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अब दालों को बचाने के लिए नहीं पड़ेगी जहरीले केमिकल की जरूरत, BHU के प्रोफेसर ने तैयार की हर्बल दवा

काशी हिंदू विश्वविद्यालय के वैज्ञानिक प्रो. नवल किशोर ने दाल-दलहन को कीड़े और घुन से बचाने के लिए हर्बल दवा तैयार की है. उन्होंने अपनी इस दवाई का भारत सरकार से पेटेंट भी करा लिया है. यह दवा लंबे समय तक स्टोरेज रखने वाली दालों को कीड़े, घुन और फफूंद से खराब होने से बचाएगी.

Varanasi News: दाल-दलहन में कीड़े घुन लगने की समस्या आम है. लोग जहरीले केमिकल का प्रयोग कर इन्हें खराब होने से बचाते हैं, जोकि अनाज और उसे खाने वालों के लिए बेहद नुकसानदायक साबित होते हैं. लेकिन अब इस समस्या का समाधान मिल गया है. काशी हिंदू विश्वविद्यालय के वैज्ञानिक प्रो. नवल किशोर ने हर्बल दवा तैयार की है. उन्होंने अपनी इस दवाई का भारत सरकार से पेटेंट भी करा लिया है. यह दवा लंबे समय तक स्टोरेज रखने वाली दालों को कीड़े, घुन और फफूंद से खराब होने से बचाएगी. आइए इस दवा के बारे में विस्तार से जानते हैं.

अजवाइन और लेमन ग्रास के रस से तैयार की दवा

दरअसल, इस दवा को अजवाइन और लेमन ग्रास के रस से तैयार किया गया है. प्रोफेसर नवल किशोर दुबे अभी तक अपने 28 छात्रों को पीएचडी करा चुके हैं. इसके अलावा 4 उत्पादों का पेटेंट भी करा चुके हैं. दुबे ने बताया कि काशी हिंदू विश्वविद्यालय में लगे लेमन ग्रास के पौधे और अजवाइन के रस से इस हर्बल दवा को तैयार किया है. उनका दावा है कि इस हर्बल दवा में एंटी कैंसर गुण हैं. इसमें माइकोटॉक्सिन पाया जाता है, जो कि शरीर में पैदा होने वाले कैंसर को रोकता है. पेटेंट होने के बाद अब टेक्नोलॉजी को ट्रांसफर करने के प्रोसेज में है. जल्द ही, ये हर्बल दवा बाजार में उपलब्ध होगी.

जहरीले रसायन की नहीं पड़ेगी जरूरत

उन्होंने बताया कि ‘अनाज को कीड़ों से बचाने के लिए हम कपड़े में जहरीले रसायन लपेटकर रखते हैं. जो अनाज और उसे खाने वालों के लिए नुकसानदायक हैं. दवा के असर वाले कीड़े अगर अनाज में लग जाएं तो इन्हें खाने से कैंसर भी हो सकता है. इन सारी बातों का विशेष ध्यान रखकर ही इस दवा को तैयार किया गया है. प्रो दुबे ने बताया कि करीब एक साल तक कई तरह के अनाज में इस दवा को रखकर देखा गया. नतीजा ये रहा कि वो अनाज खराब नहीं हुए. हालांकि ये दवा दालों पर ज्यादा कारगर साबित हुई.

भारत में स्टोर करने पर 20 से 25 फीसदी दाल होती हैं खराब

उन्होंने बताया कि, इस शोध (Research) को करने का आइडिया तब आया जब वह एक दूसरे शोध पर काम कर रहे थे. उन्होंने कहा कि, ‘एक दिन लैब में मैं लेमन ग्रास और अजवाइन के पौधे के रस को मिलाकर थर्ड कंपाउंड बना रहा था. उससे कुछ खुशबू निकली. कुछ दिन शोध (research) करते हुए देखा कि पहले जो अनाज सड़ जाते थे, उनमें होने वाला नुकसान धीरे-धीरे कम होता जा रहा है. फिर मैंने सोचा कि भारत में दालों को स्टोर करने पर 20 से 25 फीसदी दाल खराब हो जाती है.

उन्होंने कहा कि, देखा जाए तो उपज कम होने से ज्यादा दालों के खराब होने से सप्लाई पर असर पड़ता है. अरहर, मूंग और उड़द की दालें, इन्हीं कारणों से 100 से 150 रुपए किलो तक बिकती हैं. ये बोझ आदमी को उठाना होता है. इसलिए इस दवा को बनाने का विचार आया.

रिपोर्ट- विपिन सिंह

Prabhat Khabar News Desk
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