31.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Trending Tags:

Advertisement

गहड़वाल वंश ने की थी महापर्व छठ की शुरुआत, स्वास्थ्य के लिहाज से भी है खास, रिसर्च में कई चौंकाने वाले खुलासे

महापर्व छठ 8 नवंबर को नहाय खाय के साथ शुरू हो गया, लेकिन बहुत कम लोग जानते हैं कि यह पर्व सिर्फ आस्था ही नहीं बल्कि लोगों के स्वास्थ्य से भी जुड़ा है. पढ़ें ये खास रिपोर्ट....

Varanasi News: नेम-निष्ठा और लोक आस्था का महापर्व छठ सोमवार, 8 नवंबर से नहाय खाय के साथ शुरू हो गया. हर साल की तरह इस साल भी काशी में छठ पर्व को लेकर लोगों में उत्साह है. छठ पर्व की तैयारी दीपावली त्योहार के बाद ही शुरू हो जाती हैं. छठ पूजा की तैयारियां काशी में जोरों पर हैं और इसके लिए घाटों की साफ-सफाई की जा रही है. आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि छठ की शुरुआत सबसे पहले बनारस में हुई थी.

दरअसल, 11वीं शताब्दी में गहड़वाल वंश के राजाओं ने बनारस से सूर्य की पूजा शुरू की थी. इस शोध की पुष्टि काशी हिंदू विश्वविद्यालय में भूगोल विभाग के प्रोफेसर राणा पीबी सिंह ने की है. डाला छठ पूजा के महत्व से हर कोई वाकिफ है, सूर्य उपासना का इतना बड़ा पर्व काशी के लिए उत्सव और आस्था धर्म से बंधा एक अनूठा संगम है.

काशी हिंदू विश्वविद्यालय में भूगोल विभाग के प्रोफेसर राणा पीबी सिंह ने बताया कि, काशी गहड़वालों की प्रमुख केंद्र थी. इन्हें सूर्य देव का घोर उपासक भी कहा जाता है. गहड़वाल वंश से पहले सूर्य की पूजा भारत में ऋग्यवैदिक काल से हो रही है. ऋग्वेद में सूर्य की पूजा मां के रूप में की जाती है. वहीं, 9वीं शताब्दी में भी छठ पूजा का छिटपुट उल्लेख मिलता है.

Also Read: Chhath Puja 2021: छठ महापर्व का अनुष्ठान आज से शुरू, सुलतानगंज में डेढ़ लाख श्रद्धालुओं ने किया गंगा स्नान

काशीखंड के अनुसार, बनारस के बाद छठ पूजा का चलन देश में बढ़ता चला गया. पानी में आधे कमर तक उतर कर आयुर्वेदिक पद्धति से, विज्ञान और व्रत का पालन करते हुए इस पूजा की विधिवत शुरुआत गहड़वाल वंश के राजाओं ने यहीं से की. इसके बाद छठ पूजा आज तक जारी है. बनारस में स्थित सूरजकुंड में सूर्य का प्रकाश सबसे अधिक तीव्रता के साथ आता है. कुंड के पास ही गोल चक्र में एक सूर्य मंदिर है. यहां पर हर रविवार को मेला लगता है, मगर छठ पूजा करने के लिए तो आध्यात्मिक और वैज्ञानिक दोनों तरह से यह देश का सबसे बेहतर स्थान है.

Also Read: Chhath Puja 2021 Geet: छठ पर्व पर सबसे ज्यादा बजने वाले गानों की लिस्ट, यहां देखें

यहां पर सूर्य की रोशनी में स्नान करने पर कुष्ठ रोग से भी राहत मिलती है. छठ पूजा के इतिहास का समर्थन करता बनारस का सूरज कुंड वाराणसी के गोदौलिया-नई सड़क पर सनातन धर्म इंटर कॉलेज के पास स्थित है. ऐसा कहा जाता है कि काशी का नाम कॉस्मॉस से पड़ा है. इसका मतलब है सूरज की ओर से आने वाली प्रकाश की किरणें. उन्होंने बताया कि सूर्य की ओर से आने वाली किरणों का सबसे अधिक प्रभाव काशी में इसी समय देखा जाता है. इस समय पराबैंगनी किरणें हानिकारक नहीं, बल्कि स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद साबित होती हैं.

Also Read: Chhath Puja 2021: छठ पूजा में सूप का है विशेष महत्व, जानें इसके पीछे क्या है कारण

इस वक्त के पर्यावरणीय माहौल में प्रकाश की किरणों का घनत्व बढ़ जाता है. जोकि शरीर के लिए लाभकारी है. यदि ये किरणें पानी से टकराकर हमारे शरीर को स्पर्श करती हैं, तो उनका प्रवाह शरीर में एनर्जी की तरह से होता है. यहां पर जल और सूर्य का मिलन होता है.

विज्ञानियों ने भी इस बात की पुष्टि की है कि, सूर्य की रोशनी से मैग्नेटिक फोर्स का असर जहां -जहां ज्यादा रहा वहीं-वहीं पर ये मंदिर बनाए गए हैं. पूरे भारत भर में सूर्य देव के मुख्य रूप से 7 मंदिर हैं. इनमें से 3 बिहार में स्थित हैं. ये मंदिर ऐसे ही नहीं बनाए गए बल्कि जिन स्थानों पर सूर्य की रोशनी से मैग्नेटिक फोर्स का असर ज्यादा रहा वहीं-वहीं पर ये मंदिर बनाए गए हैं. यह बात प्रो. सिंह ने अपने रिसर्च में भी बताई है.

रिपोर्ट- विपिन सिंह

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें