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Ganesh Chaturthi : पांच दाल, गेहूं- चावल से बन रहे इको फ्रेंडली गणेश, कारीगरों की कलाकारी देख ठहर जा रही नजर

यह मूर्तियां मिट्टी से तैयार की जाती है साथ ही इसमें दाल, चावल, गेहूं भी मिलाया जाता है, जिससे नदी में विसर्जन के बाद मिट्टी बह जाए और दाल, चावल, गेहूं मछलियों के लिए काम आएं,

अलीगढ़. : घर-घर गणपति बप्पा विराज रहे हैं. गणेश चतुर्थी पूजा को लेकर खूब क्रेज है. गणेश चतुर्थी के पावन अवसर पर एक दूसरे को बधाई संदेश भेजे जा रहे हैं. अलीगढ़ में अलीगढ़ में पांच तरह की दाल, गेहूं और चावल के इको फ्रेंडली गणेश की प्रतिमाएं सभी को लुभा रही हैं. राजस्थानी आर्टिस्टों द्वारा राममंदिर का स्वरूप भी आकर्षित कर रहा है. अलीगढ़ में गणेश चतुर्थी को देखते हुए इको फ्रेडली मूर्ति तैयार हो रही है. यह मूर्तियां मिट्टी से तैयार की जाती है साथ ही इसमें दाल, चावल, गेहूं भी मिलाया जाता है, जिससे नदी में विसर्जन के बाद मिट्टी बह जाए और दाल, चावल, गेहूं मछलियों के लिए काम आएं, पुरानी परंपरा को लेकर पर्यावरण प्रेमी मूर्तियां तैयार करने में और लोगों को जागरूक करने में लगे हैं. केमिकल की से तैयार होने वाली पीओपी की मूर्तियां जलचर और नदियों के लिए बेहद खतरनाक है.

समाज सेवा के रूप में कार्य करने वाले सुरेंद्र कुमार शर्मा ने जानकारी देते हुए बताया कि गणेश की मूर्ति कोई शोपीस या खिलौना नहीं है, पूरे मार्केट में पीओपी की मूर्तियां सजी हुई हैं, राजस्थानी लोग यहां आकर पीओपी की मूर्तियां बनाते हैं, वहीं पिछले पांच साल से लोगों में जन जागृति अभियान चलाए हुए हैं, क्योंकि पीओपी की मूर्तियों में केमिकल होता है और केमिकल से बनी मूर्तियां गलती नहीं है, लेकिन हिंदुत्व परंपरा के अनुसार हम काम करते हैं हमारे जो ग्रह हैं, मिट्टी से तैयार की गई इन मूर्तियों में अनाज मिलवाते हैं, विसर्जन के दौरान यह होता है कि मिट्टी गल जाती है और दाल व अनाज जलचरों का भोजन बन जाता है. इससे एक फायदा तो यह होगा कि जन जागृति आएगी और पुरानी परंपरा पर वापस आएंगे, जितने भी ज्यादा जलचर नदी में होते हैं. उतनी ही ज्यादा ऑक्सीजन होती है, पुराने समय में जितनी भी मिट्टी की मूर्तियां रखी जाती थी. उन सब के साथ अनाज रखने की परंपरा होती थी, यह परंपरा इसलिए बनाई गई थी, कि हमारे जितने भी जल स्रोत है वह जीवित रहे, नदियां, तालाब मूर्ति विसर्जन करने के काम में आया करती थी, हम पुरानी परंपरा को जीवित कर लोगों को जागरुक कर रहे हैं.

