खरसावां.
इस वर्ष पवित्र कार्तिक पूर्णिमा या रास पूर्णिमा का पर्व बुधवार को मनाया जायेगा. इस अवसर पर सरायकेला-खरसावां जिले के विभिन्न क्षेत्रों में ओड़िया समुदाय के लोग पारंपरिक ‘बोइत बंदाण’ उत्सव मनायेंगे. इस उत्सव को लेकर अनेक किंवदंतियां प्रचलित हैं, कुछ धार्मिक आस्थाओं से जुड़ी हैं तो कुछ ऐतिहासिक घटनाओं पर आधारित हैं. ‘बोइत बंदाण’ ओड़िया समुदाय के समृद्ध समुद्री व्यापार इतिहास की स्मृति में मनाया जाने वाला प्राचीन पर्व है. इस दिन समुदाय के लोग ब्रह्ममुहूर्त में नदी या जलाशयों में स्नान कर सदियों पुरानी परंपरा का निर्वाह करते हैं. केले के पेड़ के छिलके से बनी नाव नदी में प्रवाहित की जाती हैं, वहीं कई लोग थर्मोकोल से रंग-बिरंगी नाव भी बनाकर प्रवाहित करते हैं.नदी में नाव प्रवाहित करने की परंपरा
ओड़िया संस्कृति के जानकार प्रो. अतुल सरदार के अनुसार, प्राचीन काल में ओड़िया व्यापारी समुद्री मार्ग से विशाल जलपोतों में सवार होकर देश-विदेश में व्यापार किया करते थे. प्रसिद्ध मान्यताओं के अनुसार, वे ओडिशा से जावा, सुमात्रा, इंडोनेशिया, बोर्नियो और श्रीलंका जैसे द्वीपों तक व्यावसायिक यात्रा पर जाते थे. वर्षा ऋतु के दौरान यह समुद्री व्यापार रुक जाता था और कार्तिक पूर्णिमा के दिन इस यात्रा की पुनः शुरुआत की जाती थी. यात्रा की सफलता और सुरक्षा के लिए उस दिन विशेष पूजा की परंपरा थी. कहा जाता है कि समुद्री यात्रा पर निकले पुरुषों की सकुशल वापसी की कामना में घर की महिलाएं ‘बोइत बंदाण’ पर्व मनाती थीं. यह सदियों पुरानी परंपरा आज भी जीवित है और अब भी लोग परिवार की सुख-शांति और समृद्धि की कामना के साथ इस पर्व को धूमधाम से मनाते हैं.
जिले में उत्साहपूर्वक मनाया जाता है ‘बोइत बंदाण’ उत्सव
सरायकेला, खरसावां, राजनगर, सीनी समेत ओड़िया बहुल क्षेत्रों में ‘बोइत बंदाण’ उत्सव की तैयारियां चरम पर हैं. लोग अपने-अपने तरीके से नाव तैयार कर रहे हैं. कोई कागज की कश्तियां बना रहा है, तो कोई थर्मोकोल से आकर्षक नाव सजा रहा है. पारंपरिक रूप से केले के पेड़ के छिलके से नाव बनाकर उन्हें नदी में प्रवाहित करने की तैयारी भी जोरों पर है.
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