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World Tribal Day 2022: आदिवासीयत को बचाना जरूरी- अश्विनी कुमार पंकज

आदिवासीयत को बचाना जरूरी है. जल-जंगल की लड़ाई केवल आदिवासियों की नहीं, बल्कि पूरी दुनिया की है. आदिवासीयत का पूरी दुनिया में महत्व है. आनेवाली पीढ़ियों को भी इससे प्रेरित होने की जरूरत है.

World Tribal Day 2022: औरंगाबाद के अश्विनी कुमार पंकज झारखंड के आदिवासियों की आवाज हैं. हमेशा उन्होंने आदिवासियों के हक अधिकार की लड़ाई लड़ी है. आदिवासियों की पीड़ा उन्होंने स्वयं महसूस की है. गैर आदिवासी होने के बावजूद उन्होंने आदिवासी कला संस्कृति, साहित्य के लिए काम किया है. उनका मानना है कि आदिवासी समाज समता का समाज है, जहां स्त्री-पुरुष में भेदभाव नहीं होता. लेकिन इसे समाज ने बदल कर रख दिया है.

आदिवासीयत को बचाना जरूरी है. जल-जंगल की लड़ाई केवल आदिवासियों की नहीं, बल्कि पूरी दुनिया की है. उनका मानना है कि आदिवासीयत का पूरी दुनिया में महत्व है. आनेवाली पीढ़ियों को भी इससे प्रेरित होने की जरूरत है. अश्विनी कुमार पंकज का जन्म बेशक बिहार के औरंगाबाद में गैर आदिवासी परिवार में हुआ, लेकिन उनकी आत्म हमेशा झारखंड में रची बसी रही. उनकी पढ़ाई-लिखाई रांची से हुई. उनके पिता एचइसी में कार्यरत थे.

उन्होंने साहित्यकार वंदना टेटे से शादी की. उनके दो बेटे अानुध पंकज एवं अटूट संतोष हैं. एके पंकज बचपन से ही आदिवासियों के जीवन से प्रेरित रहे. वे मात्र सात साल की आयु में ही यूथ एक्टिविस्ट एसोसिएशन से जुड़ गये. 11वीं कक्षा के बाद ही वह राजनीति में आ गये. वर्ष 1984 में वह भाकपा माले से जुड़े. जन संस्कृति मंच शाखा स्थापित की. भाकपा माले के कल्चरल विंग में काम किया. झारखंड के मुद्दों पर नुक्कड़ नाटक किया. झारखंडियों के शोषण व भेदभाव पर काम किया.

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उन्होंने आदिवासियों के हक के लिए पूरा जीवन लगा दिया. आगे उन्होंने रांची विवि से हिंदी में एमए किया. यहां की भाषाओं में नाटक लिखा. 12 साल के लिए राजस्थान जाना हुआ. उस दौरान पत्नी वंदना टेंटे राजस्थान में पढ़ाई कर रहीं थीं. तब छोटा बेटा गोद में था. तब वह राजस्थान में भी राजस्थान के आदिवासियों के लिए काम करते रहे. वर्ष 2003 में अपनी पत्नी और दोनों बच्चों के साथ अपने झारखंड लौट आये.


इनपुट : लता रानी.

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