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मूर्ति बनाने वाली कारीगर लाडो ने जानकारी देते हुए बताया है कि इको फ्रेंडली मूर्ति बना रहे हैं, यह मूर्तियां मिट्टी से तैयार होती हैं, गणेश चतुर्थी का त्यौहार है, इन मूर्तियों में पांच तरीके की दाल, गेहूं, चावल डाले हैं और जो पीओपी की मूर्तियां हैं. उनसे पर्यावरण को नुकसान होता है.मिट्टी की मूर्ति पानी में गल जाती है और पीओपी नहीं गल पाती है, पीओपी से काफी नुकसान है. इससे गंगा नदी में जलचर मर जाते हैं, इन मूर्तियों से यह फायदा होता है कि मिट्टी गल जाती है और अनाज को जलचर खा लेते हैं. बचपन से मूर्ति का कारोबार करते आ रहे बुजुर्ग कारीगर छोटेलाल ने जानकारी देते हुए बताया है कि हम गणेश जी की मूर्ति बचपन से बनाते हैं. इन मूर्तियों में हम दाल, चावल मिलते हैं, यह मूर्तियां गंगा में जब विसर्जन होती है तो मिट्टी बह जाती है और दाल मछलियों के काम आ जाती है, जल में जो जानवर हैं . वह चावल, दाल खा जाते हैं, इको फ्रेंडली गणेश बना कर बेचते हैं, इस तरह की मूर्तियां लंबे अरसे से बनाते आ रहे हैं. दिवाली के साथ-साथ अन्य त्योहारों के लिए भी मूर्तियां बनाते हैं. अब गणेश चतुर्थी को देखते हुए गणेश की मूर्तियां तैयार कर रहे हैं, इन मूर्तियों को बनाने के लिए हमारा पूरा परिवार लगा रहता है.

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Ganesh chaturthi : पांच दाल, गेहूं- चावल से बन रहे इको फ्रेंडली गणेश, कारीगरों की कलाकारी देख ठहर जा रही नजर 2
नदियों को जीवंत करने की सनातनी परंपरा

नदियों को जीवंत करने के लिए हमारी यह सनातन परंपरा है. मिट्टी की मूर्तियों की पूजा करना उनका विसर्जन करना इसी परंपरा को हम आगे बढ़ाते हुए जन जागृति ला रहे हैं, ताकि लोग नदियों में पीओपी की मूर्ति न विसर्जित करें. पीओपी की मूर्तियां नदियों में विसर्जित करने से नदियां प्रदूषित होती है, क्योंकि पीओपी की मूर्तियों में केमिकल वाले रंग होते हैं. केमिकल वाले रंग से नदियों की सतह खराब हो जाती है जिससे मछलियां मर जाती हैं.

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राजस्थान से आये मूर्ति कारीगर गणेश प्रतिमा की सुंदर मूर्तियां बना रहे हैं. अलीगढ़ में कई जगहों पर सड़क के किनारे खूबसूरत गणेश प्रतिमाएं देखी जा सकती हैं. शहर के साथ ही अब देहात इलाकों में भी गणेश चतुर्थी धूमधाम से मनाई जा रही है. सासनी गेट स्थित आगरा रोड पर सड़क के किनारे राजस्थान से आए नौ लोगों का परिवार पिछले 12 सालों से यहां मूर्ति तैयार कर बेच रहे हैं. इस बार 300 से अधिक मूर्ति गोविंद ने तैयार की है. पिछले चार महीने से यह लोग मूर्ति तैयारी शुरू कर देते हैं. इस बार गणेश प्रतिमा में राम मंदिर और भगवान राम के भी दर्शन करने को मिलेंगे. गणेश प्रतिमा में ही अयोध्या का मंदिर और भगवान राम का चित्रण किया गया है. मूर्ति कारीगरों ने बताया कि मूर्ति बनाने में लगने वाला कलर महंगा हो गया है. लेकिन मूर्ति का रेट नहीं बढ़ा है. मूर्ति कारीगरों ने बताया कि केवल मजदूरी ही मिल पाती है. जिससे परिवार चलते हैं.

15 हजार रुपये तक की गणेश प्रतिमा

राजस्थान से आए मूर्ति कारीगर गोविंद ने बताया कि पिछले 14 साल से मूर्ति बना रहे हैं. जैसा कस्टमर आता है उसी के हिसाब से मूर्ति बनाई जाती है. यहां 100 रुपये से लेकर 15 हजार रुपए तक की मूर्तियां बनाई गई है. मूर्ति पिछले तीन महीने से लगकर तैयार की जाती है. गोविंद ने बताया कि मूर्ति में लगने वाला कलर महंगा हो गया है, लेकिन मूर्ति का रेट नहीं बढ़ता है. उससे कम ही रुपये देकर ग्राहक जाता है. गोविंद ने बताया कि मूर्ति बनाने के लिए मिट्टी राजस्थान से ही मंगाई जाती है . वही अलीगढ़ से दूर दूसरे जनपदों में भी मूर्ति बेचने के लिए सप्लाई की जाती है.

