इसने कहा, ‘‘इस्लामिक कानून व्यक्ति को मुख्य रुप से शादी तब खत्म करने की इजाजत देता है जब पत्नी का चरित्र खराब हो, जिससे शादीशुदा जिंदगी में नाखुशी आती है. लेकिन गंभीर कारण नहीं हों तो कोई भी व्यक्ति तलाक को उचित नहीं ठहरा सकता चाहे वह धर्म की आड लेना चाहे या कानून की.’ अदालत ने 23 वर्षीय महिला हिना और उम्र में उससे 30 वर्ष बडे पति की याचिका खारिज करते हुए यह टिप्पणी की. हिना के पति ने ‘‘अपनी पत्नी को तीन बार तलाक देने के बाद’ उससे शादी की थी.
क्या उनका निजी कानून इन दुर्भाग्यपूर्ण पत्नियों के प्रति इतना कठोर रहना चाहिए? क्या इन यातनाओं को खत्म करने के लिए निजी कानून में उचित संशोधन नहीं होना चाहिए? न्यायिक अंतरात्मा इस विद्रूपता से परेशान है?’ अदालत ने टिप्पणी की, ‘‘आधुनिक, धर्मनिरपेक्ष देश में कानून का उद्देश्य सामाजिक बदलाव लाना है. भारतीय आबादी का बडा हिस्सा मुस्लिम समुदाय है, इसलिए नागरिकों का बडा हिस्सा और खासकर महिलाओं को निजी कानून की आड में पुरानी रीतियों और सामाजिक प्रथाओं के भरोसे नहीं छोड़ा जा सकता.’

