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झारखंड सड़क निर्माण कार्य में तय नहीं हो सकी ST/SC की प्राथमिकता, जानें क्या थी सरकार की योजना

सड़क निर्माण कार्य में एसटी-एससी की प्राथमिकता तय नहीं हो सकी है. तीनों वर्गों के लोगों सड़क निर्माण कार्य में भागीदारी अब भी कम है. सरकार ने विचार किया था कि 2.5 करोड़ से नीचे की योजना में एसटी-एससी और अत्यंत पिछड़ा वर्ग को प्राथमिकता दी जायेगी.

रांची: झारखंड में सड़क निर्माण कार्य में एसटी-एससी और अत्यंत पिछड़ा वर्ग के लोगों के लिए प्राथमिकता तय नहीं हो सकी. पथ निर्माण विभाग की ओर से तैयार प्रस्ताव को कैबिनेट की सहमति नहीं मिल पायी. ऐसे में तीनों वर्गों के लोगों की सड़क निर्माण कार्यों में अभी भी भागीदारी काफी कम है.

ठेकेदारी नियमावली के तहत वह रजिस्ट्रेशन भी नहीं करा रहे हैं. करीब साल भर हो गये, लेकिन यह मामला आगे नहीं बढ़ सका है. सरकार ने विचार किया था कि सड़क निर्माण कार्यों में 2.5 करोड़ से नीचे की योजना में एसटी-एससी और अत्यंत पिछड़ा वर्ग को प्राथमिकता दी जायेगी.

भागीदारी से काम मिलता, होते सशक्त :

सरकार का उद्देश्य था कि सड़क निर्माण कार्यों में इन वर्गों के लोगों की भागीदारी हो पाती. ठेकेदारी के क्षेत्र में प्रवेश होने से उन्हें काम तो मिलता ही, वे सशक्त भी होते. यहां इसका प्रस्ताव तैयार कराने के पहले उनकी भागीदारी देखी गयी. यह पाया गया कि एसटी के एक प्रतिशत भी लोग इस क्षेत्र मे हिस्सा नहीं लेते हैं.

उन लोगों की कार्यों के प्रति रुचि भी नहीं है. वह रजिस्ट्रेशन भी नहीं करा रहे हैं. अगल-बगल राज्यों में भी स्थिति देखी गयी थी, तो पाया गया कि ओड़िशा में एसटी के लोगों को प्राथमिकता दी गयी है. इसके बाद ही यह तय किया गया कि प्रस्ताव तैयार करा कर कैबिनेट की सहमति ली जाये. पथ निर्माण विभाग की ओर से प्रस्ताव तो तैयार हुआ, लेकिन कैबिनेट की सहमति नहीं हुई. ऐसे में यह लागू नहीं हो सका है.

कार्य अनुभव नहीं होने से छंट जाते हैं नये ठेकेदार

इंजीनियरों का कहना है कि किसी भी काम का ठेका देने के लिए ठेकेदारों का रजिस्ट्रेशन देखा जाता है, फिर उसका कार्य अनुभव और टर्न ओवर को देखकर ही वरीयता तय की जाती है. तकनीकी मामलों को देखने के बाद ही फाइनेंशियल बिड खोले जाते हैं.

नये ठेकेदार के पास कार्य अनुभव और टर्न ओवर नहीं होने की वजह से वे टेक्निकल बिड में छंट जाते हैं. ऐसे में उनका काम लेना मुश्किल होता है. टेक्निकल बिड में ही छंट जाने की वजह से रेट कम होने के बाद भी उन्हें काम नहीं मिल पाता है. इस स्थिति को देखने के बाद यह विचार किया गया था कि इन संवर्ग के लोगों को प्राथमिकता देकर उनकी वरीयता तय की जाये, फिर काम में हिस्सा लेने का अवसर दिया जाये.

Posted By: Sameer Oraon

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