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… और इस तरह राज्यसभा की दहलीज पर पहुंचेंगे अनिल अग्रवाल!

हरीश तिवारी लखनऊ : उत्तर प्रदेश में राज्यसभा का चुनाव दिलचस्प हो गया है. यहां राज्यसभा की दस सीटों के चुनाव हो रहा है. आठ सीट पर भाजपा और एक सीट पर सपा के उम्मीदवारों की जीत पक्की है. 10वीं सीट के लिए लड़ाई सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच है. 10वीं सीट के लिए […]

हरीश तिवारी

लखनऊ : उत्तर प्रदेश में राज्यसभा का चुनाव दिलचस्प हो गया है. यहां राज्यसभा की दस सीटों के चुनाव हो रहा है. आठ सीट पर भाजपा और एक सीट पर सपा के उम्मीदवारों की जीत पक्की है. 10वीं सीट के लिए लड़ाई सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच है. 10वीं सीट के लिए बसपा के भीमराव आंबेडकर विपक्ष की तरफ से उम्मीदवार हैं, तो भाजपा ने निर्दलीय अनिल अग्रवाल को समर्थन देकर विपक्ष की राह मुश्किल कर दी है.

शुक्रवार को दसों सीट के लिए मतदान हो रहा है, और ऐसे में सत्ता पक्ष और विपक्ष ने अपने मैनेजरों को जीत के लिए लगा दिया है. हालांकि, इस चुनाव में क्रास वोटिंग की आशंकाओं को नकारा नहीं जा सकता है. बहरहाल एक सरकारी इंजीनियर से सफल कारोबारी तक का सफर तय करनेवाले अनिल अग्रवाल राज्यसभा की दहलीज तक पहुंचेगे या नहीं, यह तो शुक्रवार की शाम को मालूम हो जायेगा.

देश के सबसे बड़े सूबे उत्तर प्रदेश में राज्यसभा चुनाव ने राजनैतिक सरगर्मियां बढ़ा दी हैं. यह चुनाव अगस्त में गुजरात में हुए राज्यसभा चुनाव की तरह दिलचस्प मोड़ में आ गया है. सत्ता पक्ष और विपक्ष ने 10वीं सीट को जीतने के लिए अपनी रणनीति तैयार कर ली है. आठ सीटों पर भाजपा का और एक सीट पर सपा का प्रत्याशी जीतना तय है. अहम लड़ाई 10वीं सीट के लिए भाजपा समर्थित निर्दलीय अनिल अग्रवाल और बसपा के भीमराव आंबेडकर के बीच है. महज दो साल पहले भाजपा ज्वाइन करनेवाले अग्रवाल पर भाजपा ने बड़ा दांव खेला है. वह भाजपा के घोषित प्रत्याशी नहीं हैं, बल्कि भाजपा ने उन्हें समर्थन दिया है. ऐसे में अगर भाजपा जीतती है तो उसकी बल्ले-बल्ले और अगर हारती है तो उसे इसका ज्यादा नुकसान नहीं होगा. क्योंकि भाजपा आसानी से कह सकती है कि उसने अपने विधायकों का समर्थन तो अग्रवाल को दिया था. अगर, अग्रवाल जीत के लिए आंकड़ा नहीं जुटा पाये तो उसकी इसमें कोई गलती नहीं है.

इंजीनियर से राजनेता तक का सफर

अनिल अग्रवाल गाजियाबाद के चर्चित कारोबारी हैं. राजनैतिक गलियारों में उनकी पकड़ का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि महज दो साल पहले भाजपा की सदस्यता लेनेवाले अग्रवाल पर भाजपा ने निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर दांव खेला है. पिछले साल अग्रवाल को यूपी रत्न अवाॅर्ड से सम्मानित किया गया था. 55 साल के इंजीनियर अनिल अग्रवाल बेंगलुरु से सिविल इंजीनियरिंगमें स्नातक हैं और गाजियाबाद में संचालित एचआरआइटी शिक्षण संस्थान के चेयरमैन हैं. अनिल अग्रवाल गाजियाबाद विकास प्राधिकरण में एक्जीक्यूटिव इंजीनियर के पद पर भी रह चुके हैं. वह प्राधिकरण में काॅमर्शियल और विज्ञापन विभाग के प्रमुख थे. सत्ता से नजदीकियों के कारण वह हमेशा ही अहम पदों पर रहे. इसके बाद साल 2006 में उन्होंने वीआरएस लेकर पूरा ध्यान अपने कारोबार में लगाया. अनिल अग्रवाल के पिता हरिश्चंद अग्रवाल शिक्षक थे. वह तीन भाई हैं. मूलरूप से लक्सर हरिद्वार के रहनेवाले अग्रवाल गाजियाबाद में पिछले दो दशक से अधिक समय से रह रहे हैं. एक बेटा अंजुल व एक बेटी प्रियल अग्रवाल हैं. अंजुल कॉलेज प्रबंधन में हैं, जबकि प्रियल एमबीए पास हैं. अग्रवाल ने पिछले साल नगर निगम के मेयर पद के लिए दावेदारी की थी, लेकिन उन्हें भाजपा ने टिकट नहीं दिया. हालांकि, भाजपा के बड़े नेताओं ने उन्हें बड़े पद देने का आश्वासन दिया था. जिसके बाद पार्टी ने उन्हें राज्यसभा सीट के लिए अपना समर्थन दिया.

पूर्व मुख्यमंत्री बाबू बनारसी दास के हैं रिश्तेदार

गाजियाबाद विकास प्राधिकरण के इंजीनियर अनिल अग्रवाल दिवंगत कांग्रेसी नेता अखिलेश दास के रिश्तेदार हैं. अग्रवाल यूपी के पूर्व सीएम स्व बाबू बनारसी दास के रिश्तेदार भी हैं. स्व बाबू बनारसी दास की पोती के साथ अनिल अग्रवाल का विवाह हुआ है. राजनीति में भाग्य आजमाने के लिए उन्होंने 2014 में शिक्षक क्षेत्र से एमएलएसी का चुनाव लड़ा, हालांकि वह हार गये थे. अग्रवाल के कांग्रेसी नेताओं से भी अच्छे संबंध बताये जाते हैं. हालांकि इसका लाभ उन्हें कितना मिलेगा यह तो आनेवाला वक्त ही बतायेगा.

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