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बदल रही है बसपा, अस्तित्व की लड़ाई में समझौतों से परहेज नहीं

।। हरीश तिवारी।। लखनऊ : बसपा बदल रही है. कभी अपने सिद्धातों पर अड़िग रहने वाली बसपा और मायावती अस्तित्व की लड़ाई के लिए किसी से भी समझौता करने को तैयार हैं. भले ही इसके लिए किसी की भी बलि देनी पड़ी. लिहाजा पिछले एक साल के दौरान बसपा में इतने परिवर्तन हुए है, जिसको […]

।। हरीश तिवारी।।

लखनऊ : बसपा बदल रही है. कभी अपने सिद्धातों पर अड़िग रहने वाली बसपा और मायावती अस्तित्व की लड़ाई के लिए किसी से भी समझौता करने को तैयार हैं. भले ही इसके लिए किसी की भी बलि देनी पड़ी. लिहाजा पिछले एक साल के दौरान बसपा में इतने परिवर्तन हुए है, जिसको लेकर पार्टी का कार्यकर्ता भी असमंजस में है. क्योंकि बसपा ने जिन राजनैतिक दलों के खिलाफ लड़ाई लड़ी, वह अब उनसे राजनैतिक गठजोड़ करने जा रही है.
फिलहाल मायावती पार्टी से उन नेताओं को किनारे कर रही हैं जो उसके संभावित गठबंधनों में दिवार बनने की कोशिश कर रहे हैं या फिर अपने किसी बयान से बसपा को मुश्किल में डाल रहे हैं. हाल ही दिनों में बसपा ने दो बड़े नेताओं को किनारे किया. जय प्रकाश सिंह को राहुल गांधी पर किए गये बयानबाजी के बाद पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया जबकि वीर को साइडलाइन कर दिया. जबकि यह दोनों ही बसपा प्रमुख के करीबी लोगों में शुमार थे. इससे पहले बसपा प्रमुख ने अपने भाई आंनद को उपाध्यक्ष के पद से हटाया था.
ताकि पार्टी के कार्यकर्ताओं में यह मैसेज जाए कि पार्टी के भीतर भाईभतीजा बाद नहीं है. क्योंकि आंनद के इस पर नियुक्त होने के बाद विपक्षी दलों ने मायावती को कठघरे में खड़ा शुरू कर दिया था. लोकसभा और विधानसभा चुनाव में पस्त हौसलों के बाद उपचुनाव से लौटे आत्मविश्वास को अब मायावती ऐसे किसी बयानों की आग में नहीं जलाना चाहती हैं, इसलिए उन्होंने एक ओर से सब पर नकेल कसनी शुरू कर दी है. असल में मायावती पिछले दिनों प्रदेश में हुए उपचुनाव के बाद संभावित गठबंधन के लिए किसी भी स्तर तक जाने के लिए तैयार है. क्योंकि बसपा सत्ता से बाहर है. उसकी स्थिति लोकसभा में शून्य है तो विधानसभा में उसके पास महज 19 विधायक हैं.
अगर देखा जाए तो बसपा में मायावती के करीबी रहे कई नेताओं ने विरोधियों के खिलाफ जमकर बयानबाजी की थी और उसके बाद भी वह पार्टी के भीतर बने हुए थे. कुछ समय पहले दयाशंकर सिंह प्रकरण में कभी मायावती के करीबी रहे नसीमुउद्दीन सिद्दीकी ने विवादास्पद बयान दिए थे और उनके ऊपर केस भी दर्ज हुआ था, लेकिन उसके बाद भी सिद्दीकी पार्टी में बने हुए थे और आज कांग्रेस में हैं. फिलहाल मायावती राजस्थान. मध्य प्रदेश और छत्तीगढ़ में कांग्रेस के साथ विधानसभा चुनाव लड़ना चाहती है जबकि लोकसभा के लिए भी वह कांग्रेस के साथ गठजोड़ चाहती है.
इससे कांग्रेस को फायदा हो या ना मायावती को जरूर फायदा होगा. क्योंकि बसपा को कांग्रेस का भी वोट मिलेगा और वह अपने राष्ट्रीय पार्टी होने के तमगे को बचाने में सफल हो जाएगी. राजस्थान में पिछले विधानसभा चुनाव में बसपा के चार विधायक जीते थे जबकि मध्य प्रदेश में पार्टी का अभी तक खाता नहीं खुला है.
वहीं उत्तर प्रदेश जैसे बड़े राज्य में बसपा सपा के साथ संभावित गठजोड़ करने जा रही है. हालांकि अभी तक इस बारे में दोनों की तरफ से कोई ऐलान नहीं किया गया है. लेकिन भाजपा को टक्कर देने के लिए मायावती और अखिलेश यादव साथ आने को तैयार हैं. कई साल पहले लखनऊ के गेस्ट हाउस कांड के बाद सपा और बसपा में दूरी बढ़ गयी थी और फिर दोनों कभी एक साथ नहीं आए. अब मायावती की तरफ से भी पुराने मामलों को दरकिनार कर दिया है. लिहाजा उपचुनाव में बसपा के समर्थन से सपा दो सीट और रालोद एक सीट जीतने में कामयाब रही.

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