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”सपा” पर संकट के बादल: पढें, अन्य राजनीतिक परिवारों के कुछ बड़े कलह

लखनऊ : उत्तर प्रदेश में सत्तारूढ़ समाजवादी पार्टी में जारी झगड़े के बीच अब पार्टी के टूटने की आशंका जोर पकड़ती जा रही है. जहां अखिलेश यादव ने आज 415 नेताओं की बैठक बुलाईऔर शिवपाल सहित चार मंत्रियों को बर्खास्त कर दिया है.वहीं, पार्टी महासचिव और अखिलेश के करीबी रामगोपाल यादव ने एक चिट्ठी लिखकर […]

लखनऊ : उत्तर प्रदेश में सत्तारूढ़ समाजवादी पार्टी में जारी झगड़े के बीच अब पार्टी के टूटने की आशंका जोर पकड़ती जा रही है. जहां अखिलेश यादव ने आज 415 नेताओं की बैठक बुलाईऔर शिवपाल सहित चार मंत्रियों को बर्खास्त कर दिया है.वहीं, पार्टी महासचिव और अखिलेश के करीबी रामगोपाल यादव ने एक चिट्ठी लिखकर खलबली मचा दी है.

इधर, रामगोपाल यादव की चिट्ठी से नाराज कुछ बड़े नेताओं ने सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव से आज मुलाकात भी की है. आपको बता दें किसपा ऐसी पहली पार्टी नहीं है जिसमें ऐसा संकट पनपा हो इससे पहले भी कई पार्टियों पर संकट के बादल मंडरा चुके हैं. आइए नजर डालते हैं कुछ प्रमुख राजनीतिक दलों के संकट काल पर….


एनटीआर एवं चंद्रबाबू नायडू

आंध्र प्रदेश के मौजूदा मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री एनटी रामाराव के दामाद हैं. वर्ष 1994 में तेलुगू देशम की सत्ता में वापसी के बाद रामाराव पर उनकी पत्नी लक्ष्मी पार्वती के बढ़ते प्रभाव से सशंकित नायडू, पार्टी में विद्रोह कर मुख्यमंत्री बन बैठे. इस विद्रोह के कुछ दिन बाद ही रामाराव का देहांत हो गया. रामाराव की अन्य संतानों ने भी नायडू की लोकप्रियता और पार्टी पर उनके नियंत्रण के कारण उन्हें चुनौती नहीं दी तथा उनके साथ आ गये. अब नायडू अपने पुत्र लोकेश को आगे बढ़ा रहे हैं, जो रामाराव के एक बेटे नंदमुरी बालाकृष्ण के दामाद भी हैं. लक्ष्मी पार्वती राजनीतिक रूप से अप्रभावी हो चुकी हैं.

बाल ठाकरे एवं राज ठाकरे

बाल ठाकरे द्वारा शिव सेना की राजनीतिक कमान उद्धव ठाकरे को देने से नाराज उनके भतीजे राज ठाकरे ने जनवरी, 2006 में पार्टी से इस्तीफा दे दिया था. उसी वर्ष मार्च में उन्होंने महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के नाम से नयी पार्टी का गठन किया. बाल ठाकरे को अपना आदर्श माननेवाले राज ठाकरे ने कभी उनके विरुद्ध कुछ नहीं कहा, लेकिन वे उद्धव ठाकरे और शिव सेना की लगातार आलोचना करते रहते हैं. विभिन्न राजनीतिक पैंतरों के बावजूद वे शिव सेना के लिए कोई गंभीर राजनीतिक चुनौती नहीं बन सके हैं.

ग्वालियर का सिंधिया घराना

भारतीय राजनीति में इस राजघराने का लंबे समय तक दखल रहा है. सिंधिया परिवार मुख्य रूप से पहले भारतीय जनसंघ और फिर उसके परिवर्तित रूप, भारतीय जनता पार्टी से संबद्ध रहा है. दिवंगत कांग्रेस नेता माधव राव सिंधिया 1971 में पहली बार मध्य प्रदेश के गुना क्षेत्र से जनसंघ सदस्य के रूप में और फिर 1977 में बतौर निर्दलीय लोकसभा में पहुंचे थे. उनकी माता विजयाराजे सिंधिया से अनबन होने पर वे 1980 में कांग्रेस में शामिल हो गये. उनके पुत्र ज्योतिरादित्य सिंधिया भी कांग्रेस में हैं. माधवराव की एक बहन वसुंधरा राजे सिंधिया राजस्थान की मुख्यमंत्री हैं और दूसरी बहन यशोधराराजे सिंधिया मध्य प्रदेश सरकार में मंत्री हैं. यह परिवार आपसी मनमुटाव या विवादों के सार्वजनिक इजहार से परहेज करता है.

करुणानिधि और एमके अलागिरी
तमिलनाडु के प्रभावी नेता और डीएमके प्रमुख करुणानिधि द्वारा अपने दूसरे बेटे एमके स्टालिन को राजनीतिक उत्तराधिकारी घोषित करने से उनके बड़े पुत्र अलागिरी नाराज हैं. दोनों बेटों के नजदीकी नेता एक-दूसरे पर गंभीर आरोप लगाते रहते हैं और समर्थकों के बीच मारपीट की भी कई घटनाएं हो चुकी हैं. करुणानिधि ने एमके अलागिरी को सांसद और मंत्री बना कर तथा पारिवारिक व्यापार में हिस्सेदारी देकर तुष्ट करने की कोशिशें कीं, पर एमके अलागिरी के विरोधी तेवर बरकरार रहे. जनवरी, 2014 में उन्हें पार्टी से बाहर कर दिया गया.

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