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बसपा को आशा की नयी किरण दे गया नगरीय निकाय चुनाव

लखनऊ : उत्तर प्रदेश नगरीय निकाय निर्वाचन में पहली बार अपने चुनाव चिह्न पर मैदान में उतरने का बहुजन समाज पार्टी (बसपा) का दांव कामयाब हो गया. नगर निकाय चुनाव से लोकसभा तथा विधानसभा चुनाव में करारी हार से बेजार इस पार्टी में नये उत्साह का संचार हुआ है. बसपा के एक वरिष्ठ नेता ने […]

लखनऊ : उत्तर प्रदेश नगरीय निकाय निर्वाचन में पहली बार अपने चुनाव चिह्न पर मैदान में उतरने का बहुजन समाज पार्टी (बसपा) का दांव कामयाब हो गया. नगर निकाय चुनाव से लोकसभा तथा विधानसभा चुनाव में करारी हार से बेजार इस पार्टी में नये उत्साह का संचार हुआ है. बसपा के एक वरिष्ठ नेता ने कहा कि उनकी पार्टी के लिए हाल में हुए नगरीय निकाय चुनाव के परिणाम बेहद उत्साहवर्द्धक हैं. पार्टी ने ना सिर्फ मेरठ और अलीगढ़ में महापौर के चुनाव में जीत हासिल की बल्कि, नगर पालिकाओं और नगर पंचायतों में भी उसका प्रदर्शन अच्छा रहा. मालूम हो कि नगरीय क्षेत्रों में बसपा की पकड़ आमतौर पर मजबूत नहीं मानी जाती है. ऐसे में दो महापौर पद जीतना इस पार्टी के लिए खासा मायने रखता है.

नेता ने बताया कि बसपा नेतृत्व ने एक रणनीति के तहत निकाय चुनाव में अपने चिह्न पर मैदान में उतरने का निर्णय लिया था. पार्टी आलाकमान का मानना था कि वर्ष 2014 के लोकसभा और इस साल के शुरू में हुए विधानसभा चुनाव में पार्टी को मिली करारी हार से टूटे कार्यकर्ताओं के मनोबल में नयी जान फूंकने के लिए फिर से नये जोश और उत्साह के साथ काम किया जाना चाहिए. इसके लिए जमीनी स्तर पर पार्टी को पकड़ बनानी होगी. हालांकि, नगर निकाय चुनाव में भाजपा का प्रदर्शन सबसे अच्छा रहा, लेकिन बसपा ने अपेक्षाकृत मजबूत मानी जा रही सपा समेत सभी विरोधी दलों को चौंकाते हुए मेरठ तथा अलीगढ़ के महापौर पदों पर कब्जा कर लिया. इसके अलावा उसके प्रत्याशियों ने झांसी, आगरा तथा सहारनपुर के महापौर पद के चुनाव में भी भाजपा को कड़ी टक्कर दी. सहारनपुर में तो बसपा के हाथों से जीत महज दो हजार मतों से फिसल गयी. सपा और कांग्रेस प्रदेश में महापौर की 16 में से एक भी सीट नहीं जीत सकीं.

भाजपा ने निकाय चुनावों में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की अगुवाई में जहां अपनी पूरी ताकत झोंक दी थी. वहीं, बसपा ने अपने प्रांतीय नेताओं पर ही भरोसा किया था. भाजपा के मुकाबले बसपा के किसी भी बड़े नेता ने प्रचार कार्य में हिस्सा नहीं लिया. पार्टी मुखिया मायावती ने प्रचार कार्य से दूरी बनाये रखी. राजनीतिक प्रेक्षकों के मुताबिक, नगरीय निकाय चुनाव में दलित-मुस्लिम समीकरण ने बसपा को कामयाबी दिलायी है. प्रदेश के पश्चिमी हिस्सों में बसपा का जनाधार बढ़ने से खासकर सपा के लिए मुश्किल खड़ी हो सकती है.

पार्टी के अंदरुनी सूत्रों के मुताबिक, नगरीय निकाय चुनाव ने बसपा को एक राह दिखायी है, जो वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव के मद्देनजर बेहद महत्वपूर्ण है. निकाय चुनाव से यह साबित हुआ है कि मतदाता अब भी बसपा को पसंद करते हैं. हालांकि, पार्टी दूसरे दलों से सम्मानजनक गठबंधन के दरवाजे अभी बंद नहीं कर रही है. राजनीतिक जानकारों के मुताबिक, प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार द्वारा अवैध बूचड़खाने बंद किये जाने की वजह से खासकर पश्चिमी इलाकों के प्रभावशाली मांस कारोबारियों ने बसपा का समर्थन किया. पश्चिमी इलाकों में मांस के कारोबार से जुड़े कुरैशी लोगों की खासी तादाद है. माना जा रहा है कि इस बिरादरी समेत ज्यादातर मुसलमानों का वोट बसपा को ही मिला है.

Prabhat Khabar Digital Desk
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