसोल के वरिष्ट डाक अधीक्षक ने सीबीआइ में शिकायत दर्ज करायी. शिकायत के आधार पर सार्वजनिक पैसे का दुरुपयोग के तहत आइपीसी की धारा 409 में मामला दर्ज हुआ. लोकसेवक के रूप में अपने आधिकारिक पद का दुरुपयोग करके जमाकर्ताओं की राशि गबन करने को लेकर लीलिमा को सस्पेंड कर दिया गया. सीबीआइ ने 11 माह में जांच पूरी करके कुल तीन आरोप-पत्र 13 नवंबर 2007 को जमा कर दिया. 18 वर्ष तक मामले की सुनवाई चली और आखिरकार अदालत ने दोषी को सजा सुनाई.

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