चक्रधरपुर : पश्चिमी सिंहभूम की बड़ी मसजिदों में एक मदीना मसजिद बंगलाटांड भी है. चक्रधरपुर की सबसे घनी मुसलिम आबादी में यह मसजिद अवस्थित है. वार्ड संख्या 13, 14 व 15 के लोग इस मसजिद में नमाज अदा करते हैं.
1964 तक बंगलाटांड में मात्र 13 घर की आबादी हुआ करती थी. ये लोग मदरसा में नमाज अदा करते थे. तत्कालीन मदरसा के मुअल्लीम मास्टर मो अजीम साहब इन लोगों को नमाज पढ़ाया करते थे.
बंगलाटांड निवासी हाजी मो समी साहब बताते हैं कि 1950 के आसपास से मदरसा में नमाज शुरू की गयी थी. 1964-65 तक उसी मदरसा में नमाज पढ़ा करते थे. 1965 में मसजिद बनाने के लिए मोहल्ला के लोग एक मंच पर आये. इनमें तत्कालीन सदर हाजी मो हनीफ साहब, मो निजामुद्दीन उर्फ फेकु, मो जमालुद्दीन, मो जान सौदागर उर्फ बित्ता मियां, मो हुसैन, अब्दुल रहमान होटल वाले, उसके पिता मो इस्माइल, अब्दुल हमीद उर्फ लुच्चू मियां, अब्दुल हमीद झलाई वाले, बाबू कुरैशी, मो शमसुद्दीन उर्फ चमटु कुरैशी, मो लतीफ सौदागर व अन्य शामिल थे.
मुहल्ला के इन पुराने लोगों ने एक अजीम जलसा का आयोजन करवाया. जिसमें पीर साहब मौलाना शाह अब्दुल हक काठियावारी, आजमगढ़ को बुलाया गया. जलसा के दौरान ही मसजिद निर्माण के लिए हंगामी चंदा किया गया. जिसमें शहर के लोगों ने काफी बढ़–चढ़ कर हिस्सा लिया. अब्दुल रज्जाक साहब उर्फ मुन्नू मियां ने मसजिद के लिए जमीन वक्फ किया.
फिर पीर साहब के हाथों से मसजिद की बुनियाद रखी गयी. मालूम रहे कि जामा मसजिद सिमिदीरी का बुनियाद भी पीर साहब ने ही रखा था. शुरू में मसजिद का अंदर का हॉल व बरामदा का निर्माण किया गया.
यह मसजिद प्रारंभ से ही पक्की बनी थी. बाद में जैसे–जैसे मोहल्ले की आबादी बढ़ती गयी मसजिद का भी विस्तार किया जाता रहा. सेहन की तामीर की गयी और छत के ऊपर नमाज पढ़ने के लिए जगह बनायी गयी. आबादी अधिक होने से नमाज में सबों को जगह नहीं मिल पाती है.
ईद–बकरीद के लिए दो जमाअत करनी पड़ती है. मसजिद को दो मंजिला बनाने का प्रस्ताव है. मसजिद में अच्छा वजूखाना बनाये जाने की सख्त जरूरत है. इसमें पांच सौ से अधिक लोग एक साथ नमाज अदा कर सकते हैं.
मुसलिम पंचायत बंगलाटांड के अधीन ही मसजिद का संचालन किया जाता है. 2007-08 से मदरसा तनवीरूल इस्लाम व मदीना मसजिद का संचालन अंजुमन फलाहुल मुसलेमीन के अधीन हो रहा है.