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शुभ कार्य शुरू करने का सबसे महत्वपूर्ण दिन है अक्षय तृतीया
अक्षय तृतीया को अनंत-अक्षय-अक्षुण्ण फलदायक कहा जाता है. जो कभी क्षय नहीं होती उसे अक्षय कहते हैं. कहते हैं कि इस दिन जिनका परिणय-संस्कार होता है उनका सौभाग्य अखंड रहता है. इस दिन महालक्ष्मी की प्रसन्नता के लिए भी विशेष अनुष्ठान होता है जिससे अक्षय पुण्य मिलता है. इस दिन बिना पंचांग देखे कोई भी […]
अक्षय तृतीया को अनंत-अक्षय-अक्षुण्ण फलदायक कहा जाता है. जो कभी क्षय नहीं होती उसे अक्षय कहते हैं. कहते हैं कि इस दिन जिनका परिणय-संस्कार होता है उनका सौभाग्य अखंड रहता है. इस दिन महालक्ष्मी की प्रसन्नता के लिए भी विशेष अनुष्ठान होता है जिससे अक्षय पुण्य मिलता है.
इस दिन बिना पंचांग देखे कोई भी शुभ कार्य किया जा सकता है, क्योंकि शास्त्रों के अनुसार इस दिन स्वयंसिद्ध मुहूर्त माना गया है. समस्त शुभ कार्यों के अलावा प्रमुख रूप से शादी, स्वर्ण खरीदने, नया सामान, गृह प्रवेश, पदभार ग्रहण, वाहन क्रय, भूमि पूजन तथा नया व्यापार प्रारंभ कर सकते हैं. भविष्य पुराण के अनुसार, अक्षय तृतीया के दिन सतयुग एवं त्रेतायुग का प्रारंभ हुआ था. भगवान विष्णु के 24 अवतारों में भगवान परशुराम, नर-नारायण एवं हयग्रीव आदि तीन अवतार अक्षय तृतीया के दिन ही धरा पर आये. तीर्थ स्थल बद्रीनारायण के पट भी अक्षय तृतीया को खुलते हैं.
वृंदावन के बांके बिहारी के चरण दर्शन केवल अक्षय तृतीया को होते हैं. वर्ष में साढ़े तीन अक्षय मुहूर्त है, उसमें प्रमुख स्थान अक्षय तृतीया का है. यह हैं- चैत्र शुक्ल गुड़ी पड़वा, वैशाख शुक्ल अक्षय तृतीया, आश्विन शुक्ल विजयादशमी तथा दीपावली की पड़वा का आधा दिन. इसीलिए इन्हें वर्ष भर के साढ़े तीन मुहूर्त भी कहा जाता है..
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