राजस्थान से आये कारीगर बना रहे प्रतिमा

गोविंद ने बताया कि अब रंग बिरंगे स्टाइल में ही गणेश प्रतिमा बनाई जाती है. इस बार गणेश प्रतिमा में खासियत है कि राम मंदिर और भगवान श्री राम को भी जगह दी गई है. वही महाराष्ट्र में भी सिंपल कलर की गणेश प्रतिमाएं बनती है, लेकिन राजस्थान की मूर्ति को यूपी के लोगों में नहीं पसंद किया जाता है. गोविंद बताते हैं कि हर साल हम यहां मूर्ति बेचने आते हैं. बड़ी मूर्तियां कम बिक रही है. छोटी मूर्तियां ही लोग ले जा रहे हैं क्योंकि गंगा नदी में विसर्जन नहीं करने दिया जा रहा है. इसलिए बिक्री कम हो रही है. गोविंद ने कहा कि अगर मूर्तियां नहीं बिकी तो फिर एक साल के लिए सुरक्षित रखनी पड़ती है. इन मूर्तियों को सुरक्षित रखने के लिए भाड़े पर जगह ली जाती है.

मूर्ति बनाने की सामग्री हुई मंहगी

सुनील कुमार भी अपने नौ सदस्यों के साथ आगरा रोड पर मूर्ति बना रहे हैं. सुनील भी अपने पारिवारिक सदस्यों के साथ राजस्थान के उटयपुर से आए हैं. सुनील बताते हैं कि हर साल गणेश प्रतिमाओं में थोड़ा बदलाव होता है. मूर्तियां अलग-अलग डिजाइन और कलर से डेकोरेट करते हैं. देहात क्षेत्र में भी मूर्तियां सप्लाई की जाती है. उन्होंने बताया कि मूर्ति में लगने वाला कलर महंगा हो गया. मूर्ति बनाने का मटेरियल भी महंगा हो गया है. केवल मजदूरी ही मिल पाती है. मूर्ति का दाम नहीं बढ़ा है. उन्होंने बताया कि ज्यादा पैसे नहीं मिल पाते है. पिछले चार महीने से गणेश प्रतिमा बनाने में जुटे हैं. उन्होंने बताया कि हम अपने घर और खेती-बाड़ी छोड़कर मेहनत का काम कर गुजारा कर रहे हैं. सुनील बताते हैं कि हम लोग सड़क के किनारे खाली जगह पर बसेरा करते हैं. जहां पर बिजली और पानी की व्यवस्था नहीं होती है. जिसके चलते दिक्कत होती है. सुनील ने बताया कि गणपति महोत्सव के बाद नवरात्रि और शेरो वाली माता की मूर्ति बनाई जाएगी. उसके बाद दीपावली से संबंधित लक्ष्मी गणेश की मूर्ति बनायेंगे.

11 दिनों तक रहती है धूम

वहीं, मूर्ति खरीदने आए शरद ने बताया की मूर्तियां अच्छी है. हर साल गणेश उत्सव मनाते हैं. उन्होंने बताया कि राजस्थान से आए लोगों का कलेक्शन अच्छा है. ध्रुव पाल सिंह ने बताया कि सड़क के किनारे गणेश प्रतिमाएं बनाते हैं जो देखने में काफी अच्छी लगती है. अलीगढ़ में लोग धूमधाम से गणेश चतुर्थी मनाते हैं. लोग मूर्तियां खरीद कर ले जाते हैं. अलीगढ़ में 11 दिनों तक गणेश चतुर्थी की धूम रहती है. लोग पूजा पाठ, भजन कीर्तन , डीजे के साथ भंडारा करते है.

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