मैं इंदौर से आ रहा था. ए-1 कोच में मेरा बर्थ 28 नंबर पर था. ट्रेन के सभी यात्री सो रहे थे. अचानक ट्रेन में एक के बाद कई झटके लगे. सभी हड़बड़ा गये. मैं बर्थ से नीचे गिर गया. फिर चारों तरफ चीख पुकार मच गयी. मैंने मोबाइल में देखा कि 3:10 बज रहे हैं. कुछ पता नहीं चल रहा था कि क्या हुआ. हर आदमी बदहवास था.
किसी के सिर से खून बह रहा था. कोई रो रहा था. बचाओ-बचाओ की आवाजें आ रही थीं. चारों तरफ घुप अंधेरा. तब तक इतना एहसास हो चुका था कि गाड़ी डिरेल हो गयी है. मैंने 3:12 बजे रेल मंत्री को ट्वीट कर जानकारी दी. लोकेशन पता नहीं चल रहा. प्लीज हेल्प. डेढ़ घंटे तक हम सभी फंसे रहे. भोर में करीब 4.30 बजे रेस्क्यू टीम पहुंची, तब जाकर लोगों को निकाले जाने लगा.
कई लोगों ने तो देखते-देखते मेरे सामने ही दम तोड़ दिया. मुझे कोई खास चोट नहीं लगी है. सबसे ज्यादा नुकसान स्लीपर कोचों को हुआ था, क्योंकि उसमें यात्रियों की संख्या ज्यादा थी. कई लोग वेटिंग टिकट लेकर भी यात्रा कर रहे थे. घटना के काफी देर बाद तक लोगों को समझ में नहीं आ रहा कि कौन सा रास्ता मेन रोड तक जायेगा. फिर कुछ लोगों ने गूगल मैप का सहारा लिया और अपने लोगों के साथ जान बचाते हुए मेन रोड के लिए निकले.

